अगस्त्य (हल्की, धीमी आवाज़ में, जैसे खुद से कह रहा हो):
"मुझे भी हुआ था... जब कल रात... तुम..."
रात्रि (एकदम चौंककर):
"क्या...? क्या कहा तुमने?"
अगस्त्य ने अचानक उसका हाथ झटक दिया, और एकदम सख्त आवाज़ में बोला:
"जाओ यहाँ से! गेट आउट!!"
रात्रि (आँखों में आँसू, पर आवाज़ में हिम्मत):
"क्या बोल रहे थे तुम? बात अधूरी क्यों छोड़ रहे हो... पूरी बात करो!"
अगस्त्य (कड़वे स्वर में):
"ठीक है! मैं ही चला जाता हूँ!"
वो मुड़कर जाने लगा...
तभी रात्रि बोल उठी:
"वो आग कैसे लगी थी...? बताओ अगस्त्य... वो तुमने ही लगाई थी ना?"
अगस्त्य रुक गया।
रात्रि (धीरे-धीरे उसके करीब जाते हुए):
"इतना बड़ा पेड़... एक पल में कैसे जल गया...? क्या तुम... क्या तुमने ही...?"
अगस्त्य धीरे से पलटा, उसकी आंखों में अब कोई इंसान नहीं... एक रहस्य था।
"हाँ... मैंने ही लगाई थी वो आग।"
रात्रि (सन्न): "क...कैसे?"
अगस्त्य उसके और पास आया।
"जानती हो कैसे? चुटकी बजा के..."
रात्रि की आंखें फटी की फटी रह गईं।
अगस्त्य (धीरे से, गहराई में उतरती आवाज़ में):
"मैंने बस चुटकी बजाई... और आग लग गई... क्योंकि मैं इंसान हूं ही नहीं।"
रात्रि पीछे हट गई, डरी हुई:
"दूर रहो... पास मत आओ मेरे..."
अगस्त्य उसकी ओर धीरे-धीरे बढ़ रहा था, जैसे उसकी आत्मा उसे खींच रही हो।
रात्रि: "मैं चिल्ला दूंगी!"
बस... अगस्त्य रुक गया। और एकदम से हँसने लगा... तेज़, uncontrollable हँसी...
अगस्त्य (हँसते हुए):
"Oh my god! Seriously? तुम्हारा चेहरा तो पीला पड़ गया है... तुम सच में डर गईं?!"
रात्रि (गुस्से और शर्म के बीच):
"ये सब क्या था...?"
अगस्त्य ने हँसी रोकते हुए कहा:
"लिसन मिस मित्तल... तुम पागल हो क्या? इतने बड़े पेड़ को मैं अकेले आग लगा सकता हूँ क्या? थोड़ा कॉमन सेंस यूज़ करो।"
रात्रि अब भी कन्फ्यूज़ है। तभी वो जाने लगा।
रात्रि (पीछे से): "और... इस अंगूठी का क्या?"
अगस्त्य (रुकते हुए): "हम्म?"
रात्रि: "उसमें जो सितारा है... वो आम सितारा नहीं है। उसके छह कोने हैं..."
अगस्त्य का चेहरा बदल गया। गुस्सा जैसे छाती तक आ गया।
उसने रात्रि का हाथ कस के पकड़ा और एक झटके में अपने पास खींच लिया।
धीरे से उसके गालों के पास जाकर, उसके खुले बाल हटाने लगा। उसकी सांसें अब रात्रि की गर्दन पर महसूस हो रही थीं।
अगस्त्य (गंभीर, धीमी आवाज़ में):
"क्या मैंने तुमसे पूछा था कि तुम्हारे कंधे पर वो छह-सिर वाला सितारा कहां से आया?"
रात्रि (हैरान): "तुम्हें कैसे पता...?"
अगस्त्य ने उसका हाथ छोड़ते हुए उसे सीधा किया और उसकी आंखों में देखा।
अगस्त्य:
"उस दिन जब हाईवे पर तुम अपनी ड्रेस दिखा रही थी... कोई भी देख लेता।"
इतना कहकर अगस्त्य वहां से चला गया।
कट टू: महल की सीढ़ियों से रात्रि नीचे आती है, अब भी सोच में डूबी हुई।
उसके मन में चल रहा है –
"इस निशान के बारे में किसी को नहीं पता... फिर अगस्त्य को कैसे...? और वैसा ही सितारा... उसकी अंगूठी पर..."
