रात – सिटी हॉस्पिटल
हॉस्पिटल के शांत कॉरिडोर में सिर्फ धीमे-धीमे कदमों की आहट थी।
अभिमान वॉर्ड की ओर बढ़ रहा था — हर कदम के साथ उसका दिल और भी ज़ोर से धड़कने लगा।
वॉर्ड नंबर 12।
रात के ग्यारह बज चुके थे। दरवाज़े के पास पहुँचकर वो ठिठक गया।
अंदर से हल्की सी धीमी रोशनी छनकर बाहर आ रही थी।
उसने कांपते हाथों से दरवाज़ा खोला।
सामने बेड पर लेटी थी — आन्या।
उसका चेहरा पीला था। बाल बिखरे हुए थे, लेकिन मासूमियत अब भी उसी तरह जिंदा थी।
सलाइन की बोतल से उसका हाथ जुड़ा था — और वही हाथ... वही नन्हा हाथ जिसने कभी उसकी बाइक पर स्टिकर चिपकाया था…
"थैंक्यू, मिस्टर एंग्री यंग मैन..."
अभिमान की आंखें नम हो गईं।
आन्या की पलकें धीरे से हिलीं। उसने नज़रें उठाईं।
और फिर...
"आप?"
उसकी आवाज़ बहुत धीमी थी, लेकिन उसमें कुछ ऐसा था जो सीधा अभिमान के दिल तक गया।
अभिमान उसकी बगल वाली चेयर पर बैठ गया। कुछ देर कुछ नहीं बोला। फिर धीमे से बोला —
"क्यों किया तुमने ऐसा... इतनी बीमार हो गईं और किसी को बताया भी नहीं?"
"बताया था... आपके दिल को, पर वो नहीं सुन पाया,"
आन्या ने हल्की मुस्कान के साथ कहा।
"तुम हमेशा इतनी बातें क्यों करती हो?"
"क्योंकि जब आप चुप रहते हैं, तो मुझे अपनी आवाज़ से आपकी खामोशी भरनी पड़ती है।"
वो धीरे से बोली — और उसकी आंखों से एक आँसू गिर पड़ा।
अभिमान का कंठ भर आया।
"मुझे माफ कर दो..."
उसने पहली बार उसका हाथ थामा — धीरे से, बहुत ध्यान से।
"क्यों?"
"क्योंकि मैंने तुम्हारे दिल को नजरअंदाज़ किया, तुम्हारी सच्चाई को इनकार किया... तुम्हारे प्यार को बचपना समझा।"
"तो अब?"
आन्या की आँखें एक उम्मीद से भर गईं।
"अब मैं चाहता हूँ कि तुम जल्दी ठीक हो जाओ… ताकि फिर मुझे रोज़-रोज़ ‘खडूस’ कह सको, फिर मुझे बाइक पर बैठकर बातें सुना सको, और हाँ… फिर से स्टिकर चिपका सको मेरी ज़िंदगी पर — परmanent वाला।"
आन्या की हँसी फूट पड़ी, और फिर आँसू बहने लगे।
"आपको सच में फर्क पड़ता है?"
"बहुत ज़्यादा। इसीलिए तो आया हूँ… अब तुझे कहीं नहीं जाने दूँगा, लिटल गर्ल।"
"मैं बड़ी हो गई हूँ,"
उसने नखरे से कहा।
"हाँ, और मैं... बच्चा बन गया हूँ तेरे सामने।"
दोनों एक पल के लिए चुप हो गए।
फिर...
"और वो आपकी मंगेतर?"
"सिर्फ सगाई थी... अब नहीं है।"
"सच?"
"सच... मंगनी तोड़ दी, क्योंकि मुझे एहसास हो गया…
कि कोई है जो मुझे उस शोरगुल से निकालकर सुकून देती है — और वो तुम हो।"
आन्या की आँखों में चमक लौट आई।
"तो अब हम दोस्त हैं?"
उसने हाथ बढ़ाया।
अभिमान ने उसका हाथ थामा और धीमे से बोला —
"दोस्त भी… और कुछ ज़्यादा भी।
लेकिन तब, जब तुम अपनी उम्र के साथ-साथ मेरी ज़िम्मेदारी भी समझ सको।
जब तुम ये जान सको कि प्यार में सिर्फ ‘आई लव यू’ नहीं,
बल्कि ‘आई विल बी थियर फॉर यू’ भी होता है।"
आन्या ने सिर हिलाया।
"मैं सीख जाऊँगी, मिस्टर एंग्री यंग मैन… अगर आप मेरा हाथ थामे रहेंगे तो।"
अभिमान की आंखों में पहली बार सुकून था।
दरवाज़े के बाहर राघव खड़ा था, मुस्कुरा रहा था।
"कह दिया ना था… यही वो है, तेरा सुकून।"
क्या ये मोहब्बत अब एक नई शुरुआत की ओर बढ़ेगी?
क्या समाज के सवालों से परे, ये दो दिल सिर्फ एक-दूसरे को चुन पाएंगे?
जानने के लिए पढ़ते रहिए...
💫 Age Doesn’t Matter in Love 💫