( ११ )
सुबह के पांच बज रहे थे। जैसे ही अलार्म बजा, पायल की नींद खुल जाती है। उसका ये रोज़ का नियम था कि सूरज उगने से पहले ही उठना है। पायल हमेशा मानती थी कि जो लोग सुबह जल्दी उठते हैं, वे न केवल शारीरिक रूप से तंदुरुस्त रहते हैं बल्कि मानसिक रूप से भी मज़बूत होते हैं। उन्हें अपने जीवन में जो भी पाना हो, उसमें सफलता मिलती है।
नींद से उठते ही वह खिड़की खोलती है। बाहर हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी और आसमान में हल्की लाली छाने लगी थी। उस दृश्य ने पायल को और भी तरोताज़ा कर दिया था। वह जल्दी से अपना जॉगिंग वाला ट्रैकसूट और जूते पहनकर घर से बाहर निकलने की तैयारी करती है।
जैसे ही वह दरवाज़े तक पहुंचती है, पीछे से किसी की आवाज़ सुनाई दी।
"इतनी सुबह कहां जा रही हो पायल?"
पायल पलटकर देखती है तो सामने सुनिती जी खड़ी थीं। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और आंखों में मां का वही चिंता भरा स्नेह।
"अरे मां… आप?" पायल आश्चर्य से कहती हैं। ट्रैकसूट में अपनी मां को देखकर उसकी आंखें चौड़ी हो गई थी।
सुनीति जी हल्की मुस्कान के साथ कहती हैं कि, "क्यों? मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकती क्या?"
पायल खिलखिलाते हुए कहती हैं कि, "अरे क्यों नहीं! अच्छा ही है… मुझे भी आपका साथ मिल जाएगा।"
दोनों धीरे-धीरे सड़क पर चलते हुए सुबह की ठंडी हवा का आनंद लेने लगते हैं। दिसंबर की सर्दी चुभ रही थी। अपनी दोनों हथेलियां आपस में रगड़ते हुए सुनीति जी कहती हैं कि, "पर बेटा, थोड़ा इस ठंड का भी ख्याल किया करो। सुबह के पांच बजकर पंद्रह मिनट हो रहे हैं। इस समय तो रजाई में घुसकर सोना सबसे अच्छा लगता है। तुम्हें कहां से ये जॉगिंग-वॉगिंग का भूत लग गया?"
यह सुनकर पायल ज़ोर से हंस पड़ती है, वह कहती हैं कि, "तो फिर किसने कहा था आपको अपनी रजाई छोड़कर बाहर आने को?"
सुनीति जी मजाकिया अंदाज़ में मुंह बनाकर कहती हैं कि, "क्या करूं, मां हूं न… तुम्हारी आदतें देखे बिना चैन कहां मिलता है?"
ये सुनकर दोनों मां-बेटी ने एक-दूसरे को देखा और ठहाका लगाकर हंस देती हैं। उस पल ठंडी सुबह भी जैसे गर्माहट से भर गई।
अभी भी चांदनी रात का असर बाकी था। हल्की चांदनी में चारों तरफ एक गहरी शांति फैली हुई थी। कहीं दूर से कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दे रही थी, तो पास ही किसी पेड़ पर बैठे पंछियों की हल्की-सी गुंजन वातावरण को मधुर बना रही थी। ठंड के कारण घास और पत्तों पर जमी ओस की बूंदें चांदनी में मोती की तरह चमक रही थीं। यह दृश्य मन को अनोखा सुकून दे रहा था। मानो इस समय प्रकृति के साथ जीना किसी स्वर्गीय सुख से कम न हो।
थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर पायल और सुनीति जी को कुछ लोग और मिल गए, जो उसी तरह सुबह की सैर पर निकले थे। उन्हें देखकर सुनीति जी हल्के मजाकिया अंदाज़ में कहती हैं कि, "मतलब, हम दोनों ही पागल नहीं हैं… और भी हैं!"
यह सुनकर पायल हंस पड़ती है, "सही कहा मां, अब तो लगता है हमारी टोली भी बन जाएगी।"
दोनों मां-बेटी मुस्कुराते हुए उन अजनबियों को देखते रहे। उस पल की सहजता और अपनापन, ठंडी सुबह को और भी खास बना रहा था।
"मां…" पायल अचानक रुककर कहती हैं।
"क्या हुआ बेटा?"
