एक आंसू की बूंद....
उसे और उसकी बहन को....."
अब आगे...................
विवेक का उसकी बातें सुनकर खुन खौल उठा था अगर तक्ष सामने होता तो उसे वो वहीं मार देता लेकिन अदिति की परवाह की वजह से वो चुपचाप काॅल कट करके कार ड्राइव करते हुए सोचने लगता है....." मुझे इसे किसी भी तरह अदिति से दूर रखना होगा, ये आखिरी सुरक्षा लाकेट अदिति को पहनाना होगा..और भाई की जान भी खतरे में... आखिर ये ऐसा कर क्यूं रहा है....?.... मुझे उसके कीड़े से ही ये जानना होगा, आखिर वो भी बोल सकता है....." विवेक पूरी स्पीड में कार ड्राइव करते हुए जा रहा था कुछ देर में वो चौधरी मैंशन पहुंच जाता है......
विवेक सीधा अंदर पहुंचता है तो देखता है सुविता जी परेशान सी इधर उधर घूम रही थी और बाकी सब बैठे हुए सुविता जी को देख रहे थे......
विवेक के हाॅल में पहुंचते ही उसे देखकर सुविता जी उसके पास आकर कहती हैं....." विवू ये सब क्या हो रहा है...?..."
विवेक सवालिया नज़रों से सुविता जी को देखते हुए कहता है...." क्या बात है बड़ी मां क्या हुआ...?..."
सुविता जी उसी परेशानी भरे शब्दों में पूछती है....." विवू अदिति यहां है और वो भी कब से बेहोश हो रखी है, माला कह रही थी उसने काफी देर तक उसकी ठंडे पानी की पट्टी रखी लेकिन विवू अदिति तो हाॅस्पिटल में थी अचानक ये सब.... क्या बात है विवू....?...."
विवेक उन्हें शांत करते हुए कहता है...." रिलेक्स बड़ी मां सब ठीक हो जाएगा , मैं सब बताऊंगा आपको लेकिन अभी नहीं...."
मालती जी विवेक के पास आकर उसे अपनी तरफ करते हुए कहती हैं....." क्या बात है विवेक..?...तू बता क्यूं नहीं रहा है...?..."
" मां मैंने कहा न मैं सब बताऊंगा पहले अदिति को होश आने दो फिर...." विवेक कहकर विवेक वहां से सीधा अपने रूम में चला जाता है और दरवाजा बंद कर लेता है......
विवेक उस beaker को निकालता है जिसमें उसने उबांक को बंद कर रखा था, उसे निकालकर देखता है तो वो उसमे बेहोश पड़ा था, उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे अब वो ज्यादा टाइम तक जिंदा नहीं रह सकता है इसलिए विवेक सारी विंडो को बंद करके उसे उस beaker में से बाहर निकालता है.....
उसके बाहर निकालते ही उबांक अपने असली चमगादड़ के रूप में आ जाता है जिसे देखकर विवेक थोड़ा डर जाता है क्योंकि वो चमगादड़ दिखने में आम चमगादड़ जैसी नहीं थी....
उबांक गुस्से में उसे देखता हुआ उसपर हमला करता है लेकिन उसकी रूद्राक्ष शक्ति की वजह से उसे छूकर नीचे गिर जाता है । विवेक उसे उठाता है जिससे वो जोर जोर से फड़फड़ाने लगता है .... विवेक उसके पंखों को बांधकर उससे पूछता है....." कौन है तू...?...और तेरा ये पिशाच तक्ष नहीं गामाक्ष अदिति और भाई के जान के पीछे क्यूं पड़ा है....?..."
उबांक कुछ नहीं कहता बस गुस्से में जोर जोर से उसकी कैद से आजाद होने की कोशिश कर रहा था लेकिन विवेक उससे चिल्लाकर पूछता है......" बोल क्या चाहते हो तुम दोनों नहीं मैं तुझे ऐसे ही तड़पा के मार दूंगा...."
