Khel Khauff Ka - 4 in Hindi Horror Stories by Puja Kumari books and stories PDF | खेल खौफ का - 4

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खेल खौफ का - 4

मैं घबरा कर उठ कर बैठ गयी. बाहर शायद टेम्परेचर बेहद कम था मगर मैं पूरी तरह पसीने से भीग चुकी थी. तो क्या ये सपना था? इतना अजीब? कौन थी वो लड़की? मैंने दीवार पर टंगी घड़ी पर एक नजर डाली. रात के 2 बज रहे थे. आशीष सुकून से सो रहा था. मैं भी वापस लेट गयी और फिर से सोने की कोशिश करने लगी.

-----------

"आप मां की बहन हैं?" मैंने सुनयना मासी से पूछा. जो इस वक्त मेरे साथ बैठी चाय पी रही थी.

सुनयना - बोनेर से यो बेसी... माय बेस्ट फ्रेंड.

कहते हुए उनकी आंखों में एक अलग चमक दिखी मुझे.

"तो आप बांग्ला कैसे ..."

सुनयना (मुस्कुराते हुए) - हम दोनों एक साथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे. और हमारे घर भी आस पास ही थे. तुम्हारी माँ की तरह मैंने भी लव मैरिज की थी. एक्चुअली हम चारो ही बेस्ट फ्रेंड्स हुआ करते थे.

"ओह.."

मेरी नजर अब खिड़की के बाहर जाकर ठहर गयी. वहां अंकल कोवालकी आशीष के साथ बैठे थे. अंकल कोवालकी कम से कम 40 के होंगे मगर उनको देखकर उनकी उम्र का अंदाजा लगा पाना बेहद मुश्किल था. अब भी वो इतने फिट थे कि 25 - 30 से ज्यादा के नजर नहीं आते थे. उनके चेहरे पर आते सिल्की लाइट ब्राउन हेयर उनकी पर्सनालिटी को और भी ज्यादा अट्रैक्टिव बनाते थे. सुनयना मासी की भी उम्र करीब करीब वही होगी. उनकी बड़ी बड़ी आंखें और कमर तक आते लंबे बालों की चोटी उनको टिपिकल बंगाली लुक देती थी. वो भी दिखने में काफी खूबसूरत थीं मगर अंकल कोवालकी की खुशमिजाजी के सामने वो फीकी पड़ जाती थी. न जाने कौन सी उदासी की परतें उन्होंने अपने अंदर समेट रखी थी.

आशीष अपने एक टॉय स्कूटर के साथ काफी देर से खेल रहा था.

कोवालकी - ये कैसा है?

कहते हुए उन्होंने एक किड्स बाइक की तरफ इशारा किया.

आशीष तो उसे देख कर खुशी के मारे उछलने ही लगा था. और फौरन उस पर सवार होकर गार्डन के चक्कर लगाने लगा. उसे हंसते खेलते देखकर मुझे भी अब अच्छा लग रहा था. दिन के उजाले मे ये घर बेहद खूबसूरत लग रहा था. मैं आशीष के पास आ गयी थी . मैंने देखा अंकल कोवालकी सुनयना मासी को कुछ समझा रहे थे. उन्होंने चुपचाप सहमति में सिर हिलाया. और मेरे पास आकर मेरे कंधे पर हाथ रखती हुई बोली,

अवनी इस घर को आज से अपना ही घर समझना. तुम दोनों जहां चाहो जा सकते हो बस इस घर की आखिरी यानी चौथी मंजिल पर किसी का भी जाना मना है. मैंने ऊपर की तरफ नजर डाली और हैरानी से पूछा, "ऐसा भी क्या है वहां?"

कोवालकी (पास आते हुए) - वहां मैं अपने सारे आर्ट वर्क्स और बहुत सारी प्रिशियस कलेक्शंस को रखता हूँ. जरा सी भी गड़बड़ हुई तो बेहिसाब नुकसान होगा. बात केवल पैसे की नहीं है उसमें बहुत से ऐसे आर्टवर्क्स भी मौजूद हैं जो पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है.

"ओके अंकल हम इस बात का ध्यान रखेंगे." मैंने मुस्कुराते हुए आशीष को कंधे से पकड़ते हुए कहा.

सुनयना मासी प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए चली गयी. मुझे कोई ताज्जुब भी नहीं हुआ क्योंकि कल रात ही मैंने हॉल में एक से बढ़कर एक पेंटिंग्स दीवारों पर देखी थी. मेंशन के अंदर और बाहर सभी जगह पर कई तरह के आर्ट पीसेज़ भी रखे हुए थे. जो काफी हद तक इस जगह को रॉयल लुक दे रहे थे. बेसिकली आप कह सकते है कि कोवालकीज सच्चे आर्ट प्रेमी थे.