"मां, आप चलो मेरे साथ… मुझे दादी के लिए कुछ फूल लेने हैं। यहां ज्यादा देर तक ताजे फूल नहीं रहते।"
सुनीति जी हैरान होकर कहती हैं कि, "पर बेटा, इतनी सुबह यहां से फूल क्यों खरीदती हो? घर के आंगन में तो तुलसी और गेंदा है ही।"
पायल हल्की मुस्कान के साथ कहती हैं कि, "मां… वो क्या है न, यहां रोज़ एक बारह-तेरह साल की छोटी-सी बच्ची आती है फूल बेचने। इतनी ठंड में भी सुबह-सुबह काम करती है। मैंने उसे पैसे देने चाहे थे, लेकिन उसने साफ़ मना कर दिया। कहने लगी कि उसे भी मेहनत करनी है। तभी से मैं उससे फूल खरीद लेती हूं… बस इसी बहाने उसकी थोड़ी मदद हो जाती है।"
सुनीति जी की आंखें नम हो जाती है। उन्होंने पायल के सिर पर हाथ फेरते हुए बड़ी कोमल आवाज़ में कहती हैं कि, "ओह मेरी पायल… इतनी समझदार कब हो गई?"
पायल नज़रे झुकाए मुस्कराकर कहती हैं कि, "आप रुको यहां, मैं बस पांच मिनट में आई।"
सुनीति जी वहीं खड़ी उसे जाते हुए देखती रहीं। उनके चेहरे पर गर्व और ममता दोनों साफ झलक रहे थे।
यह कहकर पायल फूल लेने चली गई। सुनीति जी वहीं आसपास के नज़ारों को देख रही थीं। ओस से भीगे पत्तों और हल्की ठंडी हवा को महसूस करते हुए उनके चेहरे पर एक सुकून था।
तभी अचानक पीछे से शोर सुनाई देता है।
"बचाओ… बचाओ…!"
सुनीति जी चौंककर आवाज़ की दिशा में देखती है। वहां एक आदमी बदहवास-सा भाग रहा था और उसके पीछे एक बड़ा-सा कुत्ता भौंकते हुए दौड़ रहा था। आदमी के चेहरे पर साफ दिख रहा था कि वह काफी देर से भाग रहा होगा, थकान से उसका हाल बेहाल था।
यह दृश्य देखकर सुनीति जी अपनी हंसी रोक न सकीं। मुस्कराते हुए उन्होंने आवाज़ दी,
"रुकिए… मत भागिए!"
जैसे ही कुत्ता उनके पास पहुंचा, सुनीति जी ने बड़े प्यार से हाथ बढ़ाकर उसके सिर पर सहलाना शुरू किया। देखते ही देखते भौंकता हुआ कुत्ता शांत हो गया। थोड़ी देर तक उनकी गोद में सिर रखे खड़ा रहा और फिर पूंछ हिलाते हुए वहां से चला जाता है।
वह आदमी राहत की सांस लेते हुए कहता है कि, "बहुत-बहुत धन्यवाद आपका, वरना आज तो मेरी जान ही निकल जाती!"
सुनीति जी मुस्कराकर कहती हैं कि, "डरिए मत, जानवर उतने खतरनाक नहीं होते जितना हम सोच लेते हैं। बस प्यार से पेश आओ तो तुरंत शांत हो जाते हैं।"
"अच्छा, वैसे आप बातें अच्छी करती हैं… हाय! मेरा नाम विकास, विकास महेता। मैं यहीं पास में रहता हूं," वह आदमी अब तक संभलते हुए कहता है।
सुनीति जी हल्की मुस्कान के साथ कहती हैं कि, "ओह, हाय! मैं सुनीति… सुनीति शर्मा।"
वह आगे कुछ कह पातीं, तभी पायल फूलों का छोटा-सा गुच्छा हाथ में लिए वहां पहुंच जाती है।
"यह मेरी बेटी पायल है," सुनीति जी परिचय करवाते हुए कहती हैं।
"हेलो, अंकल!" पायल विनम्रता से कहती हैं।
"हेलो, बेटा!" विकास मुस्कराते हुए जवाब देती है, "मेरा बेटा भी आप ही की उम्र का है। अच्छा जी… तो फिर मिलते हैं। और हां, वन्स अगेन थैंक्यू!"
थोड़ी देर की यह मुलाक़ात मानो सुबह की ताज़ी हवा जैसी हल्की-सी मुस्कान छोड़ गई। तीनों अपने-अपने रास्ते चल दिए। घर की ओर लौटते-लौटते अब आसमान पूरी तरह रोशन हो चुका था, सुनहरी धूप की किरणें धरती को आलोकित करने लगी थीं।
क्रमशः