तभी अचानक पीछे से:
"हे! किस सोच में हो?"
रात्रि: "एवी! तुम...? डराया मत करो यार!"
एवी: "तो क्या सोच रही थी?"
मलिश्का दूर से दोनों को देख रही है, उसकी आंखों में जलन है।
"इसने दोनों को फंसा लिया है... कोई मेरी तरफ देखता तक नहीं!"
रात्रि: "तुम्हारा शूट खत्म हुआ?"
एवी: "हां... चलो बाहर चलते हैं, मौसम अच्छा है।"
रात्रि: "हम्म..."
(मलिश्का भी पीछे आ जाती है)
मलिश्का: "एवी... डायरेक्टर सर तुम्हें बुला रहे हैं।"
एवी ने उसकी बात इग्नोर की और रात्रि को लेकर महल के पीछे बगीचे में एक तालाब के पास ले गया।
रात्रि: "Wow... कितनी सुंदर जगह है।"
एवी: "तुम्हें पसंद आई?"
रात्रि: "बहुत।"
मलिश्का (जलती हुई): "वाकई एवी... बहुत सुंदर जगह है।"
विनोद आता है:
"सर, आपको और मलिश्का मैम को डायरेक्टर सर बुला रहे हैं।"
एवी (मन में): "ये सब मेरे ही दुश्मन क्यों हैं..."
एवी: "हां... चलो।"
रात्रि: "तुम चलो... मैं थोड़ी देर में आती हूं।"
एवी और मलिश्का आगे बढ़ते हैं।
तभी रात्रि को एक धीमी, रहस्यमय आवाज़ सुनाई देती है – "प्रणाली..."
वो चौकती है, मुड़कर देखती है... कोई नहीं।
वो आवाज़ के पीछे जाती है... मलिश्का देखती है कि रात्रि वहीं नहीं है।
पर किसी को कुछ कहने के बजाय... वो खुद उसके पीछे जाती है।
कट टू: डायरेक्टर सेट पर:
"एवी... जल्दी आओ! तुम्हारा सीन है।"
एवी सेट पर चला जाता है।
कट टू: रात्रि एक अजीब सी जगह पहुंच चुकी है। वहां कोई नहीं...
वो खुद से बड़बड़ाती है:
"मैं पागल हो जाऊंगी... ये सब क्या हो रहा है?"
तभी उसके पैर के नीचे कुछ हिला – एक सांप!
सांप फन उठाकर खड़ा हो गया।
रात्रि डर के मारे पीछे हटने लगी... और संतुलन बिगड़ने पर सीधे तालाब में गिर गई!
वो चीख रही है: "बचाओ! कोई है??"
मलिश्का ये सब देख लेती है... और डर के मारे वहां से भाग जाती है।
कट टू: महल के अंदर... मलिश्का अगस्त्य से टकरा जाती है।
अगस्त्य: "What the hell! मलिश्का... क्या कर रही हो तुम?"
मलिश्का (हाफती हुई): "रा...रा... रात्रि..."
अगस्त्य: "क्या हुआ रात्रि को?"
मलिश्का कुछ बोल नहीं पाती।
अगस्त्य चिल्लाता है: "मलिश्का!!! कहाँ है वो?!"
मलिश्का (रोती हुई): "तालाब में!"
अगस्त्य बिना कुछ सोचे दौड़ता है... भागता है... और सीधे तालाब में कूद जाता है।
रात्रि पूरी तरह डूब चुकी थी।
अगस्त्य ने उसे बाहर निकाला और ज़मीन पर लिटाया।
अगस्त्य: "रात्रि! उठो... मेरी बात सुनो..."
उसने उसके पेट पर दबाव दिया... पानी निकला... पर सांसें धीमी थीं।
अगस्त्य ने फौरन अपने होठ उसके होठों पर रखकर उसे सांस दी... CPR… बार-बार...
तभी आसमान में...
घनघोर काले बादल उमड़ते हैं, बिजली कड़कती है, हवाएं बेकाबू हो जाती हैं।
पूरा माहौल तबाही का बन जाता है… जैसे कोई अदृश्य शक्ति जाग उठी हो…