(भाग 1)
शहर की हल्की-हल्की बारिश और सड़क के किनारे लगे पीपल के पुराने पेड़ से टपकती बूंदें… चारों तरफ एक अजीब-सा सुकून फैला हुआ था। उसी मोड़ पर खड़ी थी सान्वी, एक सादी-सी लड़की, जिसकी आंखों में हमेशा हज़ारों सपने तैरते रहते थे। कॉलेज का पहला दिन था, और उसके मन में हल्की-सी घबराहट भी। उसने गुलाबी रंग का कुर्ता पहना था और बालों को हल्के से बांध रखा था।
जैसे ही वह कॉलेज गेट के पास पहुँची, सामने से एक बाइक बड़ी तेज़ी से आते हुए अचानक पल भर में उसके बिलकुल पास आकर रुक गई। ब्रेक की आवाज़ सुनकर वह थोड़ा डर गई। “सॉरी… डर गई क्या?” बाइक चालक बोला, आँखों में शरारत भरी मुस्कान के साथ। उसका नाम था आरव। शहर में थोड़ा बदनाम था क्योंकि वो हर वक़्त मस्ती व शरारत करता रहता था।
सान्वी कुछ न बोली, बस हल्का सा सिर हिलाते हुए जल्दी से अंदर चली गई।
आरव मुस्कुरा कर वहीं खड़ा रहा और बोला — “ये लड़की कुछ अलग है…”
(भाग 2)
कॉलेज के पहले हफ़्ते तक, आरव ने धीरे-धीरे सान्वी की मौजूदगी को महसूस करना शुरू कर दिया था। वो हर दिन लाइब्रेरी के रास्ते में बैठकर सिर्फ उसे गुजरते हुए देखता था। उसकी पसंद की चीज़ें जानने लगा — उसे चाय पंसद है लेकिन बिना चीनी के, वह हर रोज़ अपनी नोटबुक में कुछ लिखा करती है, शायद कविताएं...
एक दिन बारिश बहुत तेज हो गई, कॉलेज खत्म होने पर सब भाग रहे थे। सान्वी बस स्टॉप तक पहुँची तो देखा – वहाँ कोई बस नहीं थी, सिर्फ आरव अपनी बाइक के साथ खड़ा था। बारिश में भीगते हुए उसने कहा, “अगर बुरा न लगे तो छोड़ दूँ? बारिश रुकने में थोड़ा टाइम लगेगा…”
सान्वी थोड़ा सोच कर बोली, “ठीक है…लेकिन तेज़ मत चलाना।”
आरव मुस्कुरा कर बोला, “प्रॉमिस…!”
रास्ते में कोई बात नहीं हुई। सिर्फ हवा और बारिश की धीमी-धीमी आवाजें। मगर उन आवाजों में दो दिलों की धड़कन धीरे-धीरे तेज़ होने लगी थी।
(भाग 3)
अगले दिन से जैसे दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता बनने लगा। आरव रोज़ उसके लिए लाइब्रेरी में उसी टेबल पर जगह रखता, जहाँ वो बैठती थी। कभी-कभी वही चाय की छोटी कप पास में रख देता। सान्वी बस हल्की मुस्कान से उसको धन्यवाद कह देती।
कुछ दिनों बाद, कॉलेज में “Annual Cultural Fest” की घोषणा हुई। सभी स्टूडेंट्स को पार्ट लेने का मौका मिला। सान्वी ने कविता-पाठ के लिए रजिस्टर किया। आरव ने पहली बार गिटार-प्ले के लिए नाम लिखवाया। सब हैरान थे — आरव कभी स्टेज पर नहीं आया था।
रात को अपने कमरे में, आरव ने पहली बार गिटार केस खोला और धीरे-धीरे किसी पुरानी धुन को बजाना शुरू किया। उसकी उंगलियों में एक डर था… लेकिन दिल में सान्वी की वह पहली मुस्कान बसी हुई थी।
(भाग 4)
Fest का दिन आ गया। कैंपस को लाइट्स और फूलों से सजाया गया था। हर तरफ़ उत्साह भरा माहौल था। सबसे पहले सान्वी स्टेज पर गई। उसने अपनी कविता पढ़नी शुरू की –
“पलकों पे रुकी हैं कुछ बूंदें, जो शायद आज बरस जाएँगी… दिल में जो कही अनकही बातें हैं, वो शायद आज सुनाई दे जाएँगी…”
पूरे ऑडिटोरियम में सन्नाटा था। सान्वी ने जब कविता खत्म की, पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। आरव पीछे से खड़ा उसे देख रहा था। पहली बार उसकी आँखों में चमक थी – जैसे उसे किसी ने नया जीवन दे दिया हो।
थोड़ी देर बाद आरव की बारी आई। वह थोड़ा घबराया हुआ दिख रहा था। उसने गिटार उठाया और स्टेज के बीचों-बीच आकर कहा, “ये गाना किसी खास के लिए है…”
और फिर उसने हल्की-सी धुन बजानी शुरू की —
“तुम मिले तो जैसे हर खुशी मिल गई, तुम मिले तो जैसे सारी रौशनी मिल गई…”
पूरा हॉल शांत हो गया। सान्वी अपनी जगह बैठी थी और पहली बार उसकी आंखों में भी रहस्य की जगह स्नेह दिख रहा था। जब गाना खत्म हुआ, आरव ने भीड़ में कहीं सान्वी की तरफ देखा। हल्की-सी सरप्राइज़ और खुशी उसके चेहरे पर थी।
(भाग 5)
Fest खत्म होने के बाद दोनों धीरे-धीरे एक-दूसरे के और क़रीब आते गए। आरव ने एक दिन एक छोटा-सा गुलाब उसके लिए लाइब्रेरी की टेबल पर रख दिया। सान्वी ने बिना कुछ कहे उस गुलाब को उठाया और अपनी नोटबुक के बीच रख दिया।
अब अक्सर दोनों कॉलेज कैंटीन में एक ही टेबल पर बैठकर चाय पिया करते। आरव बोलता रहता और सान्वी चुपचाप सुनती, बीच-बीच में हल्की हँसी के साथ।
एक दिन, कैंपस की झील के पास एक पेड़ के नीचे बैठकर, आरव ने धीरे से कहा, “सान्वी… क्या तुम जानती हो कि जब तुम सामने होती हो तो सब कुछ अच्छा लगने लगता है?”
