मेरे नाम अद्विका है, मैं एक ट्रैवल ब्लॉगर हूँ। दुनिया के कई कोनों में घूमी, लेकिन ऐसी रहस्यमयी यात्रा कभी नहीं की थी।
एक शाम मुझे एक काले लिफाफे में एक पत्र मिला —
"यदि तुम सच में यात्रा करना चाहती हो, तो GPS मत खोलना... नीले द्वीप तक पहुँचने के लिए बस अपनी अंतरात्मा की दिशा पकड़ो।"
पत्र में एक अजीब-सा नक्शा बना था, जिसमें भारत के दक्षिणी छोर से एक रेखा समुद्र के बीचों-बीच जाती थी — किसी अनदेखे, अनसुने ‘नीले द्वीप’ की ओर।भाग 2: समुद्र की पुकार
मैंने बिना किसी तकनीकी सहायता के यात्रा शुरू की। कन्याकुमारी पहुँचकर मैंने एक पुरानी नाव किराए पर ली। नाव वाला बूढ़ा आदमी था, जिसने मुझसे कहा —
“जिस दिशा में सूरज डूबे, उसी ओर जाना। पर संभल कर जाना, वहां समय की धाराएं उलटी चलती हैं।”
तीन दिनों की थकी हुई, अकेली यात्रा के बाद, अचानक समुद्र की लहरों ने रंग बदलना शुरू किया — नीला आसमान, नीला पानी, और हवा में भी नीली खुशबू।
मैं ‘नीले द्वीप’ पर पहुँच चुकी थी।भाग 3: वो द्वीप... जहां कोई समय नहीं
यह द्वीप किसी सपने जैसा था। यहाँ कोई इंसान नहीं दिखा, लेकिन हर पेड़ की पत्तियाँ शुद्ध नीले रंग की थीं। फूल चांदनी की तरह चमकते थे।
हर चीज़ जैसे मुझसे कुछ कहना चाहती थी। जब मैंने वहां की मिट्टी को छुआ, तो मेरी आंखों के सामने मेरा बचपन, फिर जवानी, फिर बुढ़ापा चलने लगा — जैसे समय एक दर्पण बन गया हो।
मैं समझ गई — ये द्वीप कोई आम जगह नहीं है। यह “काल-वीथिका” है — समय से परे एक जीवित स्थान, जो केवल उसी को मिलता है, जो आत्मा की आवाज़ सुनने आया हो।भाग 4: रहस्य का उत्तर
तीन दिन तक मैं द्वीप पर रही, लेकिन वहां न भूख लगी, न प्यास। तीसरे दिन एक महिला मिली — पूरी नीली पोशाक में, चमकती आंखों वाली।
वो बोली,
“हर सौ वर्षों में कोई एक यात्री यहाँ आता है, जो खुद से मिलने आया हो। तुम्हारा मन अब शुद्ध है, तुम लौट सकती हो।”
मैंने पूछा, “क्या यह सब सपना था?”उसने मुस्कराकर कहा,
“यात्रा कभी सपना नहीं होती… वो आत्मा की सबसे सच्ची उड़ान होती है।”भाग 5: वापसी और एक नई शुरुआत
जब मैं वापस लौटी, दुनिया वही थी — पर मैं बदल चुकी थी। मोबाइल, पैसे, लाइक्स — सब बेमानी लगे।
अब मैं सिर्फ एक काम करती हूँ — लोगों को उनकी आत्मा की यात्रा पर भेजना।
पर हाँ, ‘नीले द्वीप’ का नक्शा अब किसी और को नहीं भेजा गया... शायद अगली सदी के लिए।
यात्रा कथा – "नीले द्वीप का रहस्य"भाग 2: अतीत की छायाभूमिका:
पहली यात्रा में अद्विका ‘नीले द्वीप’ पहुंची थी — एक ऐसी जगह जो समय से परे थी। उसने वहां की गहराइयों को छुआ, खुद से मुलाकात की और लौटी। लेकिन नीले द्वीप ने उसे पूरी तरह छोड़ नहीं दिया था...दृश्य 1: चिट्ठी एक बार फिर
