Age Doesn't Matter in Love - 3 in Hindi Drama by Rubina Bagawan books and stories PDF | Age Doesn't Matter in Love - 3

Featured Books
Categories
Share

Age Doesn't Matter in Love - 3

अगली सुबह की पहली किरण अभी कमरे में उतरी ही थी कि सरस्वती जी धीरे-धीरे दरवाजा खोलकर अंदर आईं। हाथों में झाड़ू थी और मन में रोज़ की आदत — बेटे का बिखरा हुआ कमरा साफ करना।


"पता नहीं कब सुधरेगा," वो बड़बड़ाईं। "हर बार यही हालत।"


बिस्तर पर पड़ा अभिमान नींद में मोबाइल स्क्रोल करता रहा, आंखें अधखुली थीं।


“मॉम, यार... मैं करने ही वाला था,” उसने आंखें मिचमिचाते हुए कहा, “आप हमेशा टाइम पर आ जाती हो।”


सरस्वती जी उसकी शर्ट उठाते हुए जेब चेक कर रही थीं। अभिमान की नजर जैसे ही उस शर्ट पर पड़ी, उसका दिल तेज़ धड़कने लगा।


वो फौरन उठ बैठा, लपककर शर्ट उनके हाथ से छीनी।


“क्या हुआ?” सरस्वती जी हैरानी से बोलीं। “ऐसी क्या हरकत है?”


“कुछ नहीं मॉम, मैं खुद कर लूंगा, आप बाहर जाओ न।” वो हड़बड़ा गया।


“कुछ छुपा रहे हो मुझसे?” उन्होंने घूरते हुए पूछा।


“कुछ नहीं है, मॉम! मैं खुद साफ कर लूंगा,” उसने झुंझलाकर कहा और लगभग उन्हें कमरे से बाहर धकेल दिया।


सरस्वती जी जाते-जाते भी बड़बड़ाईं, “जा रही हूं, पर जल्दी नीचे आ जाना, नहीं तो कुंभकरण की तरह सोते रहोगे, आलसी लड़के।”


दरवाज़ा बंद होते ही अभिमान ने गहरी सांस ली।


“आज तो गया ही था मैं यार...” उसने सीने पर हाथ रखकर राहत की सांस ली और शर्ट की जेब से आन्या का लिखा स्टीकर निकालकर ध्यान से देखा।


“अगर मॉम ने ये देख लिया होता तो बवाल मच जाता घर में...”


उसने स्टीकर को अपने वॉलेट में संभाल कर रखा और खुद ही कमरे की सफाई में जुट गया।


कुछ देर बाद वो तैयार होकर नीचे आया, जहां चंद्रकला दादी बैठी थीं।


“दादी!” अभिमान ने मुस्कुराकर कहा, “कैसी हैं आप?”


“मैं तो ठीक हूं, तू बता बेटा,” उन्होंने प्यार से पूछा।


अभिमान ने मुँह बनाते हुए कहा, “आपका बेटा यानी मेरे डैड, जीने ही नहीं देते। हर समय बस एक ही बात — शादी कर लो, शादी कर लो! जैसे खुद ने दस बार की हो।”


चंद्रकला जी मुस्कुराईं, “अभी तो सिर्फ सगाई हुई है बेटा, शादी तो तेरे हाथ में है। अगर तुझे शायना से नहीं करनी तो मत कर, किसी और को पसंद कर ले — जो तुझे सुकून दे।”


अभिमान ने उन्हें देखा और मुस्कुराया, “अब समझा कि आप और डैड खून के रिश्ते में एक जैसे क्यों हो।”


पीछे से आते हुए अमित जी बोले, “और तूं भी तो मेरा बेटा है!”


