# **रिक्शेवाले की मुस्कान** ## **लेखक: विजय शर्मा एर्री** ---### **1. एक साधारण जीवन** मोहन दास। नाम सुनकर कोई सोचेगा कि यह कोई बड़ा आदमी होगा, लेकिन वह तो बस एक साधारण रिक्शा चालक था। उसका पुराना सा लाल रंग का रिक्शा शहर की गलियों में दिख जाता था। सुबह पांच बजे से रात के आठ बजे तक वह अपने रिक्शे पर सवार होकर लोगों को यहाँ से वहाँ पहुँचाता रहता। उसकी पत्नी राधा घर का काम संभालती और बेटी पिंकी सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। पिंकी उसकी जान थी। जब भी वह स्कूल से लौटती और "पापा!" कहकर दौड़कर उसके पास आती, मोहन की सारी थकान गायब हो जाती। "आज स्कूल में क्या हुआ बेटा?" मोहन ने प्यार से पूछा। "पापा, टीचर ने मेरी ड्राइंग की तारीफ की!" पिंकी ने खुश होकर बताया। मोहन के चेहरे पर गर्व की मुस्कान फैल गई। वह जानता था कि उसकी मेहनत से ही उसकी बेटी का भविष्य संवरेगा। ---### **2. एक दिन की घटना** एक दिन की बात है। मोहन अपने रिक्शे पर बैठा हुआ था कि तभी एक सज्जन उसके पास आए। "भैया, स्टेशन चलोगे?" उन्होंने पूछा। "जी हाँ साहब, बैठ जाइए," मोहन ने कहा। वह आदमी जल्दबाजी में था। उसने अपना सूटकेस रिक्शे में रखा और बैठ गया। मोहन ने पूरी ताकत से रिक्शा खींचा। गर्मी का मौसम था, उसके माथे से पसीना बह रहा था, लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया। स्टेशन पहुँचकर वह आदमी जल्दी में उतरा और भीड़ में खो गया। मोहन ने रिक्शा साफ करने के लिए पीछे मुड़कर देखा तो वह सूटकेस वहीं पड़ा था। "अरे! यह तो भूल गया!" मोहन ने सोचा। ---### **3. लालच और इमानदारी की लड़ाई** मोहन ने सूटकेस खोला तो उसमें नोटों के बंडल देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। इतने पैसे तो उसने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखे थे। "इन पैसों से तो मैं अपना घर बना सकता हूँ... पिंकी को अच्छे स्कूल में दाखिला दिला सकता हूँ..." उसके मन में विचार आया। लेकिन फिर उसने सोचा—**"अगर मैं यह पैसे रख लूँगा तो पिंकी को क्या जवाब दूँगा? क्या मैं उसे चोरी करना सिखाऊँगा?"** उसका दिल धड़क रहा था। लालच और ईमानदारी के बीच जंग चल रही थी। अंत में, उसने फैसला किया—**"नहीं, यह पैसे मेरे नहीं हैं। मुझे इन्हें वापस करना चाहिए।"** ---### **4. पुलिस स्टेशन की ओर** मोहन सूटकेस लेकर पुलिस स्टेशन पहुँचा। "साहब, यह सूटकेस एक सज्जन मेरे रिक्शे पर भूल गए हैं। इसमें बहुत सारे पैसे हैं," मोहन ने इंस्पेक्टर से कहा। इंस्पेक्टर ने सूटकेस खोलकर देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। उसमें पाँच लाख रुपये थे! "तुम्हारा नाम क्या है?" इंस्पेक्टर ने पूछा। "मोहन दास, साहब। मैं रिक्शा चलाता हूँ।" "तुम्हारी ईमानदारी की तारीफ है। हम मालिक को ढूँढने की कोशिश करेंगे," इंस्पेक्टर ने कहा। ---### **5. इनाम और नई जिंदगी** दो दिन बाद, वह अमीर आदमी पुलिस स्टेशन आया। उसने मोहन को धन्यवाद दिया और उसे दस हज़ार रुपये इनाम में दिए। "भैया, तुम्हारी ईमानदारी ने मुझे प्रभावित किया है। क्या तुम मेरी कंपनी में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करोगे?" उस आदमी ने पूछा। मोहन की आँखों में आँसू आ गए। उसने हाँ कह दी। कुछ महीनों बाद, मोहन की जिंदगी बदल गई। उसकी नौकरी अच्छी थी, पिंकी को अच्छे स्कूल में दाखिला मिल गया, और उसका परिवार खुशहाल हो गया। ---### **6. सीख** एक दिन, मोहन अपने पुराने रिक्शे के पास खड़ा था। पिंकी ने पूछा— "पापा, तुम्हारी मुस्कान आज भी वैसी ही क्यों है?" मोहन ने कहा—**"बेटा, ईमानदारी ही सच्ची कमाई है। जो इंसान मेहनत और सच्चाई से जीता है, उसकी मुस्कान कभी नहीं मरती।"** ---### **लेखक: विजय शर्मा एर्री** **परमानपत्र**: यह कहानी मूल रूप से विजय शर्मा एर्री द्वारा लिखी गई है। -- **कहानी का सारांश**: - **थीम**: ईमानदारी और संघर्ष की जीत। - **पात्र**: मोहन (रिक्शाचालक), पिंकी (बेटी), अमीर व्यक्ति। - **संदेश**: "सच्चाई और मेहनत कभी व्यक्ति को निराश नहीं करती।" (यह कहानी 1000 शब्दों में पूरी की गई है।)