पिछले चैप्टर में हमने यहां पढ़ की शेखर जी की मां मोहिनी जी की सासू मां तेज जी की पत्नी उर्मिला जी घर आई है वह आते ही मोहिनी जी को ताना देना शुरू करती है। तभी शेखर जी वहां पहुंचते हैं फिर वह उनकी हाल-चाल पूछते हैं ।। तभी शेखर जी की बेटी सच्ची वह आती है और उर्मिला जिसे गाले लगाकर उनसे बातें करती है
पर शेखर जी को इग्नोर करती है । यह बात शेखर जी में दिल में चुभती है।
कपाड़िया मेंशन में आरोही आती है और बच्चो के साथ मिलकर नाश्ता करती है। शिवाय और वनराज मूर्ति लाने के लिए चले जाते हैं।
अब आगे
शिवाय और वनर जिस आदमी से टकराए थे वह कोई और नहीं शेखर जी थे। और उनके साथ उनके दोनों बेटे भी आए थे एक का नाम कश्यप था तो दूसरे का नाम अद्वित।
कश्यप मोहिनी जी की तरह खामोश अच्छे दिल का शांत सोहेल का इंसान था तो वही अद्वित अपने दादी और बाप पर गया था।
कश्यप के मन में शिवाय वनराज या अर्णव जी के किसी भी परिवार के लिए कोई भी बैर नहीं था ना ही मनमुटाव।
पर अद्वित्व को तो किसी चीज की फर्क भी नहीं पड़ता था वह तो बस अपने क्लब दोस्तों और नशे में ही बिजी रहता था।
शेखर जी को वहां देखकर पहले तो व्हेन राजा शिवाय को समझ नहीं आता कि वह क्या बोले फिर भी वह उनसे पैर छूकर आशीर्वाद लेने जाते हैं तो शेखर जी अपने पैर पीछे खींचकर वहां से गुस्से से चले जाते हैं।
उनके जाते ही कश्यप वनराज के पैर छूता है क्योंकि रिश्ते में वनराज सबसे बड़ा था और शिवाय को गले लगाता है।
उसके बाद कश्यप अपने पापा के बर्ताव की वजह से उनसे माफी मांगता है तो वनराज ने कहा इसकी जरूरत नहीं है हम जानते हैं कि वह हमसे गुस्सा है और एक दिन उनका गुस्सा भी शांत हो जाएगा जिस पर कश्यप हां मैं सर हिला लाता है।
तभी कश्यप ने आदित्य से वनराज के पैर छूने के लिए बोलता है पर आदित्य नहीं मानता है।
जिस पर वनराज ने कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है बस अपनी जिंदगी पर अच्छे से ध्यान दो और नशे से दूर रहो। क्योंकि वनराज जानता था कि अद्वित के दोस्त कैसे हैं और वह क्या-क्या करता है वनराज अपने पूरे परिवार का अपडेट हमेशा रखता था कि कौन क्या कर रहा है कौन क्या नहीं।
वनराज की बात सुनकर अद्वित वनराज शिवाय को पूरी तरह से इग्नोर कर कर अपने जेब में हाथ डालकर बड़े एटीट्यूड के साथ वहां से चला जाता है।
उसके ऐसी हरकत पर कश्यप शर्मिंदा हो जाता है और वनराज और शिवाय से माफी मांगता है।
तभी कश्यप के कानों में शेखर जी की आवाज आती है कश्यप तुम्हें आना नहीं है वही ठहरे हुए हो।
शेखर जी की आवाज सुनकर कश्यप वनराज और शिवाय से एक बार फिर से गले मिलकर उन्हें सॉरी बोलकर वहां से चला जाता है।
वनराज और शिवाय भी वहां से चले जाते हैं और मूर्ति को देखते हैं कुछ ही देर में उन्हें एक मूर्ति पसंद आती है और वह मूर्ति के पूजा कर कर मूर्ति पर एक बड़ा सा घुंघट चढ़ा देते हैं जिसकी वजह से मूर्ति का चेहरा दिखाई नहीं देता है।
उसके बाद वह लोग कपाड़िया मेंशन के लिए निकल जाते हैं।
शेखर जी कश्यप और अद्वित लोग भी एक बड़ी सी मूर्ति को चुनते हैं वह भी उसकी पूजा करते हैं और उसे मूर्ति को लेकर वहां से चले जाते हैं।
कपाड़िया मेंशन में
इस वक्त रुचिता हाँल में खड़े होकर जोर से बोलती है जल्दी से सब लोग तैयार हो जाओ शिवाय और वनराज की मूर्ति लेकर वहां से निकल गए हैं।
