[Scene continues: अविराज चला गया…]
कौन से ख्यालों में खोई है...?
मेघा ने रात्रि को हिलाया।
रात्रि किसी सोच में मसरूफ़ थी। जैसे दिल कहीं और जा चुका हो... मेघा की आवाज़ ने जैसे नींद तोड़ी हो। वो चौंकी और बोली:
"हां… हां… मां…! क्या हुआ?"
मेघा (थोड़ा चिंतित होकर):
"जब से हॉस्पिटल आई है, तब से देख रही हूं… पता नहीं, किस सोच में गुम है तू? हुआ क्या है तुझे?"
रात्रि (धीरे से, नजरें चुराकर):
"मां... मैं बाहर कब जा सकती हूं...? मुझे काम पर वापस जाना है... प्लीज..."
मेघा (कड़ाई से):
"बिलकुल नहीं! तेरे पापा और भाई के स्ट्रिक्ट ऑर्डर हैं कि तुझे कहीं नहीं जाने दिया जाएगा। तू सिर्फ रेस्ट करेगी। काम-वाम अभी भूल जा।"
रात्रि मायूस हो गई… उसकी नज़रों में उदासी थी, और दिल किसी और की याद में डूबा।
---
[Meanwhile: अगस्त्य का कमरा]
अगस्त्य जाने के लिए तैयार हो रहा है। तभी फोन बजता है — असिस्टेंट वेदिका का।
अगस्त्य (फोन उठाते हुए):
"Hello Vedika… मैं टाइम से एयरपोर्ट पहुंच जाऊंगा। तुम बस टिकट्स मेल कर दो।"
वेदिका (कन्फ्यूज और डरते हुए):
"I'm very sorry sir... but आपके वीजा का इश्यू हो गया है। आप अभी देश से बाहर नहीं जा सकते।"
अगस्त्य (गुस्से में उबलता हुआ):
"तुम्हे क्या मैं सड़क पर घूमता हुआ ऐरा-गैरा, रोडसाइड क्रिमिनल लगता हूं जो देश छोड़कर भागने की प्लानिंग कर रहा हूं!? ये क्या मज़ाक है? मुझे आज ही निकलना है!"
वेदिका:
"Sir... आप खुद अपने वीज़ा इश्यू चेक कर सकते हैं… I’m really sorry…"
अगस्त्य (बिलकुल बेकाबू):
"YOU KNOW WHAT...? YOU ARE FIRED!"
फोन पटकता है।
(अंदर की बेचैनी में खुद से बड़बड़ाता है):
"क्या करूं मैं...? मैं चाहता था कि तुम मुझे भूल जाओ… लेकिन अब मुझे ही दर्द हो रहा है।
तुम कैसे… मुझे… ऐसे छोड़ सकती हो?"
थोड़ी देर चुपचाप बैठकर खुद से बोलता है:
"तुम आगे बढ़ चुकी हो, तो ठीक है… मुझे भी मंज़ूर है।
जो भी है — एवी, अवी…
उम्मीद करता हूं कि तुम एक अच्छे इंसान हो… वरना…"
---
[अर्जुन का आगमन]
अर्जुन (दरवाजे पर):
"भाई… मैं अंदर आऊं?"
अगस्त्य (चेहरा तुरंत संयमित कर):
"तुझे कब से परमिशन की ज़रूरत पड़ने लगी?"
अर्जुन अंदर आता है।
"भाई, आपसे एक बात करनी थी..."
अगस्त्य (सिरियस हो जाता है):
"हां बोल… सब ठीक है?"
अर्जुन (थोड़ा हिचकिचाते हुए):
"भाई, प्लीज़ मुझे गलत मत समझना…"
अगस्त्य (पलभर के लिए घबरा जाता है):
"देख... कोई भी टेंशन की बात हो, तो तू चिंता मत कर… मैं देख लूंगा। तू बस बोल।"
अर्जुन:
"यही तो मैं चाहता हूं भाई... कि आप कुछ मत देखो।"
अगस्त्य (चकित):
"क्या...?"
अर्जुन (धीरे और गंभीर लहजे में):
"भाई... ये मेरी लाइफ का पहला प्रोजेक्ट है जो मैं आपके बिना कर रहा हूं।
मैं चाहता हूं कि लोग 'अगस्त्य मान का भाई' ना कहें, बल्कि 'अर्जुन मान' का नाम सुनें।
इसलिए... मैं चाहता हूं कि आप इस प्रोजेक्ट से दूर रहें।"
अगस्त्य (थोड़ा ठहका मारते हुए):
"क्या तू पागल हो गया है? मैं तेरा बुरा चाहूंगा कभी?"
