love in the touch of blue in Hindi Love Stories by Shailesh verma books and stories PDF | नीलिमा के स्पर्श में प्रेम

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नीलिमा के स्पर्श में प्रेम

प्रस्तावना:

कुछ प्रेम कहानियाँ किताबों में नहीं मिलतीं, वे आत्मा में लिखी जाती हैं — देह के पार, भावना के उस छोर तक, जहाँ प्रेम सिर्फ अनुभूति नहीं, समर्पण होता है।

यह कहानी है नीलिमा और आरव की — दो ऐसे आत्माओं की जो देह से शुरू होकर आत्मा में विलीन हो जाती हैं।---


भाग 1: पहली मुलाक़ातसांझ का समय था। दिल्ली के एक प्रसिद्ध आर्ट गैलरी में नीलिमा की पेंटिंग प्रदर्शित हो रही थी। वह सादे रंगों वाली साड़ी में, अपने बनाए चित्रों के बीच खड़ी थी। तभी वहाँ एक शख़्स आया — लंबा कद, किताबों का झोला कंधे पर, आँखों में गहराई और चेहरे पर ठहराव।"आपकी यह पेंटिंग... जैसे प्रेम को रंगों में बाँध दिया हो," वह बोला।नीलिमा ने मुस्कुरा कर देखा, "आप चित्र पढ़ना जानते हैं?""मैं कवि हूँ, चित्र पढ़ने का दावा तो नहीं करता, मगर भाव समझ लेता हूँ।"वह थे आरव राजपूत — 33 वर्षीय एक साहित्यकार, जो विश्वविद्यालय में अध्यापन भी करते थे। वह उस शाम वहाँ संयोगवश आए थे, और उसी शाम कुछ असंयोग जन्म ले रहे थे।---


भाग 2: शब्द और रंगों की दोस्तीनीलिमा और आरव की बातचीत पेंटिंग्स से निकलकर साहित्य, भावनाओं और जीवन-दर्शन तक पहुँच गई। नीलिमा के लिए आरव सिर्फ एक पाठक नहीं, कोई ऐसा श्रोता था जो बिना कहे भी सब सुन सकता था।उनकी मुलाक़ातें बढ़ने लगीं। कभी कैफे में चाय के साथ कविताएं, कभी स्टूडियो में नीलिमा के ब्रश की आवाज़ के बीच आरव की कहानियाँ। और फिर एक दिन..."नीलिमा, तुम जानती हो, जिस तरह तुम रंगों में प्रेम ढूँढ़ती हो, मैं शब्दों में तुम्हारी परछाईं खोजता हूँ।"वह कुछ नहीं बोली। उसकी आँखें जवाब थीं।---


भाग 3: पहली छुअनएक दिन अचानक बारिश शुरू हो गई। वे दोनों इंडिया गेट के पास एक पुरानी कोठी की छत के नीचे शरण लेने लगे। बारिश की बूंदें दोनों को भिगो चुकी थीं। ठंडी हवा में गर्म साँसें महसूस हो रही थीं।आरव ने नीलिमा की भीगी ज़ुल्फों को हटाते हुए कहा, "तुम्हारे पास शब्द कम हैं, मगर हर खामोशी एक कविता है।"नीलिमा की हथेली उसकी हथेली में समा गई।धीरे-धीरे, उसने नीलिमा के चेहरे को छुआ... वो कंपकंपी किसी डर की नहीं थी, बल्कि प्रेम की गहराई की थी। वह पल पहली बार था जब दोनों की देहें नहीं, आत्माएं भी थरथरा उठीं।---


भाग 4: प्रेम और देह का मिलनरात के अंधेरे में उनकी आत्माएं एक दूजे में विलीन हो रही थीं। नीलिमा ने आरव के कंधे पर सिर रखा और कहा:"क्या यह वासना है?"आरव ने उत्तर दिया, "नहीं, यह वह प्रेम है जो शब्दों से परे है।"उनके बीच जो घटा, वह सिर्फ एक शारीरिक क्रिया नहीं थी — वह ऐसा मिलन था, जिसमें दो अधूरी आत्माएँ एक सम्पूर्ण अस्तित्व में बदल रही थीं। उनका प्रेम सौम्य था, मद्धम था, मगर गहराई लिए हुए।आरव ने उसके कान में धीरे से कहा, "तुम मेरी कविता हो, और मैं तुम्हारा कैनवास..."---


भाग 5: समाज का आईनाप्रेम के बाद अक्सर जीवन लौट आता है — अपने ठंडेपन और तर्कों के साथ। नीलिमा के घरवालों को जब आरव के बारे में पता चला तो विरोध हुआ। एक तलाकशुदा व्यक्ति, वह भी उम्र में बड़ा — समाज इसे स्वीकार नहीं करता।नीलिमा टूटती नहीं, मगर बिखरने लगती है। आरव उसे मजबूर नहीं करता। वह उसे सोचने का समय देता है।"अगर हमारे प्रेम में सच्चाई है, तो समय भी उसे तोड़ नहीं पाएगा," आरव ने कहा।और फिर... नीलिमा बिना बताए विदेश चली जाती है — कला में नई पहचान बनाने।---


भाग 6: वियोग का संगीततीन साल बीत जाते हैं।आरव अकेला नहीं, मगर एकाकी हो जाता है। उसकी कविताएं अब भी नीलिमा से ही भरी रहती हैं — मगर अब वे प्रश्न करती हैं, उत्तर नहीं देतीं।"क्या प्रेम अधूरा रह जाए तो अमर हो जाता है?"नीलिमा पेरिस में प्रदर्शनी करती है। मगर हर रंग में उसे आरव की आँखें दिखाई देती हैं। वह जानती है कि वह जितना दूर गई, उतनी ही पास हो गई।---


भाग 7: पुनर्मिलनदिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय कला महोत्सव आयोजित होता है। नीलिमा वहाँ अपनी पेंटिंग्स लेकर आती है। वहीं आरव अपनी नई किताब के विमोचन के लिए आमंत्रित है।तीन साल बाद... दोनों की नज़रें मिलती हैं।कोई संवाद नहीं... फिर भी सब कह दिया जाता है।नीलिमा धीमे स्वर में कहती है:"मैं आज भी तुम्हारे कैनवास पर अधूरी हूँ..."आरव मुस्कुराता है:"और मैं अब भी तुम्हारे रंगों से ज़िंदा हूँ..."---


अंतिम अध्याय: आत्मा में समर्पणइस बार वे एक साथ रहने का निर्णय लेते हैं। न समाज की परवाह, न रिश्तेदारों की। वे जानते हैं कि प्रेम यदि सच्चा हो, तो वह देह से शुरू होकर आत्मा में पूर्ण होता है।सेक्स उनके प्रेम का साधन नहीं, उसका सौंदर्य बन जाता है। वे अब न सिर्फ एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं, बल्कि प्रेम को जीते हैं — हर रोज़, हर सांस में।---


अंतिम पंक्तियाँ:

"प्रेम जब देह से निकलकर आत्मा तक पहुँचे, तब वह वासना नहीं, साधना बन जाता है।और जब कोई नीलिमा किसी आरव से मिलती है, तब प्रेम अमर हो जाता है।"

-समाप्त-

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लेखक:- शैलेश वर्मा