🌸 एपिसोड 17 – जब धड़कनों ने होली खेली
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1. सुबह की शुरुआत – गुलाल से नहीं, गुलाब से
मार्च की हल्की ठंडी सुबह थी।
बाहर गली में रंगों की होली चल रही थी,
लेकिन आरव की दुनिया आज सिर्फ नैना तक सिमटी थी।
वो बिस्तर पर नैना के पास आया,
और एक सफेद गुलाब उसके हाथ में रखकर कहा:
"ये तुम्हारी पहली होली है, हमारे साथ।
और जब तक तुम खुद रंग न लगाओ…
मुझे कोई हक नहीं!"
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2. नैना की मुस्कराहट – और पेट पर पहली रंगी हलचल
नैना ने गुलाब लिया,
आरव की नाक पर हल्का सा रंग लगाया और बोली:
"अब तो तुम मेरे रंग में रंग चुके हो, मिस्टर आर्किटेक्ट…"
और तभी…
उसने अपने पेट पर हाथ रखा।
एक हल्की… चंचल सी हलचल!
"आरव! वो फिर से हिला!"
"क्या सच में? क्या उसने भी हमारी होली में हिस्सा लिया?"
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3. आंगन में पहली होली – दो लोग, और एक अनदेखा रंग
आरव ने नैना को झूले के पास लाकर बिठाया।
चारों तरफ हल्के गुलाबी, पीले और नीले रंगों की बौछार थी।
"आज मैं तुम्हें वो रंग दिखाऊँगा,
जो तुम्हारी किताबों में नहीं मिलते…"
फिर उसने हल्का सा नीला गुलाल लिया,
नैना के माथे पर लगाया —
और बोला:
"ये हमारी नज़र की खामोशी का रंग है…"
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4. रिश्तों की मिठास – गुजिया और गुज़रे लम्हे
नैना ने पहली बार खुद हाथ से गुजिया बनाई थी।
आरव ने पहला टुकड़ा खाते ही मुँह बनाया:
"थोड़ी कम मीठी है… लेकिन!"
"लेकिन?"
"लेकिन इसमें जो प्यार है,
वो चीनी से कहीं ज़्यादा मीठा है…"
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5. पड़ोसी की दस्तक – और पुराना चेहरा
दरवाज़े पर दस्तक हुई।
आरव ने दरवाज़ा खोला —
सामने एक व्यक्ति खड़ा था… 35-36 साल का, साधारण कपड़ों में।
चेहरे पर मुस्कान थी लेकिन आँखों में कोई पुरानी पहचान।
"तुम आरव सिंह हो?"
"जी, आप?"
"मैं प्रतीक हूँ… नैना का कॉलेज फ्रेंड। बस… आज पास आया तो सोचा मिल लूँ।"
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6. नैना और प्रतीक – हल्की झिझक, कुछ यादें
नैना बाहर आई।
"प्रतीक? तुम यहाँ?"
"होली की छुट्टियाँ हैं। सोचा तुमसे मिल लूँ…"
आरव मुस्कुरा रहा था, लेकिन आँखें पढ़ने लगी थीं।
नैना ने थोड़ी झिझक के साथ प्रतीक को अंदर बुलाया।
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7. तीन रंग – और बीच में पारदर्शी सफेद
आरव, नैना और प्रतीक — तीनों झूले के पास बैठे थे।
प्रतीक ने नैना से पूछा:
"तुम अब कैसी हो? शादी के बाद तो एकदम गायब ही हो गई…"
"सब बढ़िया है… और देखो, हमारी छोटी-सी दुनिया अब बढ़ रही है…"
नैना ने पेट पर हाथ रखकर मुस्कराया।
प्रतीक थोड़ा चुप हुआ।
"मैं खुश हूँ कि तुम खुश हो।"
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8. आरव की नज़र – एक हल्का असहज क्षण
जब प्रतीक ने नैना को विदा कहा,
आरव ने उसके जाने के बाद पूछा:
"तुम बहुत क्लोज़ थे उससे?"
"हूँ… थे। लेकिन अब सब पुराना है आरव।
तुम मेरी आज की और आने वाले कल की पूरी दुनिया हो।"
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9. रात की रंगत – और माँ बनने की हल्की थकावट
शाम को नैना थोड़ी थकी लग रही थी।
आरव ने उसके पैरों में तेल लगाया।
"आज बहुत रंग हो गया… अब आराम करो।
और मैं… ‘मोती’ को कह दूँगा कि तुम्हें बिना रंग के सपने दिखाए!"
नैना हँस पड़ी।
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10. डायरी की आखिरी पंक्तियाँ – रंग जो शब्दों से छलक पड़े
> "आज पहली बार मैंने अपने बच्चे को महसूस किया
जैसे वो मेरे भीतर कोई त्यौहार मना रहा हो।
और आज पहली बार मुझे एहसास हुआ —
कि रंग सिर्फ बाहर नहीं,
किसी की मौजूदगी भी दिल को रंग देती है।
चाहे वो आज का आरव हो,
या कल का कोई प्रतीक…"
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🔚 एपिसोड 17 समाप्त – जब धड़कनों ने होली खेली