— एक डरावनी यात्रा, जो ज़िंदा निगल जाती है।
🔷 पात्रों के नाम:
1. नायक: विराज सरीन (30 वर्षीय, डॉक्यूमेंट्री मेकर)
2. कैमरामैन: रवि कौशल
3. गाइड: भीम थापा (नेपाल निवासी, रहस्यमयी)
4. पंडित: आचार्य उग्रसेन (तांत्रिक और पुरातत्ववेत्ता(
भाग 1: बुलावा
विराज सरीन को डर नहीं लगता था।उसने अफगानिस्तान के खंडहरों में रातें गुज़ारी थीं, अंडमान के वनवासियों से आमना-सामना किया था, और पाकिस्तान सीमा के पार झाड़ियों में दुबक कर डॉक्यूमेंट्री शूट की थी।लेकिन जो उसे मिला था एक पुरानी सीडी में, वह… कुछ और ही था।
सीडी में केवल आवाज़ें थीं —घने जंगलों के बीच… हवा की तेज़ सिसकारियां, फिर एक औरत की लंबी, कराहती सी चीख... और फिर सन्नाटा।
उस सीडी पर एक नाम लिखा था — "अंधी घाटी"।
वह जगह भारत-नेपाल सीमा पर थी। स्थानीय जनजातियाँ उस नाम को लेते ही काँप उठती थीं। वहाँ कोई नहीं जाता था।लेकिन विराज जाना चाहता था।---📕
भाग 2: प्रवेश
17 मई की सुबह, विराज, रवि (कैमरामैन), आचार्य उग्रसेन और भीम थापा (लोकल गाइड) लेकर जंगल में घुसे।
भीम ने आखिरी चेतावनी दी,>
“यदि आप सूरज डूबने के बाद वहाँ रहे, तो देवी खुद आपके भीतर उतर जाएंगी… फिर न आप होंगे, न आपका शरीर।”
विराज मुस्कराया, “इसीलिए तो आए हैं।”घाटी में घुसते ही मोबाइल सिग्नल बंद हो गया।कैमरे की बैटरी अचानक गिरने लगी।हर दिशा में सन्नाटा…
लेकिन लगता था जैसे पेड़ों के पीछे कोई छिपा हो।---📕
भाग 3: अनजाने संकेत
रात को उन्होंने एक प्राचीन गुफा खोज निकाली।भीम ने कहा कि ये वही जगह है जहाँ "सांवली देवी" को ज़िंदा जलाया गया था।गुफा की दीवारों पर खून जैसे किसी लाल पदार्थ से कुछ लिखा था।आचार्य उग्रसेन ने पढ़ा —>
“जो बोलेगा उसका गला सूख जाएगा, जो देखेगा उसकी आंखें फूटेंगी, और जो सुनेगा, वह उसके जैसा बन जाएगा…”
रवि ने मज़ाक में कहा — “किसका जैसा?”
लेकिन तभी कैमरा ऑन हो गया — अपने आप।स्क्रीन पर एक चेहरा दिखा…
आधा जला हुआ, और आधा मुस्कुराता हुआ।---📕
भाग 4: उतरती आत्मा
आधी रात को पंडित उग्रसेन गुफा के बाहर निकले —
उनके मुंह से अजीब ध्वनियाँ निकल रही थीं।भीम ने कहा, “वो जाग गई है।"तभी ज़मीन हिलने लगी।चारों ओर से स्याह धुंध घिर आई।गाइड भीम जोर से चीखा —> “अब तुम सब उसी के हो!
”अचानक, भीम ने रवि के गले को पकड़ लिया और ज़मीन पर गिरा दिया।रवि तड़पने लगा…
और फिर एक झटका…
उसकी आंखें बाहर निकल आईं।उग्रसेन अब जमीन पर बैठ, मंत्र बुदबुदा रहे थे —पर वो मंत्र नहीं लग रहे थे...
वो कुछ बहुत पुरानी भाषा थी...
शायद मानव सभ्यता से भी पहले की...---📕
भाग 5: अंत नहीं...आगाज़ है
विराज अब अकेला था।कैमरा चालू था, और उसमें एक ही शब्द बार-बार गूंज रहा था —
"वह तुम्हें देख रही है..."
गुफा की दीवारें खून से लथपथ हो चुकी थीं।वह भागा… चीखता हुआ… मगर बाहर आने पर कुछ अजीब था।
घाटी से बाहर वह अपनी टीम की तलाश में इधर-उधर भागा…
पर किसी का कोई नामोनिशान नहीं था।तीन दिन बाद उसे एक स्थानीय पुलिस चौकी के पास बेहोश पाया गया।---📕
भाग 6: लौटने वाला शरीर…आत्मा नहीं
अब 6 महीने हो गए हैं।विराज का शरीर ज़िंदा है…
पर डॉक्टर कहते हैं —>
“उसकी पुतलियां बिल्कुल गायब हैं… वो देख नहीं सकता… लेकिन कभी-कभी लगता है कि वो हमें देख रहा है।”
वह कभी-कभी बुदबुदाता है —>
“मैं अकेला नहीं आया… वह अब तुम्हारे भीतर है… तुम्हारी आँखों के पीछे…”
कहानी का अंतिम संदेश:>
“कुछ घाटियाँ इसलिए अंधी नहीं होती कि वहां रोशनी नहीं है,बल्कि इसलिए कि वहां सच को देखना मना है…
-समाप्त-
लेखक:- शैलेश वर्मा