इतना बोल कर वहां अपने कमरे की तरफ चली जाती है।
और बाकी सभी तैयार होने के लिए अपने-अपने कमरे में चले जाते हैं।
शिवाय के कमरे में इस वक्त कौरव आर्य को आरोही तैयार करती है।
जो आर्य शिवाय के अलावा किसी से तैयार होना पसंद नहीं करता है वह आरोही से एक बार में ही तैयार हो जाता है।
आरोही दोनों को तैयार कर कर कमरे से बाहर भेज देती है।
उसके बाद सन्नवि को लेकर वह भी तैयार हो जाती है।
शाम के 5:00 बजे सभी लोग अपने कमरे में तैयार हो ही रहे थे कि तभी उनके कानों में ढोल की आवाज आती है।
वह लोग बाहर आ जाते हैं तो देखते हैं कि वनराज कार्तिक नाचते हुए माता रानी की मूरत थी को घर के अंदर ला रहे हैं।
तभी इशिता जी उनको रोकती है और घुंघट ऊपर कर कर माता रानी की आरती करती है।
उसके बाद पंडित जी आते हैं और बड़े विधि विधान से माता रानी को मंदिर में स्थापना कर देते हैं।
यहां बड़े लोग माता रानी स्थापना कर रहे थे तो बाहर सभी बच्चे ढोल था शो की आवाज में नाच रहे थे।
शिवाय सभी को नाचते देखकर खुश था कभी वह उसकी नजर अपने बेटे आर्य के ऊपर जाता है जो कायर के साथ नाच रहा था कायर को ही नाचता देखकर शिवाय के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ जाती है क्योंकि आर्य बहुत ही इंटरनेट टाइप का बच्चा है।
तभी वह अपनी नजर इधर-उधर कर कर सन्नवि को देखने लगता है पर उसे सन्नवि कहीं नहीं दिखाई देती है।
तो वह रुचिता जी से पूछता है कि सन्नवि कहां है।
रुचिता जी बोलती है मुझे नहीं पता फिर कुछ सोच कर बोलती है शायद वह आरोही के साथ है या दुर्गा नहीं तो पालकी के साथ होगी।
तभी इशिता जी शिवाय और वनराज के पास आती है और उन्हें रेडी होकर पूजा के लिए आने के लिए कह दिए उनकी बात सुनकर वह दोनों भी वहां से चले जाते हैं।
वनराज अपने कमरे में चल जाता है और शिवाय अपने कमरे की तरफ
जैसे ही शिवाय अपने कमरे का दरवाजा खोलने के लिए आगे हाथ बढ़ाता है और दरवाजा खोल देता है तो वह सामने देखता है तो देखता ही रह जाता है।
क्योंकि उसके कमरे में आरोही और सन्नवि साथ में थे।
इस वक्त दोनों लड़कियां एक दूसरे के साथ फोटो खिंचवा रहे थे दोनों के दोनों बहुत ही ज्यादा सुंदर दिख रहे थे शिवाय तो बस उन्हें देखता ही रह गया।(शिवाय के मन में बैकग्राउंड सोंग हमें तुमसे प्यार है कितना कि हम नहीं जानते मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना)
कपाड़ियाहाउस में
कपाड़िया हाउस मे बी पूजा की तैयारी हो चुकी थी सभी लोग तैयार होकर मंदिर में आते हैं जहां माता रानी की स्थापना की हुई है।
सभी घरवालों ने इस वक्त गुजराती स्टाइल में कपड़े पहने हुए थे।
मोहिनी जी और उर्मिला जी दोनों हरे रंग की साड़ी गुजराती स्टाइल में पहनते हैं। गले में सोने का हर कानों में जो सोने के झुमके माथे पर बिंदी हाथों में ढेर सारी चूड़ियां पूरा साफ सिंगर किया हुआ थादोनों ने।
साची ने गहरी मैरून कलर का घाघरा पहना हुआ था उसे पर पीले दुपट्टा पहना हुआ था हाथों में कानों में और गले में मेटल के चूड़ियां झुमके और हार पहना हुआ था।
पैरों में पायल माथे पर स्टोन वाली छोटी सी बिंदी मुंह पर मेकअप चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान। साच्ची बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही थी .
