भूमिका:
1 जुलाई 2018 की सुबह दिल्ली का बुराड़ी इलाका, जो आमतौर पर शांत और घरेलू माहौल के लिए जाना जाता था, उस दिन एक भयानक दृश्य का गवाह बना। एक ही परिवार के 11 लोग अपने ही घर में मृत पाए गए — 10 लटके हुए और एक ज़मीन पर। यह खबर कुछ ही घंटों में पूरे देश और मीडिया में फैल गई। किसी को विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा सुनियोजित और एक जैसा आत्महत्या जैसा दृश्य किसी आम परिवार के साथ हो सकता है।
यह सिर्फ एक अपराध नहीं था, यह एक मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रहस्य था। एक ऐसा रहस्य, जिसने देश को हिलाकर रख दिया और आज भी अनेक प्रश्न अनुत्तरित हैं।पहला भाग: बत्रा परिवार – बाहर से सामान्य, अंदर से रहस्यपूर्ण
यह परिवार 'भाटिया परिवार' के नाम से जाना जाता था। यह मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र में रहता था।
मुखिया ललित भाटिया, उसका भाई भवनेश, उनकी मां नारायण देवी, और अन्य परिजन — कुल 11 सदस्य। यह परिवार 20 सालों से अपने मोहल्ले में निवास कर रहा था, किराना दुकान और फर्नीचर का व्यवसाय करता था, सभी पढ़े-लिखे, सभ्य, और धर्म में आस्था रखने वाले लोग माने जाते थे।
परिवार के किसी भी सदस्य में ऐसा कुछ नहीं दिखता था जो मानसिक रोग या असामान्य व्यवहार का संकेत देता हो। यही कारण था कि जब सबकी एक साथ मौत हुई, लोग स्तब्ध रह गए।दूसरा भाग: वह सुबह – 1 जुलाई 2018
सुबह लगभग 7 बजे एक पड़ोसी घर पर दूध देने आया तो दरवाजा खुला पाया। जब उसने अंदर झाँका, तो जो देखा उसने तुरंत पुलिस को फोन कर दिया।
घर के ड्राइंग रूम में दस शव छत की लोहे की जालियों से लटके हुए थे – आँखों पर पट्टियाँ, मुँह पर रूमाल, हाथ-पाँव बंधे हुए। एक महिला – नारायण देवी – का शव ज़मीन पर मिला।
पुलिस जब पहुंची, तो शुरू में इसे 'सामूहिक आत्महत्या' माना गया, लेकिन स्थिति बेहद रहस्यमयी थी।तीसरा भाग: घर के अंदर – तांत्रिक संकेत और 11 पाइप
जांच में पुलिस को घर में कई चौंकाने वाले सुराग मिले:घर की दीवार पर बाहर की ओर 11 पाइप निकले हुए थे — जिनमें 7 नीचे झुके थे, 4 सीधे। यही संख्या घर के मृतकों की मुद्रा से मेल खा रही थी।पूजा के कमरे में कई रजिस्टर और डायरी मिलीं जिनमें लिखा था: "काया को त्यागो", "निर्देशों का पालन करो", "आंखें बंद रखो, कोई गलती नहीं होनी चाहिए"।पूरे घर में धार्मिक सामग्री, अनुष्ठान संबंधी सामान, और ध्यान की मुद्राओं में बंधे शव मिले।चौथा भाग: डायरी और 'ललित का निर्देश'
डायरी में जिन निर्देशों का उल्लेख था, वे ललित भाटिया के मन में आए "आत्मिक निर्देशों" से प्रेरित थे। वह यह मान चुका था कि उसके मृत पिता की आत्मा उसके शरीर में प्रवेश कर उसे मार्गदर्शन देती है।
ललित ने एक अजीब तरह की तांत्रिक साधना शुरू की थी जिसे परिवार के बाकी सदस्य भी आस्था के साथ पालन करने लगे थे।
डायरी में एक दिन विशेष – 30 जून से 1 जुलाई की रात – को 'मोक्ष प्राप्ति' की रात बताया गया था। उसी के अनुसार, सबने आँखों पर पट्टी बांधकर, हाथ बाँधकर, और एक विशेष मुद्रा में फंदे से लटकने का 'अनुष्ठान' किया।पाँचवां भाग: हत्या, आत्महत्या या तंत्र?
तीन संभावनाएं शुरू में थीं:
सामूहिक आत्महत्या:सबने खुद फंदा लगाया।आत्मा से बात करने की तांत्रिक साधना के चलते किया गया।
हत्या:कोई बाहरी व्यक्ति आया और पूरे परिवार को मार डाला?मगर दरवाजे अंदर से बंद थे। कोई जबरन घुसा नहीं।
तंत्र साधना में दुर्घटना:यह मोक्ष प्राप्ति के लिए किया गया अनुष्ठान था, जिसमें विश्वास था कि समय पर आत्मा आकर उन्हें मुक्त करेगी। शायद वे सोच रहे थे कि वे मरेंगे नहीं।छठा भाग: पुलिस जांच और निष्कर्ष
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने महीनों तक जांच की। मोबाइल रिकॉर्ड, कॉल डेटा, मानसिक स्वास्थ्य का मूल्यांकन, सीसीटीवी फुटेज, पोस्टमार्टम रिपोर्ट – सभी पहलुओं को खंगाला गया।
आखिरकार पुलिस ने निष्कर्ष दिया: यह एक तांत्रिक प्रभाव में की गई सामूहिक आत्महत्या थी।
ललित भाटिया प्रमुख व्यक्ति था, जिसने निर्देश दिए, परिवार ने उस पर भरोसा किया और अंधभक्ति में यह कदम उठा लिया।सातवाँ भाग: मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विश्लेषण
मनोविश्लेषकों ने इसे 'Shared Psychotic Disorder' (Folie à famille) कहा — एक व्यक्ति की मनोविकृति पूरी फैमिली को प्रभावित करती है।
धार्मिक अंधश्रद्धा, मानसिक बीमारी का न पहचानना, और सामूहिक आस्था ने 11 लोगों की जिंदगी छीन ली।आठवाँ भाग: मीडिया और जन-प्रतिक्रिया
यह मामला पूरी दुनिया की मीडिया में छाया रहा। डॉक्यूमेंट्री, वेब सीरीज (Netflix – "House of Secrets: The Burari Deaths") बनीं। लोग दहशत में थे कि एक शिक्षित, सामान्य परिवार ऐसा कैसे कर सकता है।
धार्मिक विश्वास और विज्ञान के बीच की खाई पर बहस छिड़ गई।समापन:
बुराड़ी केस भारत के सबसे रहस्यमयी और भयावह अपराधों में से एक बन गया। यह केवल अपराध नहीं, बल्कि समाज, मनोविज्ञान और आस्था की गहराइयों को दिखाने वाला केस था।
यह घटना आज भी एक प्रश्न की तरह जीवित है:
"क्या यह अंधविश्वास की जीत थी, या एक मानसिक बीमारी की सामूहिक विफलता?"
"क्या उन्हें मोक्ष मिला? या वे धोखे में मारे गए?"
यह कहानी डराती है, सोचने पर मजबूर करती है, और समाज को चेतावनी देती है कि आँखें बंद कर किसी पर विश्वास करना कितना खतरनाक हो सकता है।
"बुराड़ी केवल एक हादसा नहीं था, यह एक संकेत था – चेतने का, जागने का।"
[समाप्त]
लेखक:-शैलेश वर्मा