एपिसोड 3: जिस्म तो मेरा है... पर आवाज़ किसकी है?
उस रात हवेली की दीवारों ने कुछ नया देखा — एक लड़का, जिसका चेहरा आरव का था, लेकिन उसकी आँखों में इंसानियत नहीं थी।
हवेली के उस तहखाने में, जहाँ आईने बोलते थे और दीवारें साँस लेती थीं, आरव की रूह अब अकेली नहीं थी। कुछ उसके अंदर उतर आया था।
वो चल तो आरव की तरह रहा था, पर उसकी चाल में अजीब सी थिरकन थी — जैसे किसी और की डोरियों पर चल रहा हो।
भीतर की आवाज़
आरव ने अपने हाथों को देखा। सब कुछ ठीक था... लेकिन जैसे ही उसने कुछ बोलना चाहा — उसके मुँह से अपनी नहीं, किसी और की आवाज़ निकली:
“मैं अब तू हूँ...”
वो चौंक गया। “ये क्या... मेरी आवाज़ कहाँ गई?”
लेकिन बाहर से सब वैसा ही था। सिर्फ़ आरव को ही सुनाई दे रही थी ये आवाज़ — उसके अंदर की आवाज़।
“तू नहीं समझेगा, पर अब हम दो हैं — एक शरीर, दो आत्माएं...”
शिवा की वापसी
उधर शिवा, सुरंग के रास्ते हवेली के उस तहखाने तक पहुँच चुका था।
“आरव भैया?” उसने फुसफुसाते हुए पुकारा।
उसे दीवारों पर खून के धब्बे दिखे, और एक टूटा हुआ आईना — जिसका काँच अब भी गर्म था।
फिर उसे आरव की परछाई दिखी। “भैया! आप ठीक हैं?”
आरव धीरे-धीरे मुड़ा। चेहरा शांत, आँखें गहरी — कुछ अलग।
“मैं ठीक हूँ, शिवा... बहुत ठीक।”
शिवा को लगा कुछ गड़बड़ है। उसने ध्यान से देखा — आरव मुस्कुरा रहा था, पर उसकी मुस्कान में कोई इंसानी गर्मी नहीं थी।
पहचान का भ्रम
शिवा ने पूछा, “आपको क्या मिला अंदर?”
आरव कुछ देर चुप रहा, फिर बोला — “मुझे खुद मिला... और वो भी, जो मैं कभी नहीं था।”
शिवा डर गया। “भैया, बाहर चलो। कुछ ग़लत हो रहा है यहाँ।”
आरव ने उसका हाथ पकड़ा — “क्या ग़लत? मैं तो अब पहले से बेहतर हूँ। देखो, मेरा शरीर... मेरी चेतना... सब खुल गई हैं। और तुम...”
आरव की आवाज़ अचानक बदल गई, भारी और डरावनी —
“तुम अगला दरवाज़ा हो, शिवा...”
हवेली का खेल
तभी हवेली के तहखाने की दीवारें हिलने लगीं। आईनों से चीखने की आवाज़ें आने लगीं। एक आईना खुद से टूटा और उसमें से काले धुएँ की एक परछाई निकली — वो लड़की फिर सामने थी।
“आरव को हमने अपना बना लिया है। अब उसकी पहचान सिर्फ़ नाम तक सीमित है।”
शिवा काँप गया। “आप कौन हैं?”
लड़की मुस्कुराई — “हम वो हैं जो रहस्य बनते हैं। हवेली हमारे अंदर है, और हम हवेली के।”
उसने आगे बढ़कर आरव के माथे को छुआ — और आरव वहीं जमीन पर गिर पड़ा, जैसे उसकी आत्मा बाहर खींच ली गई हो।
आईना जो उल्टा दिखाता है
शिवा ने देखा — दीवार पर एक नया आईना उभर रहा था। उसमें उसका खुद का चेहरा था — लेकिन उसमें डर नहीं, क्रूरता थी।
“ये क्या हो रहा है?” उसने चीखा।
आईने से आवाज़ आई:
“हर कोई अपने भीतर छिपे डर का रूप ले लेता है। ये हवेली नहीं, एक आईना है — जो तुम्हें वही बना देती है, जो तुम छिपाते हो।”
आरव का संघर्ष
आरव ज़मीन पर गिरा था, लेकिन अंदर एक मानसिक युद्ध चल रहा था।
एक ओर उसका असल स्वरूप, दूसरी ओर वो अंधेरा, जो अब उसकी आत्मा को ढकने लगा था।
“तू वापस नहीं जा सकता,” अंधेरा बोला।
“मैं जा सकता हूँ... ये मेरा शरीर है!” आरव चिल्लाया।
“तेरा शरीर था... अब तेरा नहीं।”
इसी बीच, उसे अपनी दादी की आवाज़ सुनाई दी — "तेरहवाँ दरवाज़ा आत्मा की परीक्षा है। अगर तू अपनी पहचान को थाम सके, तो तुझे मुक्ति मिलेगी। नहीं तो तू बस एक और छाया बन जाएगा..."
एक निर्णय
बाहर शिवा ने देखा कि आरव धीरे-धीरे होश में आने लगा। उसकी साँसें तेज़ थीं, आँखें पसीने से भीगी हुईं।
“शिवा...” आरव फुसफुसाया, “कुछ मत पूछ... बस मुझे बाहर ले चलो... अभी।”
शिवा ने आरव को सहारा देकर बाहर की ओर खींचना शुरू किया। हवेली अब फिर से गूंजने लगी थी।
पीछे दीवार पर वही आवाज़ उभरी:
“तेरहवाँ दरवाज़ा खुल गया है... अब हर दरवाज़ा उसी की छाया है...”
बाहर की हवा
दोनों जैसे-तैसे हवेली से बाहर निकले। सूरज डूब रहा था, लेकिन हवेली से अजीब सी काली लहरें उठ रही थीं — जैसे वो जिंदा हो।
आरव ज़मीन पर बैठ गया, और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
“मैं ज़िंदा हूँ... पर मैं अब वो नहीं रहा...”
शिवा चुप था। उसके पास कोई जवाब नहीं था।
आरव ने कैमरा उठाया। स्क्रीन टूटी हुई थी, लेकिन उसमें एक आखिरी रिकॉर्डिंग चल रही थी — वो लड़की, हवेली के अंदर से कह रही थी:
“तेरा जिस्म तेरा हो सकता है... पर आवाज़ अब हमारी है।”
🔚 एपिसोड 3 समाप्त
(अगले एपिसोड में: “हवेली अब मेरे सपनों में आती है…”)