कश्यप ने हेलो सिंपल कुर्ती पहना हुआ था और अद्वित ने इंडो वेस्टर्न कुर्ता पहना हुआ था।
शेखर जी ने एक सिंपल सा पीले रंग का कुर्ता पहना हुआ था।
इस वक्त वह सभी लोग घर का मंदिर में थे और माता रानी की पूजा कर कर घटस्थापना कर रहे थे।
पंडित जी आरती गा रहे थे और मोहिनी जी और शेखर की आरती कर रहे थे (आरती सॉन्ग)
Maa Durga Aarti : जय अम्बे गौरी, मैया जय
मां दुर्गा की आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी
माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥
जय अम्बे गौरी
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥
जय अम्बे गौरी
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥
जय अम्बे गौरी
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥
जय अम्बे गौरी
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
जय अम्बे गौरी
वहीं दूसरी तरफ कपाड़िया मानसून में भी आरती चल रहा था
वहां भी यही गाना बज रहा थाचण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
जय अम्बे गौरी
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥
जय अम्बे गौरी
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥
जय अम्बे गौरी
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
जय अम्बे गौरी
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
जय अम्बे गौरी
कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
जय अम्बे गौरी
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥
जय अम्बे गौरी
कपाड़िया मेंशन और कपाड़िया हाउस में एक-एक कर कर सभी लोग आरती करते हैं।
पहले जोड़ी करती है फिर सिंगल सिंगल लोग।
जैसे ही शिवाय सन्नवि और आर्य के बारी आरती करने के लिए आती है तो आर्य आरोही का हाथ पकड़ कर आरती करने के लिए लाता है।
आरोही आर्य का मन रखने के लिए आरती करती है उन चारों को देखकर ऐसा लग रहा था यह जैसे पिक्चर परफेक्ट फैमिली हो।
उसके बाद सिद्धार्थ जी और तरुण वीर तीनों मिलकर आरती करते हैं
जया जी को शिवाय और आरोही का इस तरह एक साथ आरती करना पसंद नहीं आता है फिर भी वह कुछ भी नहीं बोलती है और चुपचाप आरती देख रही थी।
आरती खत्म होने के बाद रुचिता सभी लोगों को प्रसाद बंटती है।
तभी ढोल नगाड़ों की आवाज आती है तो देखते हैं कि दुर्गा और कार्तिक दोनों अपने गले में एक-एक ढोल लटका कर ढोल को बजा रहे थे।
ढोल की आवाज सुनकर सभी लोग ढोल के पास जाते हैं और नाचने लगते हैं।
कुछ देर ऐसे ही नाचने के बाद खुशी की चिल्लाते हुए बोली रुक जाओ सब जान पहले व्रत तोड़ते हैं उसके बाद सब लोग गरबा खेलने चलो।
सभी उनकी बात मानते हैं क्योंकि उन्हें भी सुबह से भूख लग रही थी।
सभी लोग व्रत तोड़ने के लिए फूड काउंटर पर जाते हैं जहां पर हलवा पुरी पनीर रायता वेज पुलाव खाना रखा हुआ था।
सभी लोग खाना खाने के लिए लाइन से खड़े हो जाते हैं।
कपाड़िया हाउस मे बी अब तक आरती हो चुकी थी और खाना भी हो गया था सभी ने भरपेट खाना खाया था।
साथी ने व्रत के नाम पर सुबह से लेकर खाना खाने तक कुछ ना कुछ खाया है।
जैसे ही सबका खाना खत्म होता है तो सांची कुछ देर के लिए अपने घर के पंडाल में गरबा खेलती है उसके बाद वह मोहिनी जी के पास जाती है और बोलती है कि वह उसके दोस्तों के साथ गरबा खेलने के लिए बाहर जा रही है।
मोहिनी जी बी से जाने के लिए परमिशन देती है पर कहती है कि देर रात होने पहले से आ जाए सांची अपना सर हमें हिलाती लाती है और वहां से चली जाती है। कपाड़िया मेंशन में अब तक सभी ने खाना खत्म कर लिया था।
दुर्गा बोली सब ने खाना खत्म कर लिया है तो जल्दी से चलो घरब खेलने।
दुर्गा की बात सुनकर इशिता जी बोली 2 मिनट रुको सब जने इतना बोलकर वह एक सर्वेंट को बुलाती है।
