भाग 7: भूलना… या भुला दिया जाना?
आरव अब सिर्फ़ अपने सवालों से नहीं जूझ रहा था,
बल्कि अपनी यादों से भी लड़ रहा था।
अब समस्या यह नहीं रह गई थी कि सना कौन थी,
बल्कि यह हो गई थी कि वो खुद कौन है?
सुबह जब उसकी नींद टूटी, तो उसे लगा सब सामान्य है।
नाम — आरव मेहता।
उसे याद था।
पर जैसे ही वो उठकर आईने के सामने खड़ा हुआ, एक अजीब सा खालीपन उसकी आँखों में उतर आया।
उसने खुद से पूछा —
“मैं कहाँ से आया हूँ?
मेरा घर कहाँ है?
मेरा कॉलेज कौन सा था?
मेरा कोई परिवार है क्या?”
जवाब… कुछ भी नहीं।
वो अलमारी के पास गया, जहाँ उसकी डायरी रखी थी —
हर रात के सपनों, थैरेपी के अनुभवों और शक की परतों से भरी डायरी।
लेकिन आज… वो कोरी थी।
सभी पन्ने खाली —
जैसे कभी कुछ लिखा ही न गया हो।
अब डर उसके अंदर नहीं, उसकी हड्डियों में उतर चुका था।
वो सीधा डॉक्टर मेहरा के पास पहुँचा, आँखों में बेचैनी और होंठों पर काँपता सवाल:
“मेरे साथ कुछ हो रहा है… मेरी यादें जा रही हैं…
किसने किया ये सब?”
डॉक्टर मेहरा ने गहरी साँस ली। उनकी आँखें आरव से नहीं मिल रहीं थीं।
फिर उन्होंने वही वाक्य कहा, जो किसी हथौड़े की तरह आरव के मन पर गिरा:
“तुम खुद कर रहे हो, आरव।”
आरव सन्न।
“क्या मतलब?”
डॉक्टर समझाने लगे —
“कभी-कभी दिमाग़, खुद को किसी बहुत बड़े सदमे से बचाने के लिए
कुछ यादों को लॉक कर देता है…
या मिटा देता है।
ये प्रक्रिया अवचेतन होती है।
ताकि जो सहा है, वो फिर से महसूस न हो।”
लेकिन आरव को यकीन नहीं हुआ।
“अगर मैंने खुद अपनी यादें मिटाईं…
तो ‘सना’ का नाम बार-बार क्यों लौटता है?”
डॉक्टर चुप हो गए। पहली बार उनकी चुप्पी में डर था।
उस रात, आरव को नींद नहीं आई।
अब सपनों से डर नहीं लग रहा था — हकीकत से लग रहा था।
वो चुपचाप अस्पताल के उस पुराने हिस्से की तरफ गया जहाँ रिकॉर्ड रूम था —
धूल, जाले, जंग लगे ताले, और बीते हुए वर्षों की गंध।
वहाँ एक अलमारी के सबसे निचले खाने में एक पुराना बॉक्स रखा था।
बॉक्स में पड़ी थी एक कैसेट —
सामने हाथ से लिखा हुआ:
“Aarav / Sana – Final Session”
पास ही एक पुराना वॉकमैन रखा था।
उसने कैसेट डाली। “प्ले” बटन दबाया।
पहली आवाज़ — सना की थी।
“आरव… क्या तुम जानना चाहते हो कि क्या सच है?”
उसके बाद आरव की आवाज़ — लेकिन जैसे उसकी आत्मा थकी हुई थी।
“मैं सच जानता हूँ…
लेकिन मेरा दिमाग़ उसे नहीं मानता।”
फिर एक लंबा सन्नाटा।
और फिर… सना की आखिरी पंक्तियाँ:
“तो फिर मैं जा रही हूँ…
और तुम सब भूल जाओगे।
हमेशा के लिए।”
टेप वहीं खत्म हो गई।
आरव अब उस कमरे में अकेला था — लेकिन उसकी साँसें अब और तेज़ थीं।
क्या सच में उसका दिमाग़ ये सब मिटा रहा है…?
या…
कोई और उसकी यादों में घुसकर, सच्चाई के पन्ने फाड़ रहा है?
किसी ने —
उसकी डायरी गायब की,
थैरेपी रिकॉर्ड हटाए,
और शायद… सना को उसकी ज़िंदगी से मिटा दिया।
अगली कड़ी में पढ़िए:
भाग 8: फाइल नंबर 72
(जो सना से जुड़ी आखिरी कड़ी थी… और शायद आरव से भी।)