रात्रि: तो तुम मुझे सच बताओगे...? बोलो... बताओगे??
मुझे जवाब चाहिए — बोलो, बताओ... बताओगे सब सच?
एवी (गुस्से में): हां... मैं बताऊंगा तुम्हें सब सच, सब कुछ!
अब तुम उससे नहीं मिलोगी।
एवी रात्रि को अपने घर ले गया, उसे शांत किया और पानी पिलाया...
और बोला:
एवी:
मैं युद्ध पर तो चला गया था...
पर वहां जाकर भी तुम्हारे ही ख्याल थे...
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🌫️ फ्लैशबैक 🌫️
(वर्धान और प्रणाली की कहानी में अब तक आपने पढ़ा: वर्धान को मगर के दांतों से चोट लग चुकी है, और वो ठीक नहीं हैं।
वो प्रणाली से वादा करता है कि वो कल उसे उसी जगह मिलेगा, पर कोई आता है और उसे वहां से जाना पड़ता है...)
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प्रणाली महल में है और सुबह का इंतजार कर रही है।
प्रणाली (बेचैनी से):
कब होगी सुबह...? पता नहीं वो ठीक होगा या नहीं?
तभी उसका भाई उसके कमरे में आता है।
पारस: कैसी है मेरी छोटी बहना?
प्रणाली अचानक चौंक जाती है और पीछे मुड़ती है।
प्रणाली: भईया आप...? आपने डरा दिया!
(और वो उसे आंख दिखाती है)
पारस (थोड़े नटखट अंदाज़ में):
खबरदार! तुम बीजापुर के होने वाले महाराज से बात कर रही हो!
प्रणाली (थोड़ी शॉक और थोड़ी खुश):
क्या...? सच में? पिता जी ने सोच लिया?
पारस: हम्म... एक सप्ताह में तुम्हारे भाई का राज्याभिषेक है!
प्रणाली: ये तो बहुत अच्छी बात है! बीजापुर सिर्फ आपका है।
ऐसे ही बातें करते-करते रात बीत गई।
सुबह होते ही प्रणाली जंगल की उसी जगह पहुंची।
वो एक जगह बैठ गई।
प्रणाली (मन में):
बस वो अभी आता ही होगा...
पता नहीं उसका ज़ख्म भरा भी या नहीं...
ज्यादा न लगी हो उसे।
ये सब सोचते-सोचते काफी वक्त बीत गया,
पर कोई नहीं आया।
प्रणाली (परेशान होकर):
क्यों नहीं आया वो...?
वो ठीक तो है न?
अब इंतज़ार करते-करते शाम होने को आई है,
पर वर्धान का कुछ पता नहीं है।
प्रणाली:
कहीं उसको... कुछ...?
तभी पेड़ों के पीछे से कुछ आवाज़ आई।
वो पहले थोड़ा घबराई,
फिर उसे लगा कि ये वर्धान हो सकता है।
वो पीछे मुड़ी — देखा, वो वर्धान नहीं था।
एक शख्स था जिसने धोती पहन रखी थी, हाथ में कड़े और एक जनेऊ।
उसे देखकर प्रणाली थोड़ा डर गई।
प्रणाली: कौन हो तुम...? मेरे पास मत आओ!
वो शख्स: आप डरिए मत... मुझे आपके मित्र ने भेजा है।
प्रणाली: मित्र...? कौन...?
वो शख्स:
वही, जिन्होंने आपको यहां इंतजार करने को कहा है...
प्रणाली (धड़कते दिल से):
वर्धान...?
वो शख्स:
जी हां।
उन्हें रातों-रात अपने परिवार के साथ दूसरे देश जाना पड़ा,
तो उन्होंने मुझे ये ख़त आपको देने को कहा है।
प्रणाली थोड़ा पास गई और ख़त ले लिया।
वो आदमी वहां से चला गया।
प्रणाली ने ख़त खोला, उसमें लिखा था:
> "ऐ फूल वाली... तुम्हारे चक्कर में मुझे दो-दो बार चोट लगी 😒
और तुमने जरा सा प्यार से बात तक नहीं की 😏
वैसे तुम्हारे लिए एक बुरी खबर है कि मैं ठीक हूं...
