Kaal Kothri - 7 in Hindi Horror Stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | काल कोठरी - 7

Featured Books
  • ગર્ભપાત - 11

    ગર્ભપાત - ૧૧   સાવિત્રીએ જ્યારે સવારે પોતાના કામકાજ પતાવીને...

  • ભૂલ છે કે નહીં ? - ભાગ 65

    દિકરો બિમાર હતો એમ મમ્મીએ માન્યું કે નહીં એ તો ખબર નહીં પણ એ...

  • આશાનું અજવાળું

    આશાનું અજવાળુંચાર વૃદ્ધ માતાજીઓ એક ગામના ઝાડ નીચે બેઠી હતી....

  • અકસ્માત

             વહેલી સવારે અચાનક પત્ની સાથે સાપુતારા જવાનો અને વસં...

  • તુ મેરી આશિકી - 3

    ️ ભાગ ૩ ️ "હજી બાકી છે બધું…"પ્રારંભ – હાથમાં હાથ, પણ રાહ પડ...

Categories
Share

काल कोठरी - 7

काल कोठरी -------(7)

                      जिंदगी कभी कभी सब किसी  को हैरत मे डाल देती है। सुन कर हैरान हो जाओगे.... इतना कि सोचने पर मजबूर....

नग्न अवस्था मे स्टेचर पे लेटी वो जिन्दा थी।उसका चेहरा आम था, वाल भी आम ही थे... जो सुना था कया वो गलत था.. हाथ भी एक दम आम थे। जो इंसानों के होते है। दीपक जयादा सिरस सी शरीर मे आपने महसूस कर रहा था।

                पुलिस आज फिर साथ थी। बयान लेते वक़्त सब के होश उड़ गए थे। आवाज बेहद तेज और किस की थी। कोई जान नहीं पा रहा था।

                            हैरत मे थे सब।

" मैं कौन हूँ.... जानना चाहते हो, मै चड़ेल हूँ.....

सब का खतमा कर दूगी। मेरे से उलझो नहीं। दीपक ने मुझे देखा है। उसको छोड़ कर सब का बुरा हाल कर दूगी।

मैं इसके शरीर को नहीं छोड़ोगी। समझे या नहीं। चले जाओ। " ये आवाज इतनी भारी थी कोई भी वहा टिक नहीं सका।

डॉ खुद सहम गए थे।

खुद दीपक भी... खुद जो रिकार्ड हुआ, वो कभी सुना ही नहीं गया। पता कयो रिकॉड ही नहीं हुआ।

पुलिस से जानकारी दीपक ने लीं।

"ये लड़की कौन है....?"

"ये सुजाता पंडित.... दिल्ली की मशहूर मॉडर्न, मंडी बज़ार की मॅहगी काल गर्ल है। " सुपेरडेंट पुलिस यादव ने कहा।

"दीपक मुझे कुछ भी जो देखा बताओ गे।"

"कया सर "

"वो जो उस रात देखा। "

"नहीं सर ---- रहने दें.... वो जो भी है, शांति चाहती है...

आप हनुमान जी का चलीसा लगवा दें... हॉस्पिटल मे.. उसी रूम मे.... "

दीपक  टूटे पेड़ की तरा बैठ गया।

फिर ग्वाहो के रजिस्टर पे सिग्नेचर कर वो घर जाने लगा।

तभी उसके दिमाग़ मे आया।

कयो न उसी बाजार का गेड़ा निकाल लिया जाए। यहाँ सुजाता रहती थी।

ये सत्य कथा पर एक लम्बी कहानी है... जिसका एन्ड नहीं है।

पहले इस लिए बता रहा हूँ... इससे कया जुडा कया जुदा है कोई नहीं जानता।

बहुत कुछ अडिग रहना पड़ता है।

बहुत कुछ भूल जाना पड़ता है।

नहीं भूलो गे, तो खत्म हो जाओगे।

दीपक उस फेल्ट मे पहुंच गया था... यहां वो लेडीज रहती थी। वो बोली... " कयो  गाहक हो । "

"नहीं " वो गहरी निगहा से देख रही थी....

"जानने आया हूँ, सुजाता यही रहती थी। "

"कया हुआ सुसरी को... धोकेबाज थी धोखा दें गई। "

"नहीं "  

"फिर कया हुआ "

"कुछ नहीं.... घर मे कौन कौन है उनके..."

"उनके घर एक माँ है... जो किसी से भाग गई थी... और वो भी तीन दिन से दिखी नहीं। "

"कया सोच रहे हो.... ये गहराई नापने की युक्त ला रहे हो "

दीपक हस पड़ा... " तुम ज़ब उसे जानोगी... तो हैरत मे होंगी। जानते है.. सब लोग कि वो हॉस्पिटल मे ग्रस्त किसी बीमारी मे झूज रही है। "

तीन लड़की और हाजिर हो गई।

हम उसे देखने जाएगी। "चलो हमें लेकर "

दीपक ने कार मे चारो पाचो को बिठा लिया था।

मंजिल की और रवाना।

कैसी जिंदगी है, चक्र की तरा घूम ती।

जो रूकती नहीं......

छोड़ कर दीपक आपने फ्लेट की और निकल चूका था।

तभी मोबाइल की घंटी वजी। ये मोबाइल घोसले का था।

दीपक बोला " जी सर "

" हाँ दीपक ----- मै हेड क्वाटर से बोल रहा हूँ.... "

"जी सर "

"हाँ अभी हॉस्पिटल पहुंच जाओ, जल्दी मे नहीं, धीरे धीरे-----"

चुपचाप निकल पड़ा... दीपक।

लगा हुआ था भजन बाके बिहारी के।

सोच रहा था, कितना हैरत अंगेज है।

शायद ही कोई यकीन करे, कैसी हालत सब की पतली सी, कोई कुछ भी परमात्मा के आगे अरदास ही कर सकता है, परमात्मा सब रुहो को शांति प्रदान करे।

सोचते सोचते हॉस्पिटल आ गया था। सनाटा पसरा हुआ था। फोटोग्राफर अख़बार वाले सब घूम रहे थे, वक़्त दुपहर के दो वजे थे।

(चलदा )                 ----- नीरज शर्मा