सान्वी थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, “और अगर सामने न रहूँ तो?”
आरव ने हँसते हुए कहा, “तो मैं तुम्हें हर हाल में सामने रखूँगा… दिल में।”
(भाग 6)
दिन बीतते गए। परीक्षा नजदीक आ गई। दोनों ने किताबों में खुद को डुबो दिया। लेकिन हर शाम 5 बजे कैंटीन की चाय एक अटूट रिवाज़ की तरह चलती रही।
एक दिन परीक्षा खत्म हुई, और आरव ने कहा, “कल शाम 6 बजे झील के पास आना, कुछ खास है।”
अगले दिन, झील के किनारे पूरा रास्ता छोटी-छोटी लाइट्स से सजाया हुआ था। पेड़ से लटकती लाल-लाल लम्बी ribbons और उनके बीच एक लकड़ी का छोटा-सा बोर्ड, जिस पर लिखा था: “Love Dose – सिर्फ तुम्हारे लिए”。
आरव ने सान्वी को देखते ही एक लाल गुलाब उसकी ओर बढ़ाया और बोला —
“सान्वी… क्या तुम मेरी ज़िंदगी की कहानी बनोगी?”
सान्वी ने हल्की मुस्कान के साथ गुलाब लिया और धीरे से कहा — “शायद ये कहानी तो कब की शुरू हो चुकी है…”
(भाग 7)
उस दिन के बाद से उनकी ज़िंदगी बदल गई। एक-दूसरे की आँखों में हर सुबह एक नई उम्मीद जगती। वे लम्बी वॉक पर जाते, किताबें बदलते, और एक-दूसरे के ख्वाबों में बसते चले गए।
लेकिन एक सुबह, आरव अचानक कॉलेज नहीं पहुँचा। सान्वी ने सोचा – शायद वो बीमार होगा। अगले दिन भी वह नहीं आया। तीसरे दिन उसने आरव को फोन किया — पर किसी ने रिसीव नहीं किया।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, सान्वी की बेचैनी बढ़ती गई। उसे लगा जैसे उसकी दुनिया रुक गयी है।
(भाग 8)
तीसरे दिन शाम को अचानक उसके फ़ोन में एक मैसेज आया: “झील के पास मिलना… बस एक बार।”
सान्वी तेज़ी से भागती हुई झील के पास पहुँची। वहाँ आरव खड़ा था – पर उसके चेहरे पर वही मुस्कान नहीं थी।
आरव नजरें झुकाकर बोला, “मुझे दिल्ली जाना पड़ रहा है… पापा का ट्रांसफर हो गया है। शायद हम कुछ समय तक नहीं मिल पाएंगे…”
सान्वी की आँखों में आंसू भर आए, लेकिन उसने खुद को संभालते हुए कहा — “तो क्या हम अलग हो जाएंगे?”
आरव ने धीरे से उसका हाथ पकड़ा — “दूरी से कहानी खत्म नहीं होती, सान्वी… बस पन्ने बदल जाते हैं।”
(भाग 9)
समय गुज़रता रहा। आरव दिल्ली में पढ़ाई जारी रखता रहा, और सान्वी अपने शहर में। दोनों रोज़ एक-दूसरे को मैसेज करते, वीडियो कॉल करते, और एक-दूसरे की आवाज़ में सुकून ढूंढते।
एक साल गुजर गया। एक शाम सान्वी लाइब्रेरी की उसी टेबल पर बैठी थी, जहाँ पहली बार उसने आरव को देखा था। अचानक पीछे से किसी ने धीरे से कहा — “यह सीट खाली है क्या?”
सान्वी ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा — आरव खड़ा था। बिलकुल उसी शरारती मुस्कान के साथ।
“तुम अचानक?”
आरव बोला — “अब दूरी नहीं… ये कहानी अब हमेशा के लिए पास रहने वाली है। मैं वापस आ गया हूं, सिर्फ तुम्हारे लिए।”
सान्वी की आँखों से खुशी के आँसू बह पड़े।
(अंतिम भाग)
उस शाम उन्होंने उसी झील के किनारे बैठकर चाय पी, जैसे पहली बार पिया था।
आरव ने अपनी जेब से एक छोटी-सी रिंग निकाली और बोला — “सान्वी… ये कहानी अब खत्म नहीं होगी, अगर तुम कहो तो इसे ‘हमेशा की कहानी’ बना दूँ?”
सान्वी ने बिना एक शब्द कहे, बस मुस्कुराते हुए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।
और उस पल… हवा के साथ-साथ दो दिलों की धड़कनें भी हमेशा के लिए एक हो गईं।
– समाप्त –