कोवालकी - मैंने वर्कर्स से कह दिया है वो तुम दोनो के लिए रूम्स को री डेकोरेट कर रहे हैं. वहां से सारे पुराने सामान भी बाहर करने पड़ेंगे तो थोड़ा टाइम लगेगा. एक्चुअली कुछ लड़कियों के सामान वहां....

वो बोलते बोलते रुके और एक नजर मुझपर डाली. मैंने अपनी आंखें सिकोड़ कर उनकी तरफ देखा. उन्होंने तुरंत अपना गला साफ करते हुए कहा,

- आई मीन तुम्हारी सुनयना मासी का सामान वहां पड़ा है. बट आई प्रॉमिस शाम तक तुम दोनों को ही तुम्हारा रूम बिल्कुल तैयार मिलेगा.

मैं कुछ और कहती उससे पहले ही आशीष ने एक बार फिर से अपनी बाइक स्टार्ट की और पूरे घर का चक्कर लगाने लगा.

"आशु रुको मैं भी आ रही हूँ.." मैंने आवाज लगाई. मगर तब तक वो जा चुका था. मुझे नई जगह पर उसे अकेला छोड़ना सही नहीं लग रहा था. मेरी परेशानी को समझते हुए अंकल कोवालकी ने मेरे कंधों को थपथपाया और बोले, डोंट वरी... मैं उसके साथ रहूंगा. तुम चाहो तो तब तक घर देख लो.

कहते हुए वो वहीं गार्डन में पड़ी अपनी साइकिल से आशीष के पीछे चले गए.

-------

जितना बड़ा मैंने इस घर को सोचा था ये उससे कहीं ज्यादा बड़ा था. इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि मैं अब तक 10 रूम देख चुकी थी और अभी भी बहुत कुछ देखना बाकी था. अच्छी बात ये थी कि मुझे वहां एक लाइब्रेरी भी दिख गयी. ये बेहद शांत साफ सुथरा और हवादार कमर था. बुक शेल्फ़ से काफी दूर हटकर वहां एक फायर प्लेस भी बनाया गया था. फायर प्लेस के पास ही एक आराम कुर्सी भी थी. पूरे लाइब्रेरी में सॉफ्ट रेड कलर का कारपेट बिछा हुआ था. वहां एक बड़े से गोल टेबल के साथ ही बहुत सारी छोटी छोटी कुर्सियां भी रखी हुई थी. मुझे सोचकर हैरानी भी हुई यहां आता कौन होगा?

एक बुक शेल्फ में आर्ट्स से रिलेटेड बुक्स भरी हुई थीं. वहीं दूसरी बुक शेल्फ में एनिमल टैक्सीडर्मि से रिलेटेड बुक्स भारी पड़ी थी. मुझे हैरानी हुई. अब तक मुझे घर में आर्ट पीसेज़ दिखे थे मगर कहीं भी चमड़े से बनी कोई चीज नहीं थी. न ही कहीं कोई भूसे भरे जानवर ही दिख रहे थे. तो फिर इन बुक्स के यहां होने का क्या मतलब? शायद उन्हें ये सब अच्छा लगता होगा. ठीक वैसे ही जैसे लड़कियां रेसिपी बुक्स पढ़ती जरूर हैं. ट्राई शायद ही कभी करती हों.

थोड़ी देर खेलने के बाद आशीष मेरे पास आकर जिद करने लगा, "दी, घर के पीछे एक बहुत खूबसूरत गार्डन है. प्लीज चलो न हम वहां खेलेंगे."

ये जगह तो बाकी ही रह गयी थी मेरी नजर से. देखने में क्या बुराई है यही सोचकर मैं उसके साथ चली गयी. ये गार्डन घर के सामने बने छोटे से गार्डन के मुक़ाबले कई गुना ज्यादा बड़ा था. यहां 200 से भी ज्यादा तरह के प्लांट्स और फ्लावर्स लगे हुए थे. इतना ही नहीं यहां पर छोटे छोटे वाटर फॉल्स बना कर खासी डेकोरेशन की गई थी. आशीष तो खुशी से चहकते हुए पानी में खेलने लगा था. मगर मैं डर रही थी कहीं अंकल कावोलकी नाराज़ न हो जाएं. आज हमारा इस घर में पहला दिन था और पहले ही दिन उन्हें नाराज़ करना कहीं से भी सही नहीं था. सो मैंने आशीष को किसी भी चीज को छूने से मना किया. तभी उसकी नजर वहां एक पेड़ से लटके गोल आकार के पिंजरे पर पड़ी . उसमें तीन छोटी रंग बिरंगी चिड़िया थी. आशीष उन्हें देखते ही छूने के लिए मचलने लगा और तेजी से उस तरफ दौड़ा.

