Khel Khauff Ka - 2 in Hindi Horror Stories by Puja Kumari books and stories PDF | खेल खौफ का - 2

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खेल खौफ का - 2

कमरे में आती कुछ तेज आवाजों से मेरी नींद खुली. मैंने एक नजर टीवी पर डाली. मगर टीवी ऑफ था. अब मेरी नजर घड़ी पर पड़ी. रात के 2 बज रहे थे.

"इतनी रात को कौन चिल्ला रहा है?" मैंने अपने कमरे का दरवाजा खोलने की कोशिश की मगर ये देखकर मुझे हैरानी हुई कि वो बाहर से लॉक्ड था. आखिर हो क्या रहा है यहां . मैंने बिस्तर पर नजर डाली, आशीष इन सबसे बेखबर सोया हुआ था. तभी मेरी नजर खिड़की से आती नीली लाल रोशनी पर पड़ी. मैं धीरे से खिड़की के पास गई और शीशे से बाहर झांका. मेरी आँखें हैरानी से फैल गयी. बाहर पुलिस की दो गाड़ियां रुकी हुई थीं. कुछ पुलिसवालों ने आगे बढ़ कर हमारे घर को घेर रखा था और हाथ में गन के साथ पोजिशन लेकर खड़े थे.

एक ऑफिसर जोर से चिल्लाया, छुपने का कोई फायदा नहीं है. हमने इस घर को चारों तरफ से घेर लिया है. अगर 3 गिनने तक तुमने बाहर आकर सरेंडर नहीं किया तो हम अंदर आ जाएंगे.

मेरी धड़कन तेज होने लगी थी. आखिर चल क्या रहा था हमारे घर में. मैं अभी समझने की कोशिश ही कर रही थी कि मुझे बाहर से किसी के गुस्से में चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी. मैं दरवाजे से लगकर समझने की कोशिश कर ही रही थी कि बाहर से फायरिंग की आवाज आने लगी. मैं मुंह पर हाथ रखकर दरवाजे से कुछ कदम पीछे हट गई. इस आवाज के साथ ही धड़ाक से घर का मेन गेट टूटने की आवाज आई. पुलिस अंदर आ चुकी थी. इसके साथ ही फायरिंग की आवाज भी तेज होने लगी. अचानक कुछ लोगों के कदमों की आहट मुझे दरवाजे के बाहर महसूस हुई. मेरा दिमाग बिल्कुल ब्लैंक हो चुका था. हमारे घर में टेररिस्ट्स छुपे बैठे थे. अचानक उन्होंने दरवाजा तोड़ने की कोशिश शुरू कर दी. मेरा कलेजा मुंह को आ गया. जिंदा रहना है तो यहां से किसी भी तरह निकलना होगा. तभी मुझे स्टोर रूम की याद आयी. मैंने फौरन आशीष को गोद में उठाया और कालीन उठा कर आहिस्ते से स्टोर रूम का दरवाजा खोल कर अंदर चली गयी. मेरे दरवाजा बंद करते ही कालीन वापस अपनी पोजिशन में आ गया. कोई देखकर अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि यहां कोई कमरा भी हो सकता है. वहां अंधेरे में मुझे बेहद डर लग रहा था. मगर बाहर इससे कहीं ज्यादा खतरा था. अचानक धड़ाक की आवाज के साथ मेरे कमरे का दरवाजा टूट गया. फायरिंग की आवाज तेज और तेज होती चली गयी. मैंने आशीष को कसकर सीने से चिपका लिया और किसी तरह खुद को शांत किये बैठी रही. मुझे मां पापा की बेहद याद आ रही थी. न जाने उनके साथ क्या हुआ होगा. मेरा दिल कर रहा था इसी वक्त जाकर मां से लिपट जाऊं और इन सारी मुसीबतों से वो मुझे बचा लेंगी. मेरी आँखों से आंसू बहने लगे. करीब आधे घंटे के बाद फायरिंग बंद हुई. मगर मेरी अब भी बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी. मैं न जाने कितनी देर वहीं चुपचाप वहीं बैठी रही.

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सुबह की लाली कुछ कुछ दिखने लगी थी. मैं और आशीष पुलिस की गाड़ी के पास सहमें से खड़े थे. कुछ लोग दो अलग अलग बॉडी को सफेद कपड़ों में लपेटे बाहर लेकर आये. चादर खून से सनी हुई थी. मैं अभी भी अंदर बाहर सब तरफ देख रही थी. कोई बाहर क्यों नही आ रहा?

अंदर से कुछ और ऑफिसर्स 2 लोगों को पकड़ कर धकियाते हुए से बाहर लेकर आये. वो दोनों भी बेहद घायल लग रहे थे. जाते हुए उसने एक नजर मुझ पर डाली और घायल होने के बावजूद एक भद्दी सी मुस्कान दे दी. मैंने उन दोनों को ऊपर से नीचे तक घूरकर देखा मानो उनकी शक्ल को अपने जेहन में अच्छे से बिठा रही होऊं.

