🖋️ एपिसोड 7: “जब दिल बोलता है…”
> “दिल जब चुप रहता है, तो हालात बोलते हैं…
और जब दिल बोलता है, तो ज़माना चुप हो जाता है।”
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स्थान: दिल्ली — इंडिया हैबिटैट सेंटर, शाम 4 बजे
एक बुक फेयर चल रहा था।
चारों ओर किताबें, लेखक, कविता पाठ, वर्कशॉप्स और कॉफ़ी की खुशबू।
इस बार कुछ खास था।
क्योंकि एक बुक लॉन्च हो रही थी — “वो कहानी जो अधूरी थी”
लेखक: आरव मल्होत्रा
और कवर डिज़ाइन: रेहाना शेख
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स्टेज पर आरव था — आत्मविश्वास से भरा, लेकिन जब बोलना शुरू किया तो उसकी आवाज़ में वही पुरानी नमी थी।
> “ये कहानी मैंने सिर्फ कलम से नहीं लिखी…
इसमें हर पन्ना किसी की यादों से भीगा है।”
> “और ये किताब किसी काल्पनिक किरदार की नहीं…
ये उस लड़की की कहानी है, जो आज यहीं बैठी है — मेरी कहानी की रूह। रेहाना।”
स्टेज के सामने बैठे लोग तालियाँ बजा रहे थे।
लेकिन रेहाना की आँखें भर आईं थीं।
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बुक लॉन्च के बाद — बाहर गार्डन एरिया
रेहाना और आरव एक बेंच पर बैठे थे — शाम की हल्की धूप के नीचे।
> “तो अब सबको पता चल गया,” रेहाना मुस्कराई।
“हाँ, लेकिन सबको सिर्फ किताब दिखी…
उन्हें नहीं पता कि इसके पीछे कितना कुछ अनकहा रहा।”
रेहाना थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली —
> “कभी सोचा था कि हम यहाँ तक पहुँचेंगे?”
“कभी नहीं…
और अब लगता है, जो हो रहा है — वो किसी इबादत जैसा है।”
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Scene Shift — अगली सुबह, रेहाना का घर
रेहाना चाय बना रही थी।
फोन पर मां की कॉल आई।
> “बेटा, बात करनी है… एक रिश्ता आया है तेरे लिए।”
“मां… मैंने आपको बताया था न, मैं अब कुछ और सोच रही हूँ।”
“तू अब भी उसी लड़के के साथ है?”
“हां, आरव के साथ।”
माँ चुप हो गईं।
फिर धीरे से बोलीं —
> “वो अब भी अलग जात का है, रेहाना…
लोग क्या कहेंगे?”
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रेहाना का दिल भारी हो गया।
क्या प्यार के इतने सालों बाद भी उसे फिर से वही पुरानी लड़ाई लड़नी पड़ेगी?
उसने खुद से कहा —
> “इस बार नहीं…
अब मैं पीछे नहीं हटूंगी।”
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Scene Change — उसी रात, रेहाना और आरव
दोनों किताबों की दुकान में बैठे थे —
जहाँ वे कभी कॉलेज के दिनों में मिला करते थे।
रेहाना ने धीरे से कहा —
> “माँ अब भी वही सोचती हैं।”
“क्या हम फिर से रुक जाएं?”
“नहीं आरव… इस बार मैं लड़ूँगी।
अपने लिए, हमारे लिए।”
आरव ने उसका हाथ थामा —
> “तो मैं तुम्हारे साथ हूँ…
इस बार हर पन्ना साथ लिखा जाएगा।”
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अगले दिन — आरव का घर
आरव ने पहली बार अपने माता-पिता को रेहाना के बारे में बताया।
> “प्यार करता हूँ उससे… और वो मेरी कहानी ही नहीं, मेरा फैसला भी है।”
थोड़ा सन्नाटा।
फिर आरव के पिता बोले —
> “हमने तुझे हमेशा खुद सोचने की आज़ादी दी है बेटा।
लेकिन ये समाज… इसे संभाल पाओगे?”
> “अगर उसका हाथ थामा है, तो पूरी ज़िंदगी संभाल सकता हूँ।”
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कुछ हफ्तों बाद — रेहाना की माँ, आरव के माता-पिता, और दोनों आमने-सामने
हॉल में चाय, थोड़ी औपचारिकता, लेकिन सबसे ऊपर — दुविधा।
रेहाना की माँ ने कहा —
> “मैं मानती हूँ, लड़का अच्छा है…
लेकिन लोग क्या कहेंगे?”
आरव की माँ मुस्कराईं —
> “लोग तो कुछ भी कहेंगे बहनजी…
लेकिन बच्चे अगर खुश हैं, तो हमें और क्या चाहिए?”
सभी चौंक गए।
एक माँ ने दूसरी माँ का हाथ थाम लिया।
> “हम भी वही करेंगे जो बच्चे चाहते हैं।”
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🌷 और फिर, एक नई सुबह…
रेहाना और आरव ने मिलकर एक नया घर ढूंढा — छोटा, सादा, लेकिन प्यार से भरा।
कॉफ़ी मग, किताबें, बारिश और रुमाल…
सब फिर से उसी कहानी में लौट आए थे — इस बार अधूरे नहीं।
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🎉 Final Scene — उनकी शादी का दिन
सादा मंडप।
दोनों के करीबी दोस्त।
गुलाबी साड़ी में रेहाना…
नीली शेरवानी में आरव।
फेरे लेते वक्त — बारिश शुरू हो गई।
लोगों ने छतरियाँ निकाल लीं,
लेकिन ये दो लोग…
बस एक-दूसरे की आँखों में बारिश देख रहे थे।
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✨ एपिसोड की आख़िरी लाइन:
> "जब दिल बोलता है…
तो ज़ुबान की ज़रूरत नहीं रहती।
और जब दो दिल एक साथ बोलते हैं —
तो पूरी दुनिया सुनती है।”
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🔔 Episode 8 Preview: “अब जब हमसफ़र हैं…”
> शादी के बाद नई ज़िंदगी की शुरुआत,
नए अनुभव, नए इम्तहान —
लेकिन क्या उनकी मोहब्बत अब भी वैसे ही सच्ची रहेगी?
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