उबांक कर्कश आवाज के साथ चिल्लाने लगता है जिससे पूरा घर उसकी आवाज से गूंज उठता है..... जिसे सुनकर सब विवेक के कमरे की तरफ आ जाते हैं.....इस आवाज को न सह पाने की वजह से सब अपने अपने कान बंद कर लेते हैं और अमरनाथ जी ज़ोर ज़ोर से दरवाजे को नाॅक करते हुए कहते हैं....." विवेक.... दरवाजा खोल..... कैसी आवाज है ये बंद कर इसे .... बहुत तेज लग रही है इसकी आवाज...."
विवेक उसे चिल्लाने के लिए मना करता है लेकिन उबांक उससे कहता है....." तू मेरा कुछ नहीं बिगड़ा सकता बस छः दिन बाकी हैं फिर हमेशा के लिए पिशाच राज मुक्त हो जाएंगे.... तुझे तेरी इस शक्ति पर बड़ा घमंड हो रहा है उसे वो पल में खत्म कर देंगे......दानव राज मुझे बचाने जरूर आएंगे फिर वो खत्म कर देंगे तुझे....."
विवेक उसकी बातों से उलझन में पड़ जाता है और तुरंत उसकी गर्दन को पकड़ते हुए कहता है....." उससे पहले मैं तुझे ही मार देता हूं....."
उबांक अपनी इस कर्कश आवाज को और तेज करता है लेकिन इस बार विवेक को मुंह को ही बंद कर देता है जिससे रूद्राक्ष ऊर्जा की वजह से वो फिर से बेहोश हो जाता है.....
विवेक उसकी इन बातों से अनजान आखिर ये आवाज़ क्यूं निकाल रहा था वहीं तक्ष को ये पता चल जाता है उबांक किसी खतरे में है जो उसे पुकार रहा है इसलिए उसे ढूंढने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करता है जिससे उसे ये पता चल जाता है कि उबांक को विवेक ने कैद रखा है... विवेक की इस हरकत से तक्ष की आंखें गुस्से से लाल हो जाती है और जोर से कहता है......" सबसे पहले तुझे मरना होगा....."
विवेक उबांक को अपने रूम में सिक्रेट अलमारी में बंद कर देता है और फिर कमरे का दरवाजा खोल देता है जिससे जल्दी से सब अंदर आकर कहते हैं..." विवेक ये सब क्या था...?..."
" कुछ नहीं है यहां वो मैं होम थिएटर ठीक कर रहा था तो ऐसा साउंड हुआ था....."
विवेक के चेहरे पर टेंशन साफ दिख रही थी जिसे समझते हुए कहती हैं......." विवू तुझे झूठ बोलना भी नहीं आता , मैं तुझे अच्छे से जानती हूं तू इन सब कामों को कभी नहीं करता है जरूर कोई और बात है जो तुझे परेशान कर रही है...."
कामनाथ जी उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहते हैं....." हमारे बेटे को कौन सी परेशानी है जो परेशान कर रही है जरा मैं भी तो देखूं...."
" नहीं बड़े पापा , बड़ी मां मैं बिल्कुल ठीक हूं.... मैं जरा अदिति को देखकर आता हूं...." विवेक इतना कहकर वहां से सीधा अदिति के रुम की तरफ चला जाता है.....
विवेक रुम में पहुंचता है और अदिति को वैसे ही बेहोश देखकर उसके चेहरे पर उदासी ही जा जाती है.... विवेक उसके पास जाकर बैठता हुआ उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहता है......" अदिति होश में क्यूं नहीं आ रही हो.... क्या मुझे इस तरह से पनिशमेंट दोगी.... देखो मुझे तुम्हारा इस तरह चुप रहना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है प्लीज़ स्वीट हार्ट उठ जाओ...." विवेक की आंखों में आंसू आ जाते हैं जिसकी एक बूंद उसकी आंखों पर गिरती है
.............................to be continued................