विवेक की परेशानी....
अब आगे.................
विवेक पीछे मुड़कर बबिता से अचानक रोकने का कारण पूछता है....." क्या हुआ ताई...?..."
बबिता घबराई सी आवाज में कहती हैं....." साहब ..." विवेक बबिता की बात को काटते हुए कहता है...." पहले तो आप मुझे भी अदिति की तरह ही बोलो ये साहब वगैरह मत बोलो , आपको अदिति और भाई ने घर के सदस्य की तरह माना है... आपकी वजह से हम आदित्य भाई को हाॅस्पिटल ले गए नहीं तो वो तक्ष पता नहीं क्या कर देता....."
बबिता की आंखों में आंसू आ जाते हैं और रूंधे हुए गले से कहती हैं...." मुझे माफ़ कर दीजिए अगर मैं आपको पहले ही सबकुछ बता देती तो ये सब नहीं होता, मैं अपनी बेटी को बचाने के चक्कर में कुछ नहीं बोल पाई अब चाहे मेरी बेटी रहे या नहीं लेकिन मैं इन्हें कुछ नहीं होने देना चाहती..."
विवेक हैरानी से पूछता है....." पहले क्या बता देती....?...."
बबिता अपनी आंखों से आंसू पोछकर कहती हैं...." ये तक्ष एक बहुरुपिया पिशाच है , किसी के भी रूप में आ जाता है इसने अदिति दी को बहुत नुकसान पहुंचाया है ..."
विवेक बबिता की बातों गौर से सुनता हुआ कहता है....." आप मुझे ये सब बाद में बताना पहले अदिति को होश में लाना होगा और फिर आदित्य भाई को...."
बबिता विवेक को समझाती है..." आप इन्हें नहीं छू सकते पता नहीं उस पिशाच ने क्या किया है जिससे मेरे छूते ही एक झटका सा लगा..."
विवेक बबिता से कहता है....." आप चिंता मत करो मुझे कुछ नहीं होगा..." इतना कहकर विवेक अदिति के पास जाता है , जैसे ही विवेक अलमारी की तरफ हाथ बढ़ाता है बबिता बस मन हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही थी..." हे भगवान अदिति दी को बचा लो....." विवेक बबिता की इतनी परवाह देखकर उससे कहता है...." आप जैसा हर कोई नहीं होता अपनों से ज्यादा गैरों की इतनी चिंता कोई नहीं है। आपको यहां लाकर भाई और अदिति ने मां जैसा एहसास ही पाया होगा...."
बबिता विवेक से कहती हैं....." मुझसे अच्छे तो अदिति दी है बिना देर किए हर किसी की मदद के लिए हां कर देती है....."
विवेक अदिति की तरफ देखकर..." सही कहा इसके इसी भोलेपन का फायदा उस तक्ष ने उठाया है.... खैर अभी तक्ष से बाद में निपटूंगा पहले मेरी को ठीक कर दू....."
विवेक अदिति को उठाने की वाला था की अचानक उसे लगा जैसे किसी ने अदिति को उससे दूर खिंच लिया हो.... अचानक अदिति के और दूर जाने से बबिता और विवेक दोनों हैरानी से उसे देखते हैं.... विवेक उसे देखता हुआ कहता है....." ये कैसा ट्रेप है....?..." गुस्से में खुद अलमारी के अंदर बढ़ता है उसके अंदर जाते ही पैशाची जाल खत्म हो जाता है और विवेक अदिति को बाहर लाकर अपनी गोद में उठाकर बाहर की तरफ जाता है.....!
बबिता उसके पीछे ही नीचे पहुंचती है... विवेक अदिति को सोफे पर लेटाता और बबिता से पानी लाने के लिए कहता है.... बबिता जल्दी से पानी का गिलास लेकर आती है और उसे विवेक को देती है..... विवेक अदिति के फेस पर पानी की छिंटे मारता है लेकिन उससे अदिति के शरीर में कोई हरकत नहीं होती ...
