🖋️ एपिसोड 4: "वो पन्ना जो दिल को छू गया..."
> “कभी-कभी एक कागज़ का टुकड़ा वो कर देता है...
जो सालों की खामोशी नहीं कर पाती।”
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स्थान: ट्रेन — रेहाना की बर्थ
ट्रेन की रफ्तार धीरे-धीरे तेज हो चुकी थी। खिड़की से बाहर अंधेरा था, लेकिन अंदर एक रौशनी थी — एक कागज़ की, जो उसके हाथों में था।
वो पन्ना...
जो आरव ने स्टेशन पर दिया था।
उसके हाथ काँप रहे थे।
शब्द अब आँखों में उतर रहे थे, और आँखों से दिल में।
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✨ उसने पढ़ा…
“तुम आई थीं…
और लगा कि जैसे सब रुक गया।
वो सात साल, सात सेकंड से ज़्यादा नहीं लगे…”
“तुमने कुछ नहीं पूछा — और मैं कुछ कह न सका।
लेकिन तुम्हें देखकर लगा कि तुम अब भी मेरी अधूरी कहानी की आख़िरी लाइन हो…”
रेहाना की आँखों से आँसू टपक पड़े।
उसने उस पन्ने को सीने से लगा लिया।
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फ्लैशबैक — 6 साल पहले, कॉलेज का आख़िरी दिन
कॉलेज कैंपस में विदाई समारोह था।
चारों ओर रंग-बिरंगे कपड़े, हँसी-मजाक, सेल्फियाँ।
लेकिन एक कोना — लाइब्रेरी का पिछला हिस्सा — बिल्कुल शांत था।
वहाँ रेहाना और आरव आमने-सामने बैठे थे।
> “तो तुम जा रहे हो?” रेहाना ने पूछा।
“हाँ, स्कॉलरशिप मिल गई है लंदन की।”
“बिना कुछ कहे चले जाओगे?”
आरव चुप रहा… और फिर बोला:
“कभी-कभी अल्फ़ाज़ से ज़्यादा दूरी सही होती है।
कम से कम तुम मुझसे नाराज़ नहीं होगी…”
रेहाना ने कुछ नहीं कहा, बस रुमाल उसकी ओर बढ़ाया —
वही रुमाल जो अब दोनों के पास अलग-अलग हिस्सों में था।
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आज — ट्रेन में
रेहाना ने वही रुमाल फिर से निकाला —
अब उसमें सिर्फ नमी थी, लेकिन यादें बिल्कुल ताज़ा।
> उसने अपने आप से कहा:
“क्यूँ हर बार आरव ही लिखता है… और मैं सिर्फ पढ़ती हूँ?”
“कभी तो मैं भी कुछ कहूँ…”
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Scene Shift — पुणे, उसी रात
आरव बालकनी में बैठा था — खाली डायरी उसके सामने खुली थी,
लेकिन कलम रुकी हुई।
उसने फोन उठाया, फिर दो बार नंबर डायल कर के काट दिया।
रेहाना का नंबर…
> “अगर उसने फोन नहीं उठाया…
तो शायद किस्मत ने आख़िरी पन्ना बंद कर दिया है।”
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दूसरे दिन — दिल्ली
रेहाना घर लौट चुकी थी।
मां कुछ पूछती रहीं, लेकिन उसने सिर्फ यही कहा,
> “थक गई हूं, सोना है।”
लेकिन वो नहीं सोई।
रात के एक बज चुके थे।
उसने चुपचाप उस डायरी के पन्ने को फिर से निकाला…
और पहली बार... उसने भी कुछ लिखा।
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✍️ रेहाना की डायरी एंट्री
“आरव, तुमने हमेशा लिखा… और मैं सिर्फ चुप रही।
क्योंकि मुझे डर था —
कि अगर मैंने बोल दिया, तो ये जादू टूट जाएगा।”
“मैं अब भी वहीं हूँ…
जहाँ तुमने मुझे छोड़ा था —
बस अब मेरी चुप्पी भी चीख़ने लगी है…”
“क्या ये पन्ना तुम तक पहुँचेगा?
नहीं जानती…
पर दिल की बात अब मुझसे भी नहीं छुपती…”
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Scene Shift — अगले दिन
रेहाना ने खुद को संभाला।
आज वो अपने स्कूल की एक मीटिंग में जाने वाली थी, जहाँ उसे मोटिवेशनल गेस्ट स्पीकर बुलाया गया था।
मंच पर जाते हुए उसने खुद से कहा:
> “आज मैं बोलूँगी…
सिर्फ बच्चों से नहीं, खुद से भी।”
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अचानक… वहीं एक चेहरा दिखा।
आरव।
हाँ, वो सामने वाली सीट पर बैठा था।
> “किस्मत फिर खेल रही है क्या?”
रेहाना रुकी।
साँस गहराई।
और मंच पर जाकर बोलना शुरू किया।
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🎤 रेहाना का स्पीच (सीधा दिल से)
> “कभी-कभी हम सबसे मुश्किल बात उन्हीं से नहीं कह पाते
जिनसे सबसे ज़्यादा कहना चाहते हैं…”
“मोहब्बत की असलियत अल्फ़ाज़ में नहीं, इंतज़ार में होती है।
और कभी-कभी, वो इंतज़ार सालों तक चलता है —
बस एक मुलाक़ात के लिए…”
सभी तालियाँ बजा रहे थे।
लेकिन एक इंसान खामोशी से मुस्कुरा रहा था।
आरव…
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🌧️ बाहर फिर हल्की बारिश शुरू हो गई थी…
स्टेज से उतरते वक्त, रेहाना की नज़र उससे मिली।
इस बार कोई शिकवा नहीं था।
कोई आँसू नहीं।
बस एक सवाल…
> “अब… क्या हम फिर से शुरू कर सकते हैं?”
आरव ने हल्की सी गर्दन झुकाई…
जैसे कहा हो — "हाँ… लेकिन इस बार अधूरी नहीं रहेगी।"
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❤️ एपिसोड एंड लाइन:
> “जब दो रूहें बरसों बाद मिलती हैं…
तो वक़्त सिर्फ गवाह बन जाता है।”
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🔔 Episode 5 Preview: "वापसी"
> जब ज़िंदगी एक नया मौका देती है — क्या आरव और रेहाना अपने अधूरे अफसाने को मुकम्मल बना पाएंगे?
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