इस वक्त अरविंद के हाथ में लाल मिर्च और नमक का था खुशी जी अपने हाथों में लाल मिर्च और नमक लेकर एक-एक लोगों के पास जाकर उनकी नजर उतार रही थी।
तभी खुशी जी के कानों में एक आवाज आती है इट्स नॉट फेयर बड़ी दादी आपने तो सबकी नजर उतारी पर मेरी नहीं।
उसे आवाज को देखकर सभी उस आवाज की तरफ देखते हैं तो सामने साची खड़ी हुई थी इस वक्त साची बहुत ही प्यारी लग रही थी उसके हाथ में एक डांडिया स्टिक का जोड़ा था।
साची जल्दी से भाग कर आती है और खुशी जी के गले लग जाती है उसके बाद वह उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लेती है फिर बारी-बारी सबके पास जाती है।
जैसे वह वनराज और रुचिता के पैर छूने वाली थी तो वनराज उसे कंधे से पकड़ लेता है और उसे बोलता है कि बहन पैर नहीं छुट्टी है वह तो गले लगती है इतना बोलकर वह उसे गले लगाता है।
रुचिता भी उसे अपने गले ही लगती है।
तभी साची शिवाय के पास जाती है वह शिवाय को देखते ही डर जाती है पता नहीं वह बचपन से ही क्यों शिवाय से डरती है वह डरते हुए शिवाय के पैरों को छू रही थी वह शिवाय को पैरों को छुट्टी से पहले शिवाय उसके कंधे को पकड़ता है और उसे प्यार से बोलता है अभी भाई ने कहा ना की बहन पर नहीं छुट्टी है। इतना बोलकर वह साची को गले लगाता है।
साची शिवाय से गले लगा करअलग होती है और बोलती है आई मिस यू भाई। शिवाय बस मुस्कुरा देता है
तभी पालकी और दुर्गा सांची के पास आते हैं और उसे गले लगाते हुए बोले बहुत दिनों के बाद दिखाई हो।
साची बोलती है कि वह बिजी थी इस ही वजह से।
तभी एक मीठी सी आवाज गूंजती है डेड यह कौन है? इन्होंने आपको क्यों गले लगाया है।
तो शिवाय सन्नवी को समझाता है कि वह उस की छोटी बूआ है।
सांची उन दोनों बच्चों को देखते हैं फिर शिवाय की तरफ शिवाय उसे इस तरह देखते देख बोलता है यह दोनों मेरे बच्चे हैं आर्य और सन्नवी।
श
साची भी जल्दी से दोनों बच्चों से गले लग जाती है। और उन्हें किस करने लगती है।
आर्य बोलता है बूई बस करो।
सांची को इस तरह बच्चों के जैसी हरकतें करते देखकर सभी हंसते हैं।
तभी दुर्गा सबका ध्यान अपनी तरफ करते हुए बोली चलो जल्दी से गरबा खेलना है।
उसकी बात मानकर सारी लड़कियां गरबा खेलने के लिए चली जाती है।
इस तरहलड़कियों को गरबा खेलते देखकर बाकी लड़कियों ने खुशी से देख रहे थे।
जब शिवाय यह देखता है कि कार्तिक की नजर दुर्गा से हाट नहीं रही है तो वह कार्तिक के पास जाता है और उसे बोलता है जब तक उसे सच्चा में नज़र नहीं लग जाती, क्या तब तक उसे यू देखा ही रहेगा क्या।
शिवाय की आवाज और बात सुनकर कार्तिक का ध्यान टूटता है और वह शिवाय को घर कर देखते हुए बोला यह बात ना तुम मुझे बाता मत मैंने देखा था कुछ देर पहले क्या हुआ था। इतना बोल कर कार्तिक खामोश हो जाता है।
फ्लैशबैक
जब शिवाय आरोही को अपने कमरे में देखता है तो वह उसे बस देखता ही रह जाता है।
इस वक्त आरोही और संवि दोनों एक दूसरे के साथ मिलकर सेल्फी ले रहे थे दोनों अपने चेहरे अलग-अलग बना रहे थे।
अपनी जिंदगी की दो सबसे खूबसूरत लड़कियों को एक साथ देखकर शिवाय के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आता है।
तभी आरोही की नजर शिवाय की तरफ जाती है तो वह हड़बड़ा जाती है और उसके हाथों से उसका फोन छूट जाता है।
आरोही शिवाय से बोली आई एम ससॉरी मैं गेस्ट रूम में रेडी हो जाती पर दोनों बच्चों को तैयार करवाना था इसलिए मैं यही रेडी हो गई।
आरोही की बात सुनकर शिवाय उसे बोलता है तुमे एक्सप्लेन करने की जरूरत नहीं है। तुम यहां रेडी हो सकती हो। इतना बोलकर सन्नवि के गालों पर किस कर कर क्लोजेस्ट रूम में चला जाता है।
कार्तिक यह सब बाहर कॉरिडोर से देखरहा था।
फ्लैशबैक एंड
कार्तिकेय सब बोलते हु Shivay को शरारती स्माइल दे रहा था। कार्तिक कीबात सुनकर शिवाय अपनी नजर इधर-उधर करता है।
क्या इसी तरह सबकी खुशियां भरकर ए रहेगी या लगेगा कोई ग्रहण जानने के लिए पढ़िए ।