Ishq aur Ashq - 40 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 40

Featured Books
Categories
Share

इश्क और अश्क - 40



सय्युरी: ...एवी... अगस्त्य... और रात्रि के सपने... सब उससे झूठ बोलते हैं... बेचारी!!!
बस एक मैं ही हूं जो उसे सच बताना चाहती हूं।

अगस्त्य: खबरदार...! I am warning you!

सय्युरी: इस जन्म में भी प्यार हो गया क्या?

वो उसे इग्नोर करके जाने लगा।
रात्रि उन दोनों को ढूंढने के लिए बाहर आती है, सय्युरी जाते हुए अगस्त्य को रोकती है।

सय्युरी (चिल्लाते हुए): वर्धान... वर्धान... सुनो तो!

सय्युरी के ये शब्द रात्रि के कानों में पड़ गए।
वो वहीं अपनी जगह पर रुक गई, उसकी आंखें झुंझलाने लगीं, उसे कुछ तो याद आ रहा है।

रात्रि (आधे होश में खुद से): वर्धान...? ये नाम मैंने सुना है... वर्धान...?

तभी अगस्त्य ने उसे नोटिस किया, वो बस गिरने ही वाली थी।
अगस्त्य भागते हुए उसे पकड़ता है, पर रात्रि पूरी तरह बेहोश नहीं हुई।

अगस्त्य को उसे पकड़ते देख कर सय्युरी भी वहां पहुंची।

सय्युरी: क्या हुआ इसे? ये ठीक तो है?

अगस्त्य (गुस्से में): तुम्हें किसने कहा मुझे इस नाम से बुलाने को?

सय्युरी: Oh... तो इस वजह से हुआ है ये? अगर इसने सुन लिया है तो अच्छा है...!

अगस्त्य: Get lost.

सय्युरी: Okay, but कभी तो इसे असली सच्चाई का सामना करना होगा।

वो चली जाती है।
अगस्त्य रात्रि को हॉस्पिटल ले जाने के लिए कार में बिठाता है।
अगस्त्य पहले उसके ऊपर पानी डालता है।

अगस्त्य (थोड़ा परेशान): उठो न...

रात्रि को होश आ जाता है।

अगस्त्य (चैन की सांस लेते हुए): तुम ठीक हो ना?

रात्रि: कौन हो तुम?

अगस्त्य: क्या...? ये कैसा सवाल है? मैं अगस्त्य!

रात्रि (शक की नजरों से): मेरी पिछली ज़िंदगी से तुम्हारा क्या रिश्ता है?

अगस्त्य (हड़बड़ा जाता है): क्या...? तुम्हें...
(फिर बात को दबाने की कोशिश में)
क्या पिछली ज़िंदगी...? तुम्हारे सिर पर चोट लगी है क्या?

रात्रि (अब गुस्से में): Shut up! Just shut up! कोई बकवास नहीं, सिर्फ सच सुनना है मुझे!
(उसकी आंखों से आंसू आ जाते हैं)

अगस्त्य उसे संभालने की कोशिश करता है, और उसे पकड़ने की कोशिश करता है।
रात्रि उसका हाथ झटक देती है।

रात्रि (रोते हुए): Don’t touch me...! तुम वर्धान हो ना?

अगस्त्य कुछ नहीं बोलता।

रात्रि: मैंने सुना है ये नाम... मैं जानती हूं इस नाम को...
ऐसा लगता है मेरा कोई रिश्ता है इस नाम से... पर मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा...?
(वो अपना सिर दोनों हाथों से पकड़ कर चिल्लाती है)
तुम सब झूठे हो!!!