"मेरे मां पापा...वो कहाँ हैं?" मैंने कांपती हुई सी आवाज में अपने पास खड़े एक ऑफिसर से पूछा. उसने एक नजर मेरी तरफ देखा और फिर बिना कुछ बोले दूसरी तरफ देखने लगा. मगर मुझे मेरा जवाब मिल गया था. मैं घुटनों के बल जमीन पर गिर गयी. एक ही रात में मेरी पूरी दुनिया उजड़ गयी थी. आशीष अब तक कंफ्यूज था कि उसके मां पापा कहां हैं. वो बार बार मेरी बांह खींचते हुए मुझसे अंदर चलने को कह रहा था. मगर मैं जैसे उसकी कोई बात सुन ही नहीं पा रही थी. हमारे घर को सील कर दिया गया.
एक लेडी ऑफिसर ने हम दोनों को संभाल कर गाड़ी में बिठाया और गाड़ी पुलिस स्टेशन की तरफ बढ़ गयी.

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मैं एक शांत से कमरे में बैठी थी जहां मेरे साथ एक लेडी ऑफिसर और उसका एक सीनियर ऑफिसर मौजूद थे. न जाने कितनी देर तक वो मुझसे क्या क्या सवाल पूछते रहे. मैं अब तक बुरी तरह थक चुकी थी. उनकी बातों से ही मुझे पता चला कि रात को घर में होने वाली आवाजों से पापा जाग गए थे. उन्हें लगा शायद यह मैं या आशीष में से कोई एक होंगे. मगर जल्दी ही उन्हें समझ आ गया कि घर में कोई घुस आया है. मां ने फौरन पुलिस को कॉल किया मगर ठीक उसी समय उन लोगों ने उन्हें गोली मार दी.

ऑफिसर - मरने से पहले उन्होंने कहा था कि उनके बच्चो की जान को खतरा है. प्लीज हमारी मदद कीजिये.

मेरी आँखों से वापस आंसू बहने लगे.

ऑफिसर - हमें कुछ और इंवेस्टिगेशन्स यहां करने होंगे. शायद वो कुछ छुपाने के मकसद से यहां घुसे हों. या मे बी आपके पैरेंट्स उनको जानते हों...

"आप कहना क्या चाहते हैं ??? मेरे पैरेंट्स उन टेररिस्ट्स से मिले हुए हैं?" मैं जो अब तक चुप थी अचानक गुस्से में बोल पड़ी.

ऑफिसर (अचकचाते हुए) - आपको शायद कोई मिस अंडरस्टैंडिंग हुई है. वो कोई टेरेरिस्ट नहीं थे.

ये सुनकर मुझे जैसे बुरी तरह झटका लगा.

"टेरेरिस्ट नहीं थे ? तो फिर कौन थे?"

ऑफिसर (परेशानी से ) - वही तो हम पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं. जैसा आपके पैरेंट्स के लास्ट कन्वर्सेशन से जाहिर हुआ उससे तो यही लग रहा था जैसे वो उन्हें जानते थे. और उन्हें डर था कि उनके बच्चों को इन लोगों से खतरा है.

मैं कुछ पल उसे घूरती रही.

"आप उन दोनों पकड़े गए लोगों से ही क्यों नही पूछते सच्चाई क्या है?"

ऑफिसर - वी आर ट्राइंग अवर बेस्ट...जल्दी ही हम सब पता लगा लेंगे. बाई द वे...आपके कोई रिलेटिव तो होंगे जो आप दोनों की कस्टडी ले सकें?

मैं बस अपनी नानी मां को ही जानती थी. जो इस वक्त कोलकाता में कहीं रहती थी. मगर कहाँ ये मुझे भी नहीं पता था. मां पापा ने अपने परिवारों के खिलाफ जाकर शादी की थी जिस वजह से सबने उनसे रिश्ते खत्म कर लिए थे. इतने सालों में न तो कोई हमसे मिलने आया था और न ही हम कभी किसी से मिलने गए थे. तो बेसिकली हमारा कोई रिलेटिव नहीं था जो हमारी कस्टडी लेता. पुलिस कांस्टेबल ने 20 - 25 नंबर्स ट्राई किये मगर एक भी नहीं लगा. वो लोग हमारे कुछ और रिलेटिव्स का पता लगाने की कोशिश कर रहे थे ताकि मुझे और आशीष को अकेले न रहना पड़े. मैं वहां बैठे बैठे कब सो गई मुझे पता भी नहीं चला.

थोड़ी देर बाद उसी लेडी ऑफिसर ने आकर मुझे जगाया और मुझे बताया कि हमारे रहने के लिए उन्होंने एक नया ठिकाना ढूंढ लिया है और हमें अभी वहां के लिए निकलना होगा. जितनी देर तक मैं सोती रही उसी दौरान काफी पूछताछ और घर की तलाशी के बाद पुलिस के हाथ एक अलमारी से वसीयत के कुछ कागज बरामद हुए थे. जिसमें मां पापा ने अपनी जो कुछ भी प्रोपर्टी थी वो मेरे और आशीष के नाम की थी. जो हमें 18 साल के होने के बाद मिलती. साथ ही उसमें यह भी लिखा था कि पैरेंट्स के जीवित न होने की सूरत में उनके बेहद करीबी दोस्त को उनके बच्चों का गार्डियन बनाया जाए. मिस्टर अथारस कोवालकी.

To be continued...