"आशु ...नो ..." कहते हुए मैं भी उसकी तरफ दौड़ी. मगर अचानक सामने का नजारा देखते ही आशीष रुक गया और उसके पीछे पीछे मैं भी. सामने ब्लैक कलर का गाउन पहने एक औरत फ्लावर्स को पानी दे रही थी. उसकी पीठ हमारी तरफ थी फिर भी मैं 100% श्योर थी कि ये सुनयना मासी नहीं थी. आवाज सुनकर वो एक पल को पीछे मुड़ी. उसने एक गहरी नजर हम दोनों पर डाली और फिर चुपचाप वापस अपना काम करने लगी.

आशीष (धीरे से मेरे कान में फुसफुसाते हुए) - ये कौन है दी?

"शायद गार्डनर होगी."

आशीष - मगर अंकल कावोलकी ने तो इनके बारे मे कुछ नही बताया.

मैंने सोचा जब यहीं रहना है तो सब के साथ मिल जुलकर रहना ही बेहतर है. इसलिए मैं बात की शुरुआत करने के उद्देश्य से उसके पास जाकर खड़ी हो गयी. उसने मेरी तरफ देखा और मैंने उसे एक स्माइल दी. मगर उसके चेहरे पर तब भी कोई भाव नहीं आया.

- आप दोनों कौन हैं?
उसने मुझे और आशीष को घूरते हुए पूछा.

"मैं अवनी हूँ...और ये मेरा छोटा भाई है आशीष. उम्म...आप कह सकती हैं अंकल कोवालकी ने हमें अडॉप्ट किया है. सो अब हम यहीं रहने वाले हैं. "

ये सुनने के बाद मैंने देखा उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तैरने लगी थी. वो हम दोनों को ही ऐसे देखने लगी जैसे उसने पहली बार किसी इंसान को इस घर में देखा हो.

- आप दोनों से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा. मैं यहां की गार्डनर हूँ. इस जगह को खूबसूरत और जन्नतकश बनाये रखना ही मेरा काम है.

कहते हुए उसने आंखें बंद करते हुए एक गहरी सांस ली मानों सारी खुशबू को अपने अंदर समेट रही हो. आंखें खोलते ही उसकी नजर वहां से गुजरते हुए चिड़ियों के झुंड पर टिक गई.

- जिंदगी .. यही तो खूबसूरत बनाती है इस जगह को.

अब मुझे ये औरत और इसकी बातें कुछ कुछ अजीब लगने लगी थी.

आशीष (सिर खुजाते हुए) - तुम्हारा नाम क्या है?

वो मुस्कुराते हुए उसके पास बैठ गयी और उसके बालों में हाथ फिराती हुई बोली,

- आफरीन...आफरीन नाम है मेरा. वैसे अब मेरा काम यहां खत्म हुआ . सूरज ढल रहा है उसके पहले ही मुझे..,

मुझे ताज्जुब हुआ अचानक से उसे जाने की इतनी जल्दी मची कि उसने अपनी बात तक को पूरा करना जरूरी नहीं समझा और तेजी से वहां से निकल गयी. जिस इलाके में हमारा घर था वहां आस पास पहाड़ियां थी. पेड़ों की लंबी लंबी कतारें इसे कुछ कुछ जंगल वाली फीलिंग भी देती थी. मगर ये इतने घने नहीं थे. आस पास शायद कोई रहता भी नहीं था. बस यहां से कुछ दूरी पर एक अजीब सा मकान था जो बिल्कुल सुनसान पड़ा था. सुबह से अभी तक मुझे वहां कोई हलचल भी नहीं दिखी थी. शायद वो मकान खाली पड़ा होगा. उसकी दीवारें जगह से से काली पड़ गयी थी और कई जगह से प्लास्टर भी उखड़ रहा था. तो क्या ये आफरीन का घर है? कुछ ही पलों में वो जैसे हवा में घुल गयी थी. और इतनी जल्दी तो वो सिर्फ इसी घर में जा सकती थी.

To be continued...