पर शायद हमारा साथ यहीं तक था।
मुझे कहीं जाना है, और पता नहीं कितना वक्त लगेगा..."
इतना पढ़ते ही उसकी आंखों में आंसू आ गए।
प्रणाली (खुद से):
मेरा एक और दोस्त मुझे छोड़ कर चला गया...
वो दुखी होकर महल पहुंची।
वहां एक अलग ही तरह की शांति थी।
प्रणाली (मालविका से):
मां... कुछ हुआ है क्या?
मालविका:
राजदरबार में आपातकाल सभा हो रही है।
प्रणाली (चौंककर):
आपातकाल...? पर क्यों...? ऐसा क्या हो गया?
मालविका:
वो सब तुम्हारे जानने लायक बातें नहीं हैं।
(वो चली जाती है)
अब प्रणाली को जानने की बेचैनी होने लगी —
आख़िर ऐसा क्या हुआ?
वो चुपके से राजदरबार पहुंची।
वहां कुछ गंभीर चर्चाएं चल रही थीं।
दरबार के बीचों-बीच दो बंधक खड़े थे।
महाराज:
तुमने बीजापुर पर जासूसी किसके कहने पर की है?
पारस (गुस्से में):
आप इनसे क्यों बात कर रहे हैं पिताजी...?
ये उन गरुड़ों के जासूस हैं!
सारे दरबारियों ने हामी भरी,
और एक आवाज़ आई:
"मार दो... मार दो... मार दो!"
दरबारियों का इतना गुस्सा देख महाराज ने सबको शांत किया,
और अपना फैसला सुनाया:
महाराज:
इन दोनों को बंधक बना लो,
और ये पता लगाने का प्रयास करो कि इन्हें किसने भेजा।
पारस (असहमति में):
पिता जी... आप?
महाराज (शांति से):
राज्य सीमा पर सुरक्षा और सख़्त कर दो।
महल के पास और जवान नियुक्त करो।
और राजकुमारी के कक्ष के चारों तरफ घेराबंदी कर दो —
परिवार के अलावा कोई उनके कक्ष में नहीं जाएगा।
सभा बर्खास्त।
सब चले गए।
महाराज भी जाने लगे।
पारस उनका पीछा करते हुए कहता है:
पारस:
पिताजी, आपने उन्हें मौत क्यों नहीं दी...?
वो एक गरुड़ वंशज हैं!
महाराज:
पारस, तुम इस राज्य के होने वाले राजा हो।
कोई भी फैसला जल्दीबाज़ी में करना,
एक राजा की निशानी नहीं है।
पारस:
जी, पिता जी!
(वो चले जाते हैं)
प्रणाली (सोचती है):
ये सब क्या हो रहा है...?
गरुड़ वंशज...?
जासूस...?
और मेरे कक्ष के पास घेराबंदी क्यों?
वो सोचती हुई पारस के पास पहुंचती है।
प्रणाली:
भइया... ये सब क्या हो रहा है?
जासूस...? घेराबंदी...?
पारस (चौंककर):
तुझे ये सब कैसे पता?
प्रणाली:
भइया, बताइए ना...!
पारस (कठोर स्वर में):
तुझे इसमें पड़ने की ज़रूरत नहीं है।
तू बस अपने भाई के राज्याभिषेक की तैयारी कर।
प्रणाली (मन में):
यहां से तो कोई जवाब नहीं मिलेगा...
कुछ घंटों बाद —
प्रणाली अपने कक्ष में आराम से सो रही है।
तभी कुछ आवाजें आती हैं...
पर ये आवाजें तेज़ हो रही हैं।
उसकी आंख खुलती है,
तो देखती है कि बहुत सारी दासियां उसके चारों ओर खड़ी हैं।
वो एक से पूछती है:
प्रणाली:
क्या हुआ?
दासी:
गरुड़ों ने हमला कर दिया है —
और बाहर एक युद्ध हो रहा है!
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