काल कोठरी-------(2)
ये उपन्यास एक रचित सत्य कहानी की कलाई थामे है, इसे झूठा मत समझा जाये। ये दीपक जो सब घटनो का स्मोहिक कारण था जिसे सब मालम था। वो अभी तक चुप था। नाश्ते मे पूरी और छोले बन चुके थे, साथ मे रेता था गाज़र का। रविवार खूब मजे है, उसके बच्चों को पता था ... दिल्ली की शाहबाद जैन कलोनी मे पिछले एक साल से रह रहे थे।
अख़बार पढ़ते पढ़ते एक दम अचबित, हैरत, हैरानी सब इकठे हो कर आये थे। काले अक्षरों मे लिखा था.... एक हादसा जबरदस्त... कौन करेगा सफर... दीपक हैरान था,
लिखा था, जो पढ़ कर उसको विश्वास कैसे हो सकता था।
एक को पेड़ पर चुन्नी से लटका दिया था शायद उस आदमी का नाम भी लिखा था ---- और लड़की जो थी, लम्बे लम्बे नाखुनो से जख्मी हालत मे सदमे मे पड़ी हॉस्पिटल मे थी। जाखड़ कलोनी के साथ लगते पुलिस स्टेशन मे ये वारदात दर्ज थी।
विसमय जनक स्तिथि थी। दीपक कुछ फैसला लेता है... पर रोजा को बताये बिन ले नहीं सकता था।
कया करे बताये या ना....
पुलिस वारदात की जगह को एक पीली पटी से कवर कर रही थी। टायरो के निशान की पिक भी लीं गयी थी। पूछताछ जारी थी... कया कयो हुआ?? इतना बड़ा हादसा। कौन है इसके पीछे।
तभी दीपक के एक रंग आ रहा था एक जा रहा था। सोच रहा था जो होयेगा देखी जायेगा। पर रोजा फिर प्रश्न बन जाती थी ?
कया करे , कया न करे। बतायू तो वोह बेहद परेशान होंगी। चलो नहीं बताऊ गा किसी को भी.... पर वो शुक्र है। फिर हसी ख़ुशी मे शमिल हो गया था। एक भय था, डर था।
फिर रोजा को बता कर किसी काम के बहाने किसी दोस्त के यहाँ निकल गया।
नग्न हालत मे आदमी की लाश हॉस्पिटल मे थी...
उस लड़की को सदमा लगा था, पुलिस भी जान नहीं सकी थी।
" जो मुजरिम नहीं था, सत्य के आधारित बात करने के लिए पुलिस खाने मे गया था.... वही कार मे... शक कर मतलब किसी ऊपर है ही नहीं था।
उसने ये भी नहीं सोचा, " कोई यकीन करेगा भी या नहीं..... "
सीधा उसको ही मिला जो इस केस कर हेड था।
हेड.. एक बूढ़ा सा पुलिस वाला asi लगा था मुझे, पर वो sho cid डापार्टमेंट का था... जिसकी पावर तो पूछो मत।
नाम वर्दी पे अंकित था ----: घोसले... बस इतना ही।
वो बिना परमिशन के बैठ गया, घोसले ने कुछ नहीं बोला, पता नहीं कयो?
फिर दीपक बोला थोड़ा सा भय करता हुआ... " सर... सर "
घोसले ने फिर देखा शायद ----" कहो कया पूछना है, वैसे तुम किस की परमिशन से बैठे हो।'"
एक दम दीपक डर गया। खड़ा हो गया। " सोरी सर, पूछा नहीं... "
" ओह... ओह.. बैठो बैठो। " उसने रुखा बोला खुद शर्म आयी शायद।
" सर हम कही चाये पीने चले ----" दीपक ने सहानुभूति से कहा।
पहली मुलाक़ात। वो भी अफसर से। " कुछ कहना चाहते हो " घोसले ने निर्भय कहा।
"हाज़ी। " घोसले ने कहा यही कह लो फिर।
नहीं सर, कोई बहुत जरुरी बात है... " दीपक ने भय मे कहा।
ओह - ओ - यही कह दो। "
"नहीं सर " दीपक ने जैसे हठ की हो।
अच्छा चलो फिर.... लाला जगत जी मेरे आने तक रात के केस के लिए करवाई कोई हुई या नहीं ---- या Dsp को बोल दू। " ये कहते वो दीपक संग चल पड़ा।
दीपक धीरे था, अफसर साथ तेजी मे।
"साथ चलो जवान "
नहीं सर आप बड़ी पोस्ट के है... मै एक ड्राइवर... "
तभी घोसले को शक हो गया कोई बात है इसके पास। भलेमान्स आदमी से पहली दफा आज उसको डर लगा।
चाये के डाबे पे --------
"चाये वाले ने, हर किसी ने घोसले को प्रणाम किया होगा।" ये इस लिए कोमो मै दर्ज है कोई खास किस्म की पहचान है उस आदमी घोसले की। आगे पता चल जायेगा।
समय उस वक़्त 12 वजे दिखा रहा था।
(चलदा ) ------------- नीरज शर्मा
शहकोट, जालंधर
पिन :- 144702