उत्तर प्रदेश के एक दूरदराज गांव "कुंवरगंज" के किनारे एक पुरानी हवेली खंडहर बन चुकी थी, लोग कहते थे उस हवेली में कोई रूह रहती है, जो हर पूर्णिमा की रात को जागती है, उस हवेली का नाम था "ठाकुर हवेली", और गांव में हर कोई उस हवेली का नाम सुनकर ही कांप उठता था, कहते हैं वहां रात में रोशनी जलती है, मगर अंदर कोई नहीं होता, कोई हंसी की आवाज सुनाई देती है और दीवारों पर खून के हाथों के निशान दिखते हैं, मगर सब डर के मारे कुछ बोलते नहीं, कहानी की शुरुआत होती है शहर से आए पांच दोस्तों से – अर्पित, मानव, दीपांशी, शौर्य और मान्या – ये सभी डॉक्यूमेंट्री बनाने वाले स्टूडेंट थे, और सुना था उन्होंने उस हवेली के बारे में एक पुराने इंटरनेट फोरम से, सबने तय किया कि गांव जाकर एक रात उस हवेली में बिताएंगे और सब रिकॉर्ड करेंगे, गांव वालों ने लाख मना किया, पर ये युवा आत्मविश्वास से लबरेज थे, "भूत-वूत कुछ नहीं होता", अर्पित ने गांव के पुजारी से कहा, पुजारी ने सिर्फ इतना कहा, "अगर जाना है तो सूरज ढलने से पहले लौट आना, वरना सूरज उगते तक कोई नहीं लौटेगा", वो सब हँसते हुए हवेली की तरफ निकल पड़े, हवेली की दीवारें काली पड़ चुकी थीं, छत पर काले कौए बैठते थे और चारों तरफ झाड़ियों में सांप रेंगते थे, जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, ज़मीन पर धूल का तूफान उठा, अंदर घुसते ही उन्हें एक तेज़ बदबू आई, जैसे किसी सड़े हुए शरीर की, कैमरे ऑन किए गए, अर्पित बोल रहा था, "देखिए दर्शकों, हम आ चुके हैं शापित हवेली में…", तभी दीवार पर अचानक खून के छींटे दिखाई दिए, पर किसी को चोट नहीं लगी थी, सबने सोचा यह कैमरा लाइट्स का असर होगा, तभी मानव ने एक कमरा खोला और अंदर एक पुरानी तस्वीर देखी – एक लड़की जिसकी आंखों से खून बह रहा था, और उसके गले में काली माला थी, पीछे दीवार पर लिखा था – "वापस जाओ", पर इन सबका उत्साह बढ़ता गया, उन्होंने हवेली के हर कोने में घूमकर देखा, पर जैसे-जैसे रात बढ़ी, घटनाएं बदलने लगीं, दीपांशी अचानक चिल्लाने लगी, "मेरे बाल कोई खींच रहा है!", सबने देखा उसके बाल सच में ऊपर की ओर खिंच रहे थे पर वहां कोई नहीं था, शौर्य ने कैमरा घुमाया तो उसमें एक काली परछाईं दिखाई दी जो धीरे-धीरे दरवाजे के पीछे छुप गई, मान्या रोने लगी, "हमें यहां से जाना चाहिए", लेकिन दरवाजा अब बंद हो चुका था, लाख खींचने पर भी दरवाजा नहीं खुल रहा था, अब सबके चेहरों से हँसी गायब थी, हवेली की सीढ़ियों से किसी के दौड़ने की आवाज़ आ रही थी, जैसे कोई ऊपरी मंज़िल पर भाग रहा हो, सबने दौड़कर ऊपर देखा तो एक लड़की सफेद लिबास में खड़ी थी, उल्टे पाँव, बाल खुले और आंखों से खून टपकता हुआ, उसकी हंसी ऐसी थी जैसे किसी ने कानों में काँच भर दिए हों, अर्पित चिल्लाया, "हम माफ़ी चाहते हैं! बस हमें जाने दो!", लड़की ने बस एक बार कहा, "तुम सब अब वही भुगतोगे जो मैंने भुगता था…" और तभी कमरे के सारे बल्ब फूट गए, एक ज़ोर की चीख और सब अंधेरे में गुम हो गए, कुछ देर बाद सबकी आंखें खुलीं, तो खुद को उन्होंने एक कुएं के पास पाया, उनके हाथ बंधे हुए थे, और कुएं में खून उबल रहा था, फिर वह लड़की आई – अब उसके साथ चार और औरतें थीं, सबके चेहरे जले हुए थे, और वो सब मिलकर कह रही थीं, "हम थीं हवेली की दासियाँ, ठाकुर ने हमारे साथ किया बलात्कार, जिंदा जला दिया हमें इसी हवेली में, अब जो भी यहां आएगा, उसका वही हाल होगा", अर्पित रोते हुए बोला, "हमें जाने दो, हम तुम्हारी कहानी दुनिया को बताएंगे", तभी एक रूह ने कहा, "दुनिया को नहीं, आत्माओं को चाहिए बदला", और तभी मानव को कुछ खींचकर कुएं में फेंक दिया गया, सब चिल्लाए पर उसकी चीखें गूंजती रहीं, कैमरे में रिकॉर्ड हो रहा था सब, दीपांशी अब पागलों की तरह चिल्ला रही थी, उसने अपनी आंखें फोड़ लीं, मान्या बेहोश हो चुकी थी, शौर्य कांपता हुआ बोला, "हम माफ़ी मांगते हैं", तभी हवेली की दीवारों से आग निकलने लगी और वहां की हर आत्मा एक-एक कर गायब हो गई, अचानक दरवाजा खुला और सूरज की पहली किरण अंदर आई, बच गए सिर्फ तीन – अर्पित, शौर्य और बेहोश मान्या, गांव वालों ने अगले दिन उन्हें मंदिर के बाहर पाया, सब चुप थे, पुजारी ने बस इतना कहा, "हवेली एक बार फिर जागी थी…", कैमरे की रिकॉर्डिंग आज भी इंटरनेट पर घूमती है, पर कोई देखने के बाद 3 दिनों में पागल हो जाता है, गांव वालों ने अब उस हवेली को जला दिया है, लेकिन हर पूर्णिमा की रात उस जले हुए खंडहर से अब भी हँसी आती है, और कहते हैं – जो भी हवेली का नाम बुलंद आवाज़ में लेता है, उसकी रूह वही कैद हो जाती है, आज भी अगर आप "ठाकुर हवेली" कहें और आंखें बंद करें, तो कोई आपके कान में कहेगा – "अब तेरी बारी है…