Tum wo Shaam ho - 1 in Hindi Love Stories by Rekha Rani books and stories PDF | तुम वो शाम हो - 1

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तुम वो शाम हो - 1

🌧️ एपिसोड 1 – पहली छाया

 वह शाम

मुंबई का स्टेशन... भीड़ से भरा, आवाज़ों से गूंजता हुआ। लेकिन उस दिन की शाम कुछ अलग थी। बारिश धीमे-धीमे टपक रही थी, जैसे आकाश भी दिल की भाषा में बोल रहा हो।  

प्राची वही खड़ी थी, बायीं ओर के कोने पर, अपनी स्केचबुक के पन्ने पलटती हुई। वो लोगों की भागती आँखों को देखती थी, चेहरे पढ़ती थी — कभी दुःख, कभी उम्मीद, कभी खालीपन।  

उसके लिए स्टेशन एक चित्रशाला था। और हर इंसान — एक किरदार।

उसके हाथों में पेंसिल थी, और मन में उदासी। वो एक ऐसी कलाकार थी जो अपने रंगों से ज़्यादा अपनी छायाओं पर विश्वास करती थी।

उसने सामने देखा — एक लड़का पुरानी किताबों की दुकान से बाहर आया। गले में कैमरा, एक हाथ में किताब, दूसरे हाथ में पुरानी रेनकोट की बाजू। उसकी चाल में घबराहट नहीं थी, बल्कि ध्यान था — जैसे ज़िन्दगी को देखकर समझने का हुनर हो।

वो आरव था।

--- पहली नज़र

आरव ने इधर-उधर देखा, और फिर उसकी नज़र प्राची पर जाकर अटक गई। एक लड़की, स्केचबुक और बारिश — उसे इस दृश्य में एक तस्वीर दिखी जिसे वह खो देना नहीं चाहता था।

वह उसके पास पहुँचा।  
“यह जगह खाली है?” उसने पूछा।

प्राची ने बिना देखे कहा, “बैठ सकते हो। कोई अधिकार नहीं जताऊँगी।”

आरव थोड़ा मुस्कराया। वह बैठ गया।

कुछ मिनटों तक दोनों चुप रहे। बारिश तेज़ हो रही थी, लेकिन उनके बीच की खामोशी... उससे भी तेज़ बोल रही थी।

आरव ने कैमरा उठाया।  
“तुम्हारी स्केच से प्रेरणा मिलती है। हर चेहरे में एक कहानी होती है।”

प्राची पहली बार मुस्कराई।  
“तस्वीरें कहती हैं... लेकिन स्केच सुनता है।”

--- तस्वीर और छाया

आरव ने अपनी किताब खोली। उसमें एक पुरानी कविता थी — "शाम की छाया में जो मिला, वो खुद से दूर हो गया।"

प्राची ने पन्नों पर नज़र डाली, और जैसे वो अपने ही शब्द पढ़ रही हो।

"यह कविता तुमने लिखी है?" उसने पूछा।

"नहीं... मेरे पिता की लिखी है। अब वो नहीं हैं, लेकिन उनकी छायाएँ... कहीं न कहीं मेरे कैमरे में ज़िंदा रहती हैं।"

प्राची ने अपनी स्केचबुक धीरे से उसकी ओर बढ़ाई।  
"मैं भी अपने पिता को खो चुकी हूँ। पर वो भी मेरे हर स्केच में रहते हैं।"

एक ऐसी भावना थी जो शब्दों से नहीं, आँखों से बह रही थी। पहली बार दोनों ने किसी अजनबी से अपने निजी टूटे हुए हिस्से साझा किए।

--- भीगी दोस्ती

आरव ने एक फोटो ली — प्राची, स्केचबुक, और मुंबई की भीगी शाम। लेकिन वह तस्वीर सिर्फ फ्रेम में नहीं थी — वह अब उसकी ज़िन्दगी में एक जगह बना चुकी थी।

"कल फिर यहीं रहोगी?" उसने पूछा।

"अगर बारिश आएगी तो ज़रूर," उसने जवाब दिया।

"तो फिर बारिश का दुआ माँगना पड़ेगा।"

प्राची ने मुस्कराकर कहा,  
"बारिश तो बहाना है... शायद कहानी आगे बढ़ाने का वक्त आ गया है।"

---याद की पहली बूंद

अगली सुबह जब सूरज बादलों की ओट से झांक रहा था, प्राची ने अपनी स्केचबुक खोली और उसी स्टेशन वाली शाम का चेहरा खींचने लगी। उसकी पेंसिल आरव के चेहरे की भावनात्मक छाया को पकड़ने की कोशिश कर रही थी — आँखें कुछ कहती थीं, लेकिन होंठ चुप थे।

वो उस मुलाक़ात को नाम नहीं दे पा रही थी।  
सिर्फ एक तस्वीर थी... जो दिल में उभर रही थी।

कला क्लास में भी वो आज कुछ और सोच रही थी।  
आरव का कैमरा, उसका सवाल — “तस्वीरें सच्चाई पकड़ती हैं।”

प्राची ने खुद से पूछा — “क्या मैं सच्चाई छुपा रही हूँ?”

