Ishq Benaam - 10 in Hindi Adventure Stories by अशोक असफल books and stories PDF | इश्क़ बेनाम - 10

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इश्क़ बेनाम - 10

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फैसला

इतनी रात को वह कोई टेक्सी नहीं लेना चाहती थी, मगर लेना पड़ी क्योंकि जगह दूर थी। 

घर पहुँच उसने घण्टी बजाई और दिल धड़धड़ा उठा कि कहीं नताशा से एकाएक सामना न हो जाय! मगर दरवाजा मंजीत ने खोला और वह उसके पीछे अंदर चली आई। फिर डरते-डरते नताशा के कमरे तक भी। पर कमरे के अंदर आकर भी उसने पाया कि नताशा वहाँ नहीं थी। दीवार पर मंजीत के सँग खिंची उसकी फोटो जरूर लगी थी, जिसे वह पहले भी कई बार देख चुकी थी और कइएक दुष्कल्पनाओं में उससे खरीखोटी भी सुन चुकी थी। 

राहत की साँस लेते वह, आज उसी रूम में सोफे पर बैठ गई तो मंजीत भी वहीं उसके सामने कुर्सी डाल कर बैठ गया। 

मंजीत का चेहरा थका हुआ और संजीदा था। रागिनी के दिल में अकथनीय बेचैनी। कमरे में सन्नाटा, जिसे दीवार घड़ी की टिक-टिक तोड़ रही थी। पर उनके बीच की खामोशी को तोड़ा मंजीत के स्वर ने, ‘रागिनी!’

‘हाआ...!’ उसके मुँह से बोल नहीं फूटा, केवल हवा निकल कर रह गई।

‘नताशा ने साफ कहा है’...मंजीत भी मुश्किल से बोल पा रहा था, ‘तलाक देगी, मगर मेरी आधी संपत्ति लेगी। पास में जो कुछ भी है... मकान, गाड़ी, सोना-चाँदी, बैंक बैलेंस, शेयर... उसका फिफ्टी।’

रागिनी यह सुन हिल गई। उसने मंजीत की ओर देखा, आँखों में सवाल तैर रहे थे, ‘फिर, तुम क्या करोगे मंजीत? तुम्हें क्या ठीक लगता है...?’

मंजीत ने सिर झुकाया और गहरी साँस ली, ‘मैं तुम्हारे साथ अपनी जिंदगी शुरू करना चाहता हूँ, रागिनी। लेकिन अ...गर मैं नताशा की शर्त मानता हूँ तो मेरे पास क्या बचेगा? मैं उसकी तरह कोई करोड़पति...’ कहते-कहते वह रुक गया, फिर एक शेर से अपनी बात पूरी की, ‘चबा लें क्यों न खुद ही अपना ढाँचा, तुम्हें रातिब मुहय्या क्यों करें हम!’

‘मतलब!’ रागिनी ने आशंकित स्वर में पूछा।

‘मतलब यही कि, मैं उसकी बात नहीं मानता, तो वो तलाक नहीं देगी।’ मंजीत ने साफ कर दिया।

सुनकर रुख समझ में आ गया, दिल और भारी हो गया। अचानक सुबक पड़ी वह। जैसे, बिछोह फोटो के बगल में दीवार पर लिख गया हो! जी में आ रहा था कि इसी क्षण उठकर भाग जाए; इस घर से ही नहीं, सारे दुनिया-जहान से!

...

रागिनी ने घर आकर देखा कि मां-पिताजी बावले से बैठे थे। उन्होंने उसे एक पत्र भी दिया जो नताशा ने भेजा था। उसकी पंच थी, 'यह आदमी प्यार का नहीं, सेक्स का भूखा है... दो-तीन साल के भीतर ही जिसका मन मुझसे भर गया, वह तुम्हें जिंदगी भर कैसे निभाएगा!’

रागिनी का मन अब इंसानी रिश्तों, प्यार और मोह की जकड़न से मुक्त होने को बेकरार था। नताशा के पत्र ने उसके दिल में प्यार के नाम पर बने हर भ्रम को चूर कर दिया था, और मंजीत की असलियत ने उसे रिश्तों की खोखली सतह दिखा दी थी। वह अब न मंजीत की बातों में सुकून पा सकती थी, न अपने आसपास की दुनिया में। उसका मन बार-बार एक सवाल से जूझ रहा था- अगर प्यार इतना झूठा है, तो जीवन का सत्य क्या है?

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