विवेक अदिति के चेहरे पर हाथ रखते हुए कहता है...." अदिति उठ जाओ प्लीज़ ... मुझे तुम्हें अकेले छोड़ना नहीं चाहिए था.....ताई क्या कह रही थी आप क्या किया उस तक्ष ने अदिति के साथ....."
बबिता सोचती हुई कहती हैं...." तक्ष एक पिशाच है मुझे ये बात तब पता चली थी जब उसके मुंह पर खून लगा था और वो खुद अपने उस भंयकर रूप में आया था..." इतना कहकर बबिता डर से कांपने लगती है विवेक उसे शांत रहने के लिए कहता है....
बबिता आगे बताती हैं...." उसने उस दिन ही मुझे मेरी बेटी को मारने की धमकी देकर अदिति के खून को मांगा था....!
विवेक : लेकिन आपसे क्यूं...?
बबिता : ये तो नहीं पता लेकिन मुझे माफ़ कर देना मैं उसकी धमकी से डर गई थी मैं अपनी बेटी को नहीं खोना चाहती थी इसलिए उसके कहने को माना लेकिन अब नहीं मेरी बेटी को कुछ भी हो लेकिन मैं अब आपका साथ दूंगी....
विवेक उसे रिक्लेस रहने के लिए कहता है और वही सुरक्षा कवच लाकेट निकालता हुआ उससे कहता है...." लो ताई घबराने की जरूरत नहीं है इसे आप अपनी बेटी को पहना देना उसके बाद उसे कुछ नहीं होगा...."
बबिता लाकेट को लेते हुए कहती हैं....." आपका आभार कैसे...
तभी विवेक बबिता की बात को काटते हुए कहता है....." उसकी जरूरत नहीं है आपने अदिति को ढूंढा है और मुझे कुछ नहीं चाहिए....
बबिता विवेक को आगे कहती हैं....." विवेक जी वो पिशाच अदिति दी के खून का प्यासा है जब भी उसके अपने अंदर कमजोरी होने लगती है वो इनके खून को पीता है....."
विवेक गुस्से में कहता है...." तो उस दिन उस के निशान थे अदिति के हाथ पर...."विवेक अदिति को देखते हुए कहता है..." मेरी अदिति को नुकसान पहुंचाने के लिए तक्ष को इसका एक एक हिसाब देना पड़ेगा । उसे मैं जिंदा नहीं छोडूंगा.... " विवेक की नजर अदिति के गले में पड़े लाकेट पर जाती है जिसे पकड़ता हुआ कहता है....." तो ये है दूसरा वशीकरण लाकेट....." विवेक उस लाकेट को अदिति के गले से निकालने की कोशिश करता है लेकिन वो लाकेट हिलता तक नहीं है...
बबिता तुरंत कैंची लेकर आती है और विवेक को देती है..."लिजिए इससे क्या पता ये दूर हो जाए...."
लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं होता वो कैंची से उस लाकेट को नहीं काट पाता .....
विवेक झिल्लाते हुए कहता है....." इस लाकेट को निकाल क्यूं नहीं पा रहा हूं मैं ..., ऐसा क्या है इस लाकेट में जो मेरे छूने से भी नहीं निकल रहा है क्या रूद्राक्ष शक्ति से बड़ी है ये.... नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता.....ताई एक कपड़ा और एक कटोरी देना....."
बबिता जल्दी से दोनों चीजें लेकर आती है....
बबिता : लिजिए....
विवेक उस कटोरी में अघोरी बाबा के लिए हुए सुगंधि को हाथों से पिसकर कपड़े में लपेटकर अदिति को सूंघाता है.... इसके सूंघने से अदिति एक गहरी सांस लेकर दोबारा से शांत हो जाती है...
विवेक परेशान होकर उसे देखता हुआ बोला....." अदिति इससे तो तुम्हें होश आ जाना चाहिए था फिर....अब मैं क्या करूं....?...."
.......…............to be continued.................
क्या करेगा विवेक....?
कैसे होश में लाएगा अदिति को जानने के लिए जुड़े रहिए
आपको कहानी कैसी लगी मुझे रेटिंग करके जरुर बताएं.....