इतना कह कर वो कार से निकल गई।
अगस्त्य भी निकल कर उसके पीछे आने लगा।

रात्रि: अगर मेरे पीछे आए... तो शायद मुझे कभी न देख पाओ।
अभी मुझे अकेले रहना है।

अगस्त्य ने वहीं अपने कदम रोक लिए।

रात्रि, अकेले रास्ते पर चल रही है... बिल्कुल बेसुध सी।
वो खुद से सवाल कर रही है:

"अगर सच ये नहीं जो मुझे पता है, तो सच है क्या? और वर्धान, सय्युरी उससे कैसे जुड़े हैं...?
अविराज ने जो बताया और जो मुझे याद है, वो झूठ कैसे हो सकते हैं...?"

तभी बारिश शुरू हो गई।
रात्रि को उसका भी होश नहीं।

दूसरी तरफ —
अगस्त्य अब एवी को फोन करता है!

अगस्त्य: जल्दी रात्रि के पास पहुंचो...

एवी (परेशान होकर): क्या हुआ? सब ठीक?

अगस्त्य: जो बोला... उतना करो। बाकी खुद पूछ लेना उससे।

कॉल कट।
अगस्त्य का दिल अब भर गया —
आख़िर बेचारा कब से किसी दुख को अकेले ही झेल रहा है।

अगस्त्य परेशान होकर अपने दोनों हाथ अपनी आंखों पर रखता है,
और बोलता है:

"कैसे बता दू तुम्हें सब सच...? कैसे डाल दूं जानबूझकर मौत के मुंह में तुम्हें...?
तुम समझती क्यों नहीं हो......? इतने वक्त से मैं इस सबसे अकेले इसलिए लड़ रहा हूँ ताकि तुम पर कोई आंच ना आए ।।।।।

वो अपनी आंखों को मसलते हुए, अपने सिर को पकड़ कर कहता है।

दूसरी तरफ —
रात्रि थक कर उसी बारिश में एक पेड़ के नीचे बैठ जाती है।

रात्रि: वर्धान... वर्धान... वर्धान...!

तभी एवी आकर उसके ये शब्द सुन लेता है।
उसके कदम सहम जाते हैं, पर रात्रि को संभालना तो है ही...
वो डरते-डरते उसके पास गया।

एवी उसके सिर के ऊपर छतरी लगाता है,
रात्रि का ध्यान तब भी उस पर नहीं गया।

एवी अब उसके पास बैठकर, उसके कंधे पर हाथ रखता है।
रात्रि नज़रें उठा कर देखती है।

रात्रि (एक शिकायती आवाज में):
तुम भी मुझे वर्धान के बारे में नहीं बताओगे...? है ना...?
क्योंकि अगर तुम्हें बताना होता तो, तुम अब तक बता चुके होते।

एवी उसे कंधे से पकड़ कर (एक हाथ से) उसे ले चलने की कोशिश करता है।
रात्रि खुद को उससे दूर करती है:

रात्रि: खबरदार! खबरदार जो तुम में से कोई भी मेरे करीब आया!

एवी: रात्रि, चलो... हम घर चलकर बात करते हैं।

रात्रि (गुस्से में):
तुम लोग नहीं बताओ, तो एक शख्स ही मुझे सब बताएगा...

एवी (सोच में): कौन?

रात्रि: सय्युरी!

एवी (शॉक्ड): तुम पागल हो गई हो क्या?
तुम उससे अकेले में नहीं मिलोगी!
हम उसे नहीं जानते — उसकी ताकत का...

(एवी बोलते-बोलते रुकता है)

रात्रि:
तुम्हें पता है।
तुम बताओगे नहीं।
और तुम जानते भी नहीं हो कि मेरे ये सपने किस कदर मेरा ऑब्सेशन बन चुके हैं।
मैं इसके लिए कुछ भी कर सकती हूं।

एवी:
तुम उससे अकेले नहीं मिलोगी। बस!

रात्रि:
तो तुम मुझे सच बताओगे? बोलो... बताओगे??
मुझे जवाब चाहिए! बोलो, बताओ!
बताओगे सब सच??

एवी (गुस्से में):
हां...! मैं बताऊंगा तुम्हें सब सच... सब कुछ!
अब तुम उससे नहीं मिलोगी।


---