Ishq aur Ashq - 36 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 36

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इश्क और अश्क - 36



अर्जुन गार्ड्स से: "रोको... भाई को, देख क्या रहे हो?"


अगस्त्य: "तुम में से कोई भी बीच में आया, तो ज़िंदगी भर नौकरी के लिए तरस जाओगे।"


अर्जुन (गुस्से में): "रोको भाई को...!"


तीन-चार गार्ड्स ने मिलकर अगस्त्य को रोका।


मीडिया वाला: "सारी वीडियो बना ली ना..."


दूसरा: "हाँ... सब हो गया, तूने फोटोज ली ना सारी??"


पहला: "हम्म... अब निकल, जल्दी।"


वो निकल गए।


तभी Mathew के बाकी पार्टनर्स भी आ गए।


Mr. John: "What did you do with Mathew?"


अगस्त्य: "Ask him... what did he do with my girl. I mean... a girl."


Mr. Raw: "You lost our partnership."


(अगस्त्य उसके मुँह के पास आया और भारी आवाज़ में बोला): "Do... hell... with your partnership. You get that."


Mr. John: "It was not right."


अगस्त्य (गुस्से में): "Get lost, you all... I said out."


सब चले गए और पार्टी खत्म हुई।


अब बस अगस्त्य, अर्जुन और रात्रि बचे हैं।


अर्जुन: "भाई, आप शांत हो जाओ... और ये तो बताओ कि हुआ क्या था?"


रात्रि ने उसे सारी बात बताई।


अर्जुन: "रात्रि... तुम ठीक तो हो?"


रात्रि की आँखों से आँसू बहने लगे: "ये सब मेरी वजह से हुआ है, मेरी गलती है।"


इतना कहकर वो वहाँ से निकल गई।


अर्जुन: "भाई, उसे आपकी ज़रूरत है। आपने तो बस वो सीन देखा है, उसने महसूस किया है। जाइए..."


अब अगस्त्य को अफ़सोस हो रहा है। वो भाग कर उसके पीछे गया।


रात्रि रोड पर आगे बढ़े जा रही है, अगस्त्य ने तेज़ी से आकर उसका हाथ पकड़ा और अपनी तरफ घुमा दिया।


अगस्त्य: "इतना बड़ा बवाल करवा कर कहाँ भाग रही हो?"


अब रात्रि से कंट्रोल नहीं हुआ और वो फूट-फूट कर रोने लगी...


उसकी आँखों में आँसू देख कर अगस्त्य ने उसकी कलाई को पकड़ा और धीरे से उसके बालों पर हाथ रख कर उसे अपने सीने से लगा लिया...


वो एक हाथ से उसके बालों को सहला रहा है और दूसरे हाथ से उसे कसकर गले लगाए हुए है।


वो बस रोए जा रही है।


रात्रि (रोते-रोते): "ये सब मेरी गलती है, तुमने मुझे रोका था, कहा था कि चेंज कर लो... फिर भी मैंने सुना नहीं। अगर तुम्हारी बात मान ली होती, तो आज...!" (इतना कहकर उसकी सिसकियाँ निकल गईं)


अगस्त्य ने उसे प्यार से सीने से हटाया, उसके दोनों गालों को अपने नरम हाथों से पकड़ा और उसके आँसू पोंछते हुए:

"Shhhhhh... ये तुम्हारी गलती नहीं है। जो भी हुआ, उसमें तुम्हारी या तुम्हारे कपड़ों की कोई गलती नहीं है।"


अगस्त्य ने फिर उसके आँसू पोंछे, उसे गले लगा लिया और बोला:

"रात्रि... तुम जहाँ भी जाओगी, जैसे भी कपड़े पहनो — सूट, साड़ी या शॉर्ट्स — तुम्हें ऐसे लोग हर जगह मिलेंगे। तुम्हें खुद को मज़बूत करना होगा।"


अगस्त्य की इतनी प्यारी बातें सुनकर रात्रि ने भी दोनों हाथों से उसे कस कर पकड़ लिया।


अगस्त्य:

"और हाँ, मैंने तुम्हें चेंज करने को लोगों की वजह से नहीं कहा था, बल्कि इसलिए कहा था क्योंकि जिस रात्रि को मैं जानता हूँ... ये वो रात्रि नहीं थी। उन कपड़ों में, मैं तुम्हारी मासूमियत नहीं ढूंढ पा रहा था।

तुम जैसी हो, वैसी ही बहुत खूबसूरत हो... कुछ और बनने की ज़रूरत नहीं है।"


रात्रि (उसके गले से हटते हुए):

"तुम्हें मुझ पर इतना भरोसा है?"