अद्विका की जिंदगी सामान्य हो चुकी थी। वह अब हिमालय की तलहटी में एक छोटा सा ट्रैवल रिट्रीट चलाती थी, जहां लोग “खुद से मिलने” आते थे।
एक सुबह उसकी किताबों के बीच वही काला लिफाफा फिर मिला।
इस बार पत्र में लिखा था –
“तुम लौट चुकी हो, लेकिन कोई अब भी अटका है… नीले द्वीप से कभी लौटा ही नहीं। उसे खोजो।”
पत्र के साथ एक पुरानी तस्वीर थी — जिसमें 1972 में लापता घोषित एक लड़का था — "ईशान राय"। और चौंकाने वाली बात… उसका चेहरा अद्विका की किसी पुरानी याद जैसा था।दृश्य 2: दूसरी यात्रा
अद्विका इस बार अकेली नहीं गई। वो एक युवा खोजी पत्रकार "यश" को साथ लेकर गई, जो रहस्यमयी गायब लोगों पर काम कर रहा था।
दोनों ने वही पुराना रास्ता पकड़ा — बिना GPS, बिना नक्शे, बस अंतरात्मा की आवाज़ पर।
समुद्र फिर से नीला हो गया… और नीले द्वीप ने फिर से अपने द्वार खोले। लेकिन इस बार द्वीप शांत नहीं था — वहाँ से समय की लहरें पीछे की ओर बह रही थीं।दृश्य 3: खोए समय का जंगल
द्वीप अब वैसा नहीं था जैसा अद्विका ने देखा था। वहां पेड़ मुरझाए हुए थे, आसमान फीका था। ऐसा लग रहा था जैसे द्वीप किसी की याद में रो रहा हो।
एक झील के किनारे उन्हें एक लड़का दिखा — 1970 के कपड़े पहने, खाली आंखों से झील को देखता हुआ।
ईशान राय।
वो अब बूढ़ा नहीं था… बल्कि वैसा ही युवा था जैसा वह 50 साल पहले लापता हुआ था। समय उसके लिए थम गया था।दृश्य 4: बातचीत आत्मा से
ईशान बोला –
“मैं यहाँ तब से हूँ जब मैंने अपने सपनों से मुंह मोड़ा था। नीला द्वीप उन्हीं को अपने पास रखता है, जो अधूरे होते हैं।”
अद्विका ने उसे हाथ पकड़ कर कहा –
“अब पूरा होने का वक्त है। तुम अकेले नहीं हो। लौटो।”
लेकिन द्वीप काँपने लगा… जैसे वो किसी को छोड़ना नहीं चाहता था। एक भयानक तूफान आने लगा।दृश्य 5: त्याग और वापसी
द्वीप ने कहा —
“या तो ईशान जाएगा, या अद्विका… दोनों नहीं। किसी को हमेशा यहीं रहना होगा, ताकि द्वीप जीवित रहे।”
यश ने बीच में आकर कहा —
“मैं रुकूंगा। मेरी कोई मंज़िल नहीं है… पर तुम्हारी है।”
लेकिन तभी अद्विका मुस्कराई और बोली —
“नहीं… हम तीनों वापस जाएंगे। द्वीप को अब कैद की जरूरत नहीं… उसे यादों की आज़ादी चाहिए।”
उसने अपनी डायरी की एक पंक्ति मिटा दी —"मैं फिर कभी यहां नहीं आऊंगी"और वो लकीर मिटते ही द्वीप धीरे-धीरे नीले धुएँ में बदल गया।दृश्य 6: फिर धरती पर
जब वे तीनों वापस लौटे — समुद्र सामान्य था, समय बह रहा था।
ईशान अब धरती पर था — एक नया जीवन शुरू करने को तैयार। यश अब सिर्फ पत्रकार नहीं था, वो अद्विका का हमराही बन चुका था।
और अद्विका?
उसने अपनी अगली किताब का नाम रखा —
“जो समय में अटका, उसे नीला द्वीप पुकारता है।”
क्या नीला द्वीप अब नष्ट हो गया...?या कोई और आत्मा उसे फिर से ज़िंदा कर देगी...?
अगर आप चाहो तो मैं तीसरा भाग भी लिख दूँ