अर्जुन (बीच में रोकते हुए, तेज़ी से):
"भाई... प्लीज़! मैं चाहता हूं आप इस फिल्म से दूर रहो — ना सेट पर आओ, ना स्टूडियो, ना कोई जानकारी लो।"
अगस्त्य (धीरे से, ठंडी सांस के साथ):
"तू फिक्र मत कर... मैं यहां से जा रहा हूं।"
अर्जुन (हक्काबक्का):
"नहीं भाई... प्लीज़! मेरी वजह से मत जाओ।"
अगस्त्य (हल्की मुस्कान, लेकिन आंखें नम):
"ये तेरी गलती नहीं है छोटे...
बस इंडिया मुझे रास नहीं आया।
मां-पापा के पास जाना चाहता हूं अमेरिका।"
अर्जुन (भरे गले से):
"भाई आप..."
अगस्त्य:
"और हां... मुझे पता है मेरा भाई बहुत लायक है। उसे मेरे या 'मान प्रोडक्शन' के नाम की ज़रूरत नहीं।"
अर्जुन (सच उगलता है):
"भाई... आप और एवी ही तो हो जिन्होंने मेरा टैलेंट देखा वरना मां-पापा..."
(अगस्त्य चौकता है):
"क्या...? क्या मतलब — मैं और एवी ही...?"
अर्जुन:
"हां! उसी ने मुझे सोलो प्रोजेक्ट पर काम करने को बोला...
उसी ने को-प्रोड्यूस करने की बात की...
उसी ने रात्रि को बतौर राइटर लेने को कहा…
ये स्क्रिप्ट, लोकेशन... सब उसी का है!"
(अगस्त्य का चेहरा जड़ हो गया)
हर बात उसकी नसों में घुसने लगी — वो कहानी, वो लोकेशन, रात्रि… और अब उसका भाई।
"कौन है ये एवी... और आखिर चाहता क्या है?"
अगस्त्य की आंखों में अब सवाल नहीं, आग थी।
---
[Meanwhile: रात्रि का घर]
डोर बेल बजती है।
मेघा दरवाज़ा खोलती हैं:
"अरे तुम...? अंदर आओ!"
"रात्रि…! एवी मिलने आया है!"
रात्रि (उत्साहित हो जाती है):
"आई मां!"
(बाहर आकर, धीरे से)
"अवीरा... (मेघा को देखकर रुकती है)
I mean... एवी, तुम! अच्छा हुआ आ गए, मैं बोर हो रही थी।"
एवी (शर्मीले अंदाज़ में):
"आंटी, क्या मैं रात्रि को बाहर ले जा सकता हूं… बस लॉन तक वॉक के लिए?"
मेघा (थोड़ा संदेह से देखती है):
"ठीक है। ले जाओ... मैं नाश्ता वहीं भिजवाती हूं।"
[बाहर: वॉक पर]
एवी:
"मुझे बहुत खुशी है कि तुमने मुझे पहचान लिया।"
रात्रि:
"मुझे भी… तुम जानते नहीं इन सपनों ने मेरी ज़िंदगी उलझा दी थी।"
एवी:
"तुमने देखा होगा… चार महीने पहले मेरा एक्सीडेंट हुआ था…
उसी में मेरी यादाश्त वापस आई।"
रात्रि:
"वरना उससे पहले तो हर दूसरे दिन पेपर में तुम्हारे ही चर्चे थे!"
एवी (हंसते हुए):
"तुम मेरा मजाक उड़ा रही हो?"
रात्रि (झट से):
"नहीं नहीं!"
एवी (गंभीर होकर):
"एक बात बताओ… क्या तुमने मुझे मेरी सारी गलतियों के लिए माफ कर दिया?"
रात्रि (हैरान):
"माफ़ी? किस लिए?"
एवी:
"मैंने तुम्हारे साथ—"
(तभी) किसी ने एवी को कंधे से पकड़ा… और ज़ोर से घुमा दिया।
रात्रि (सन्न रह गई):
"अगस्त्य...?"
(अगस्त्य, एवी का कॉलर पकड़ चुका है)
गुस्से से तमतमाया हुआ, उसका चेहरा जलता हुआ।
बिना कुछ सुने, सीधे उसके चेहरे पर मुक्के बरसाने लगा।
रात्रि चीखती रही:
"अगस्त्य…! छोड़ो उसे!"
पर अगस्त्य रुका नहीं… मानो हर चोट, हर सवाल, हर धोखा... वो अब एवी के चेहरे पर उतार रहा हो।
अगस्त्य (गुस्से में दहाड़ते हुए):
"बोल... कौन है तू? और क्यों आया मेरी ज़िंदगी में...?"