अगस्त्य ने अपने दोनों हाथों से उसके गालों को पकड़ा और अपने अंगूठों से उसकी आँखें साफ की, और हल्की सी मुस्कान दी।


(यह सब पार्टी में लेट पहुँचे एवी ने देख लिया, जिसे अभी तक यह नहीं पता कि हुआ क्या है)


एवी (दूरी से):

"रात्रि और अगस्त्य इतने करीब...? पर क्यों...? कहीं उसे सब याद..."


(अगस्त्य ने अपना कोट निकाला और रात्रि को ऊपर से पहनाते हुए कहा):

"Next time ऐसा कुछ करने का मन हो तो, मुझे पहले ही बता देना... ताकि मैं हर किसी को मारता न फिरूं!"


(उसकी ये बात सुनकर रात्रि के चेहरे पर मुस्कान आई)


अगस्त्य:

"चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ..."


(रात्रि और वो कार की तरफ जाकर निकल गए)


रात्रि:

"अब तुम्हारी पार्टनरशिप का क्या होगा?"


अगस्त्य:

"ऐसे लोगों के साथ पार्टनरशिप तो शायद मैं सपने में ही करूँ।"


और थोड़ी देर में ही रात्रि का घर आ गया...


रात्रि:

"तो मैं चलती हूँ..."


अगस्त्य:

"तुम ऐसे नहीं जा सकती!"


रात्रि (दिल ज़ोर से धड़कता है):

"हम्म?"


अगस्त्य:

"अरे मतलब... सीट बेल्ट तो खोलो!"


रात्रि:

"ओह..."


तब अगस्त्य उसके नजदीक आने लगा... और नजदीक... थोड़ा और नजदीक...


अब वो काफी पास है... दोनों की धड़कनें बढ़ने लगीं... जैसे कोई रेल का इंजन...


धक धक... धक धक... धक...


अगस्त्य ने एक हाथ से सीट बेल्ट खोली और दूसरा हाथ रात्रि के पीछे शीशे पर रख दिया...


वो अपने होठों को उसके होठों के नज़दीक लाने लगा...


रात्रि इस लम्हे को एंजॉय करना चाहती थी... उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर लीं...


बस एक लम्हा जो एक बहुत प्यारी याद बनकर बीतने वाला था...


तभी...


रात्रि को एक तेज़ दर्द का एहसास हुआ और वो दर्द से कराह उठी।


रात्रि:

"आह...!"

(उसने अपना एक हाथ अपने कंधे पर बने सितारे के निशान पर रख लिया)


अगस्त्य:

"क्या हुआ तुम्हें...? तुम ठीक हो?"


रात्रि (दर्द में):

"ऐसा लग रहा है कि किसी ने इस कंधे वाले निशान में आग लगा दी...!"


(अगस्त्य ने उसका हाथ हटाकर देखा तो उस सितारे से सच में आग निकल रही थी।

अगस्त्य का जैसे एक खूबसूरत सपना टूट गया)


अगस्त्य (मन में):

"ये हमारी नज़दीकियों की निशानी है... ये इस बात का सबूत है कि हम पास नहीं आ सकते।"


(वो उससे दूर हट गया)


(अगस्त्य ने अपना एक हाथ रात्रि की आँखों पर रखा, और दूसरा उस निशान पर):

"आँखें मत खोलना।"


और उसने ऐसा कुछ किया जिससे रात्रि को उस जलन से राहत मिलने लगी।


अब अगस्त्य ने अपना हाथ उसकी आँखों से हटा लिया।


रात्रि (मन में):

"कौन हो तुम?"



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