भाग 1: नींद से पहले की रात
कमरे में सिर्फ़ एक बल्ब जल रहा था — पीली, थकी हुई रोशनी में दीवारें चुपचाप साँस ले रही थीं। एक खामोशी जो सतह पर ठंडी लगती थी, पर भीतर आग जैसी सुलगती। आरव की आँखें छत पर टिकी थीं, लेकिन उसका दिमाग़ कहीं और भटक रहा था। दीवार पर टिक-टिक करती घड़ी की आवाज़ उसके दिल की धड़कनों से मेल खा रही थी।
हर रात की तरह, आज भी वही नर्स आई थी। उसके हाथ में ट्रे थी — दवा, पानी, और वही बेमन मुस्कान। “सो जाइए, सर,” वो बोली। “कल फिर वही सेशन है।”
आरव मुस्कराया नहीं। उसने दवा ली, लेकिन निगली नहीं। जैसे उसका दिमाग कह रहा हो — "आज नहीं… आज कुछ याद आएगा।"
लाइट बंद होते ही कमरे में अँधेरा नहीं, बल्कि एक अजीब-सी ऊर्जा भर गई। आँखें खुद-ब-खुद बंद हो गईं। और तभी…
...एक चेहरा सामने आया।
लंबे खुले बाल, सफ़ेद कुरता, और वो मुस्कान — जैसे उसने पूरी दुनिया को हँसना सिखा दिया हो। लेकिन आज उसकी आँखें खाली थीं। जैसे वो किसी सवाल से भरी हुई थीं।
“सना…” उसने नाम बुदबुदाया।
पर तभी — एक आवाज़ आई। “तुम मुझे ढूंढ क्यों रहे हो, आरव?”
वो आवाज़ सिर्फ़ आवाज़ नहीं थी — वो एक झटका था, एक कम्पन। उसने कमरे की हवा तक को भारी बना दिया। आरव चौंक गया। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
"तुम मुझे पहचानते हो ना…?" "या फिर तुमने भी मुझे बाकी सबकी तरह भुला दिया?"
आरव के माथे पर पसीना आ गया। वो सपना था… या सच?
आरव उठ बैठा। कमरे की दीवारें जैसे और पास आ गई थीं — या फिर वो खुद ही अंदर सिकुड़ गया था। सब कुछ जैसे सिकुड़ कर एक ही बिंदु पर आ गया हो — उस नाम पर… सना।
वो टेबल की दराज खोलता है — और एक पुराना नोटबुक बाहर निकालता है। धूल लगी हुई, किनारे मुड़े हुए। उस पर लिखा था: “याद मत करना... वापस लौट जाओ।”
आरव के हाथ काँपते हैं। वो पन्ने पलटता है। हर पन्ना एक उलझन है। कहीं सना की स्केच, कहीं बीच में अधूरे वाक्य — "उस दिन झील पर जो हुआ…"
लेकिन वो वाक्य कभी पूरा नहीं होता। जैसे किसी ने जानबूझ कर उसे वहीं रोक दिया हो। जैसे कुछ छुपाना ज़रूरी था।
वो फुसफुसाता है: “क्यों कहा गया मुझे कि याद मत करूं?” “किसे डर है मेरे याद करने से?” “और… क्या वाकई मैं बीमार हूँ?”
हर सवाल जैसे खुद से ही टकराता है, और कमरे की दीवारों में खो जाता है।
आरव की आँखों में अब नींद नहीं, बल्कि सवाल थे। वो हर रात उस लड़की को देखता है… पर दिन में सब धुंधला हो जाता है।
क्या ये सब बस दिमाग़ का खेल है? या… किसी ने उसे उसकी ही यादों की जेल में कैद कर दिया है?
कमरे की दीवारें अब फिर से शांत थीं… लेकिन अब आरव जानता था — कुछ तो है जो जाग रहा है। और वो सिर्फ़ उसका दिमाग़ नहीं है। वो कोई और भी है… जो उसके साथ हर रात जागता है… उसे देखता है… और इंतज़ार करता है…
अगली कड़ी में पढ़िए: भाग 2: आईना और एक चेहरा — जब आरव ने पहली बार उसे देखा था…