--- स्टेशन पर दोबारा

शाम होते ही वो फिर उसी स्टेशन के कोने पर जा बैठी। बरसात हल्की थी, जैसे जानबूझकर मुलाक़ात की भूमिका बना रही हो।

आरव कुछ देर से आया — लेकिन उसकी आँखें प्राची को ढूँढ रही थीं।

“तुम फिर आई?” उसने मुस्कराकर पूछा।

“बारिश आई,” प्राची ने कहा।

वो दोनों बेंच पर बैठे रहे। चुप्पी फिर से दोस्त बन गई।

तभी एक बच्चा रोता हुआ उनके पास आया — उसने हाथ से इशारा किया, जैसे कुछ खो गया हो।

प्राची ने देखा — उसकी ड्राइंग गिर गई थी।  
वह उसे उठाने लगी।

आरव ने उसकी तरफ देखा और बोला —  
“तुम हर तस्वीर में कहानी ढूँढती हो… पर क्या अपनी कहानी पढ़ी है कभी?”

प्राची चौंकी।  
यह सवाल सीधा दिल से टकरा गया।

--- स्केचबुक का रहस्य

आरव ने प्राची की स्केचबुक पलटी। उसमें एक स्केच था जो किसी बड़े हादसे का प्रतीक लग रहा था — एक टूटी हुई छत, एक लड़का धूल में लिपटा हुआ और एक लड़की का आंसू।

“ये तस्वीर तुम्हारी है?” उसने पूछा।

“हाँ,” प्राची ने धीरे कहा।

“ये तुम्हारा अतीत है?”  
“मेरे भाई की मौत का दिन,” उसने कहा, आवाज़ काँप रही थी।

आरव चुप रह गया।  
उसने धीरे से अपनी किताब में से एक पंक्ति पढ़ी —  
"जब किसी की आवाज़ नहीं सुनाई देती, तो तस्वीरें चीखने लगती हैं।"

प्राची की आँखें भर आईं।  
वो पहली बार किसी से अपने दिल का सच साझा कर रही थी।

---दोस्ती या उससे ज़्यादा?

दोनों स्टेशन से बाहर आ गए। सड़क पर रोशनी का जाल और पीछे गिरती बारिश उन्हें जैसे और करीब ला रही थी।

“क्या तुम्हें कभी किसी से प्यार हुआ?” आरव ने पूछा।

प्राची ने गर्दन झुका ली।

“शायद… पर उस प्यार में सिर्फ मेरा अकेलापन था।”

आरव ने उसका हाथ नहीं थामा, पर उसकी नज़रों में कुछ ऐसा था जो हाथ पकड़ने से ज़्यादा सच्चा था।

“तो क्या अब तुम साथ चाहती हो, या ख़ामोशी?” उसने पूछा।

प्राची ने धीमे स्वर में कहा —  
“शायद मैं अब तस्वीर में कोई और रंग चाहती हूँ…”

---पहली साजिश

आरव जाने लगा, पर एक लड़की उसके पीछे दौड़ती आई।  
“आरव! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” उसने चौंक कर कहा।

प्राची ने उसे देखा — लंबी, स्टाइलिश, और आँखों में अधिकार।

“मैं सिया हूँ... आरव की गर्लफ्रेंड।” उसने कहा।

वक़्त जैसे थम गया।

आरव कुछ नहीं बोला।

सिया प्राची की तरफ मुड़ी —  
“तुमसे मिलने आया था?” उसने सवालिया अंदाज़ में पूछा।

प्राची ने कैमरे की तरफ देखा... और फिर अपनी स्केचबुक बंद कर दी।

बारिश अब तेज़ हो गई थी। लेकिन उस पल की आवाज़ सब बर्बाद कर रही थी।

---

🌧️ समाप्ति का भाव

आरव चुप था। सिया मुस्कुरा रही थी लेकिन उस मुस्कान में कोई गर्मी नहीं थी।  
प्राची बेंच पर बैठी रही — अब वो तस्वीर अधूरी नहीं थी, वो टूट चुकी थी।

वह जानती थी — ये भीगी साजिश थी।  
जिसमें कोई जवाब नहीं, सिर्फ सवाल रह गए थे।