📖 एपिसोड 3 – "टकराव और ठहराव" अनदेखा प्यार
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प्रारंभिक दृश्य – यादों की हलचल
बारिश अब थम चुकी थी, लेकिन फैजल के दिल में जो हलचल उठी थी, वो रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
नाज़ से हुई वो पहली हल्की-सी मुलाक़ात, किताबों के बहाने, चाय की खुशबू में घुलती बातें — सब कुछ जैसे किसी फिल्म का सीन था, मगर ये फिल्म रियल थी… और हीरो खुद को नहीं समझ पा रहा था।
उसने अपनी डायरी में कुछ लिखा:
> "ना मैं तुझे जानता हूँ, ना ही तेरा नाम ठीक से याद है...
फिर भी हर बारिश की बूँद में बस तू ही तू नजर आती है।
ये क्या है?"
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नाज़ – दूसरी तरफ़ की उलझन
नाज़ अपने कमरे में खामोश बैठी थी। हाथ में वही किताब जो लाइब्रेरी से मिली थी, जिसमें फैजल ने वो पंक्तियाँ लिखी थीं। वो बार-बार उस पन्ने को पलटती, पढ़ती और खुद से सवाल करती…
> "कौन है ये F?"
"क्या मुनावर?"
"या... कोई और?"
मन उलझ गया था। पिछले रिश्ते का डर उसे रोक रहा था, लेकिन दिल कुछ और कह रहा था।
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कहानी आगे बढ़ती है – मुनावर का संदेह
तीसरे दिन मुनावर फिर से फैजल से मिला। अबकी बार उसकी आँखों में थोड़ा शक था।
“भाई… तू नाज़ के बारे में इतना क्यों पूछ रहा है?”
फैजल चौंका, “क्या मतलब?”
मुनावर ने गहरी नजरों से देखा, “वो सिर्फ एक लड़की नहीं है मेरे लिए। मेरे अतीत का हिस्सा है। टूट चुका रिश्ता है, लेकिन अधूरा नहीं।”
फैजल कुछ नहीं बोला। लेकिन उसके भीतर कुछ खिंचने लगा।
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टकराव – जब तीन किरदार आपस में उलझे
📍 सीन: पब्लिक लाइब्रेरी
नाज़, मुनावर और फैजल — तीनों एक ही जगह, एक ही समय पर, लेकिन अलग-अलग इरादों से वहाँ पहुँचे।
नाज़ किताबें पढ़ने।
मुनावर माफ़ी माँगने।
फैजल… बस एक बार और नाज़ को देखने।
पर जो हुआ, वो किसी ने नहीं सोचा था।
नाज़ मुनावर को देख हक़बका गई।
फैजल वहीं खड़ा रहा, जैसे वक्त थम गया हो।
मुनावर ने धीरे से कहा, “तुम अब भी वैसी ही हो...”
नाज़ ने नज़रें फेर लीं।
फैजल ने एक गहरी सांस ली और जाने लगा।
पर तभी नाज़ ने पीछे से पुकारा,
“रुको!”
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ठहराव – जब नाज़ ने फैजल से बात की
“कौन हो तुम?” – नाज़ की आवाज़ में संकोच था, पर दिल की गहराई भी।
फैजल ने बिना झिझक कहा,
“एक अजनबी… जो तुम्हारे शब्दों से जुड़ गया है।”
“तुमने मेरी किताब में वो पंक्तियाँ क्यों लिखीं?”
“क्योंकि तुममें मुझे कुछ अपना सा लगा।”
नाज़ एक पल को चुप रही, फिर पूछा,
“तुम क्या चाहते हो?”
फैजल ने एक लंबा सांस लिया,
“मैं नहीं चाहता कि तुम मुझे आज जानो,
बस इतना जान लो कि मैं कोई मुनावर नहीं हूँ…
और मैं किसी को दर्द देने नहीं,
उससे दर्द बाँटने आया हूँ।”
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नाज़ की उलझन – कौन सही? कौन नहीं?
नाज़ अब खुद से सवाल करने लगी थी।
क्या मुनावर बदला है?
क्या फैजल भरोसे लायक है?
क्या वो खुद फिर किसी से जुड़ने के लिए तैयार है?
उसने अपने मन को शांत किया, और खुद से कहा:
“मुझे कोई फैसला नहीं करना…
बस दिल की आवाज़ को धीरे-धीरे सुनना है।”
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एपिसोड का अंतिम दृश्य
बारिश की बूंदें फिर से शुरू हो गई थीं।
इस बार नाज़ अकेली नहीं थी, फैजल थोड़ी दूरी पर खड़ा था।
नज़रों में इजाज़त थी, शब्दों में खामोशी…
और दिलों में एक अजीब-सी जुड़ाव।
फैजल ने मुस्कराकर पूछा,
“भीगने दोगी… या छतरी ले आओं?”
नाज़ मुस्कराई,
“कभी-कभी भीग जाना भी ज़रूरी होता है…”
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🌧️ एपिसोड 3 समाप्त – "टकराव और ठहराव"