That rainy night: A story of untold love in Hindi Love Stories by Shailesh verma books and stories PDF | बारिश की वो रात: एक अनकही मोहब्बत की दास्तान

Featured Books
Categories
Share

बारिश की वो रात: एक अनकही मोहब्बत की दास्तान

भूमिका

कुछ कहानियाँ समय की सीमाओं में नहीं बंधतीं। वे आँखों से नहीं, दिल से महसूस होती हैं। यह एक ऐसे ही प्रेम की दास्तान है, जो समाज के बंधनों से परे थी। जिसमें प्रेम था, प्यास थी, कसक थी, और एक ऐसा मिलन जिसने दो आत्माओं को एक कर दिया—शरीर से नहीं, भावनाओं की गहराई से।

पात्र परिचयअविरल वर्मा (29 वर्ष) – दिल्ली में मल्टीनेशनल कंपनी का मैनेजर, अत्यंत भावुक, पढ़ा-लिखा, लेकिन रिश्तों से ठगा हुआ।सारिका सिंह (26 वर्ष) – लखनऊ की रहने वाली, नृत्य और साहित्य में रुचि रखने वाली, विवाहिता लेकिन अपने जीवन से असंतुष्ट।

पहली मुलाकात – शहर की भीड़ में एक खामोश रिश्ता

यह सब एक साहित्यिक संगोष्ठी में शुरू हुआ जहाँ अविरल और सारिका दोनों ही आमंत्रित वक्ता थे। पहली नज़र में ही कुछ ऐसा था जो दोनों को भीतर तक छू गया। अविरल को सारिका की आँखों में उदासी दिखी, और सारिका को अविरल की बातों में एक अधूरापन महसूस हुआ।

कहते हैं, कभी-कभी कुछ आँखें बातें कर जाती हैं, जहाँ शब्दों की ज़रूरत नहीं होती।

कविताएँ और कॉफ़ी

संगोष्ठी के बाद अविरल ने एक कॉफी के बहाने बात करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सारिका ने हल्की मुस्कान के साथ स्वीकार कर लिया। बातचीत के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि दोनों ही भीतर से बेहद अकेले थे।

सारिका ने बताया कि वह एक विवाह में बंधी है, लेकिन उसमें आत्मा का कोई जुड़ाव नहीं है। उसका पति व्यस्त और उदासीन है। अविरल ने भी कबूल किया कि उसका पूर्व प्रेम विवाह से पहले ही खत्म हो गया था।

भावनाओं की परतें

कुछ ही मुलाकातों में उनके बीच एक ऐसा जुड़ाव बन गया जो शब्दों से नहीं, अहसासों से पनपा। वे घंटों बात करते, कविताएँ साझा करते, और एक-दूसरे की चुप्पी में खुद को ढूँढते।

वो पहली बारिश

दिल्ली की उस पहली मानसूनी रात, जब सारी सड़कें भीग रही थीं, अविरल ने सारिका को अपनी गाड़ी में छोड़ने का प्रस्ताव दिया। गाड़ी के शीशे पर गिरती बूँदों के बीच, भीतर कुछ और ही बह रहा था। सारिका की आँखों में एक डर भी था और एक चाह भी।

अविरल ने धीमे से उसका हाथ पकड़ा और कहा, “मैं तुम्हें छूना नहीं चाहता, मैं तुम्हें महसूस करना चाहता हूँ।”

वो रात उन्होंने साथ बिताई—न किसी वासना के लिए, न किसी लालच के लिए—बस एक-दूसरे की हथेलियों की गर्माहट में सुकून खोजते हुए।

सारिका का द्वंद्व

सारिका हर बार जब अविरल के पास आती, वो गिल्ट उसे भीतर से खा जाता। लेकिन जितनी बार वो दूर जाने की कोशिश करती, उतनी ही बार उसकी आत्मा उसे अविरल के पास खींच लाती।

उसने कई बार पूछा, “क्या ये गलत है?” और हर बार अविरल ने उत्तर दिया, “अगर प्रेम गलत है, तो फिर संसार का कोई रिश्ता सही नहीं।”

जिस्म से आत्मा तक का सफर

एक दिन जब वे ऋषिकेश गए, तो गंगा के तट पर दोनों ने मौन व्रत लिया—कि आज सिर्फ़ भावनाओं की बात होगी। लेकिन वहीं रात जब बारिश तेज़ हुई और वे एक पहाड़ी लॉज में ठहरे, तो सर्दी ने उन्हें करीब ला दिया। अविरल ने जब उसके बालों से पानी हटाया, तो सारिका की आँखें बंद हो गईं।

उनकी सांसों की लय एक हो गई। वो रात एक नृत्य जैसी थी—शब्दहीन, संगीतमय, आत्माओं का मिलन।

अपराधबोध और निर्णय

अगले दिन सारिका बहुत शांत थी। उसने कहा, “मैं अब इस रिश्ते को संजोकर रखना चाहती हूँ—एक पवित्र स्मृति की तरह। मैं अपने पति से अलग नहीं हो सकती, लेकिन तुम मेरे जीवन की वो कविता बन चुके हो, जो किसी पुस्तक में नहीं, मेरे हृदय की दीवार पर लिखी है।”

अविरल ने केवल इतना कहा, “कभी जब जीवन थम जाए, तो मेरी कविता को पढ़ लेना... शायद मैं वहीं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होऊँ।”

समाप्ति नहीं, एक शुरुआत

सारिका लौट गई। अविरल फिर अकेला हो गया, लेकिन अब वो अकेलापन खाली नहीं था। वो सारिका की मुस्कान, उसकी कविताएँ, उसकी साँसें अपने भीतर महसूस करता रहा।

उसने सारिका को एक आखिरी मेल लिखा:

"तुम्हारे जाने के बाद भी, तुम यहीं हो। मेरी चाय की भाप में, मेरी किताब के पन्नों में, मेरी साँसों में। तुम थी, तुम हो, तुम रहोगी... बस एक नाम नहीं, एक एहसास बनकर।"

निष्कर्ष:

ये कहानी सिर्फ़ रोमांस या आकर्षण की नहीं थी। ये उस अधूरे प्यार की थी, जो पूरा होकर भी अधूरा था।

"कुछ रिश्ते जिस्म तक नहीं जाते, फिर भी आत्मा तक पहुँच जाते हैं..."

[समाप्त]

(यह कथा साहित्यिक प्रेम पर आधारित है, जहाँ प्रेम की गहराई, संवेदनशीलता और भावनात्मक अंतरंगता को मर्यादित और सौंदर्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है।)

-समाप्त-


लेखक:-शैलेश वर्मा