तीनों मुस्कुरा दिए। माहौल हल्का हो गया था।


सरस्वती जी ने टेबल पर कॉफी रखते हुए कहा, “अभि, अच्छे से जाना आज।”


“हां मॉम,” उसने चाबी उठाई। जाते-जाते अमित जी को देखकर बोला, “आप एक बार दूसरे ब्रांच भी देख लीजिए प्लीज़।”


“तूने चेक कर लिया?” अमित जी ने पूछा।


“हम्म।”


“तो फिर मैंने किया या तूने, क्या फर्क पड़ता है?” अमित हँसते हुए बोले।


अभिमान मुस्कुरा दिया, लेकिन अमित जी का आखिरी ताना सुनकर उसका मुंह बन गया, “मैंने तारीफ नहीं की है!”


अभिमान बुलेट लेकर निकला। जैसे ही सिग्नल पर आया, एक बाइक उसके बगल में आकर रुकी। बाइक पर एक आदमी, और पीछे बैठे थे एक लड़का और लड़की।


उसकी नजर अचानक लड़की पर पड़ी...


वो वही थी — "सिली गर्ल" — यानी आन्या।


वो अपलक उसे देख रही थी, जैसे कुछ कह नहीं पा रही हो, बस महसूस कर रही हो।


अभिमान ने नजरें फेर लीं।


आन्या का चेहरा एकदम बुझ गया। उसका दिल जो कुछ पल पहले धड़क रहा था, अब भारी हो चला था।


बुलेट की स्पीड बढ़ाते हुए अभिमान आगे निकल गया।


पीछे रह गई सिर्फ एक लड़की, जो धीमी आवाज में खुद से बोली,

“कितना हैंडसम है… लग रहा है जैसे प्यार ही हो जाएगा।पर मैं... मैं तो बहुत खास नहीं हूं…”कया ओ मूझे पसंद करेंगे क्या 


उसकी आँखें नम हो गईं।


सामने बैठे तूकाराम मेहता ने सख्त आवाज़ में कहा,

“स्कूल से सीधा अक्षत के स्कूल जाना, वहीं से उसे लेकर आऊंगा।”


आन्या ने डरते हुए कहा, “पापा जी, स्कूल में प्रोजेक्ट है—”


“नहीं, उसके लिए पैसे नहीं दूंगा,” उन्होंने बात काट दी।


अक्षत बोला, “पापा, मुझे कलर पेंसिल चाहिए।”


तूकाराम ने जेब से ₹200 निकालकर अक्षत को थमा दिए, और जाते-जाते बोले,

“इसे पेंसिल दिला देना, स्कूल में छोड़कर जाना।”

फिर प्यार से उसके बाल सहलाते हुए निकल गए।


अक्षत ने जाते ही पैसे आन्या को दिए, “दीदी, ये लो।”


“नहीं अक्षत, ज़रूरत नहीं। पापा को पता चला तो गुस्सा करेंगे।”


अक्षत ने मुँह बनाया, “तो पहले पेंसिल लेते हैं, बाकी बचे तो तुम्हारे लिए कुछ ले लेना।”


आन्या मुस्कुराई और उसका हाथ पकड़ लिया, “चलो, वरना स्कूल लेट हो जाओगे।”


जनरल स्टोर से उन्होंने पेंसिल, पेन और एक ड्रॉ बुक खरीदी। ₹170 हुए।

आन्या ने पैसे दिए और अक्षत को स्कूल छोड़ने के बाद खुद अपने मन की ओर बढ़ गई — जोधा रेस्टोरेंट की स्वीट ब्रांच की तरफ।


उसने मन में कहा,

“कल वाली पेस्ट्री देखनी है... 30 की थी शायद। और शायद... वो भी दिख जाए।”


वो धीमे कदमों से अंदर गई। रेस्टोरेंट में ज्यादातर मिठाइयां और बेकरी आइटम थे। उसकी नज़रें इधर-उधर घूम रही थीं — पर अभिमान नहीं दिखा।


एक काउंटर पर राघव था।


“क्या चाहिए?” उसने हल्के से पूछा।


आन्या ने एक पेस्ट्री की ओर इशारा किया, “वो चाहिए… कितने की है?”


“₹35 की,” राघव ने मुस्कुराक

र कहा।


आन्या का चेहरा उतर गया।


“हमारे पास तो बस... ₹30 ही हैं,” उसने धीमे से कहा।


राघव कुछ कहने ही वाला था...