Ishq aur Ashq - 46 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 46

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इश्क और अश्क - 46



प्रणाली तालाब के सहारे गरुड़ लोक पहुंची।
(चूंकि वो एक ब्रह्म वरदानी थी और इस पीढ़ी की परी भी, तो उसके लिए वहां पहुंचना ज्यादा मुश्किल न था।)

यहां का नजारा इतना खूबसूरत है — सोने-सी निकलती हुई धूप पेड़ों पर इस कदर पड़ रही है मानो किसी स्त्री का सोलह श्रृंगार कर दिया हो।
चांदी से बहते झरने और इस पानी से निकलती आवाज़ कानों को अलग प्रकार का सुख दे रही है...

प्रणाली वहां की माया से निकलकर और सब से बचकर महल पहुंची।
वहां दरवाजे के अंदर घुसने के लिए अपने हाथों की छाप देनी पड़ती है।

अब वो सोच में पड़ गई कि अंदर जाए तो जाए कैसे।
तभी किसी के आने की आवाज आई, प्रणाली को कुछ समझ नहीं आया, वो इधर-उधर भागने लगी।
उसका हाथ दरवाजे पर छपे हाथ के निशान पर पड़ा और दरवाजा खुल गया।

उस वक्त तो प्रणाली बचने के लिए अंदर घुस गई, पर वो इस सोच में पड़ गई कि उसके हाथ के निशान से दरवाजा कैसे खुल गया?

ये सोचते-सोचते महल के बहुत अंदर चली गई और बचते-बचते वर्धान के कक्ष में जा पहुंची, और वहां घुसकर उसने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया।

प्रणाली (सांस लेते हुए): बच गई... शायद यहां मुझे कोई नहीं ढूंढ पाएगा।

उसने इधर-उधर नज़र घुमाई और सामने एक आरामदायक और मखमली बेड पर एक शख्स सोया हुआ देखा।
उसके बेड के चारों ओर एक जालीनुमा पर्दा लगा हुआ था, इसलिए सामने वाला शख्स साफ़ नहीं दिख रहा था।

प्रणाली (धीमी आवाज में): ये कौन है...?

फिर अचानक थोड़ा पीछे हटी और बोली: ये भी कोई गरुड़ है क्या...? अब गरुड़ लोक में गरुड़ ही होंगे।

फिर उसने थोड़ी हिम्मत जुटाई और सोचा: मैं भी तो देखूं, आखिर गरुड़ दिखते कैसे हैं? (पास जाने लगी)

तभी बाहर से एक आवाज़ आई: आज रात राजकुमार के लिए गरुड़ पुष्प लाने का आदेश है, हो सकता है कि उससे हमारे राजकुमार होश में आ जाए।
(ये दौरे पर आए सिपाहियों की आवाज़ है)

प्रणाली (खुद से): ओह... तो शायद यही है वो राजकुमार। खैर, मुझे क्या — मुझे तो इसका एक पंख चाहिए ताकि मैं उस उपवन में जा सकूं।

वो वर्धान के करीब जाने लगी।
जैसे-जैसे वो वर्धान के करीब जा रही है, वैसे-वैसे वर्धान उसकी खुशबू से कुछ हरकत करने लगा — उसकी हाथों की उंगलियां हिलने लगीं, पैरों में जैसे जान आने लगी हो।

प्रणाली ने अपनी गर्दन दूसरी तरफ करके अपना एक हाथ उसके पर्दे की तरफ बढ़ा दिया।
और इधर-उधर हाथ रख कर देखा तो उसे पंख जैसा कुछ महसूस नहीं हुआ...

लेकिन नींद में एक आवाज़ आई: मैं कल तुम्हें यहीं मिलूंगा...

चूंकि आवाज़ नींद में थी और साफ़ भी नहीं थी, तो उसे कुछ खास समझ नहीं आया।
पर उस आवाज़ से चौक कर उसने अपना हाथ निकाल लिया...!

प्रणाली (सोचते हुए): ऐसा कैसे? एक गरुड़ के पास पंख नहीं है? क्या ये बिना पंखों वाला गरुड़ है...?

वो सोचती है: एक बार पर्दे के अंदर देखती हूं कि क्या है...
(फिर खुद से): नहीं-नहीं-नहीं... कहीं इसे होश आ गया तो? मैं और कोई दुश्मनी नहीं चाहती।

उसने एक बार फिर बिना देखे उसके पर्दे में हाथ डाला।
इस बार उसका हाथ वर्धान के हाथ पर पड़ा।

तभी एक प्यारे से एहसास ने वर्धान को झकझोर दिया... वर्धान इस एहसास को पहचानता है।
उसने फौरन उसका हाथ कस कर पकड़ लिया, लेकिन होश में तो अभी भी नहीं आया।

प्रणाली चौंक गई और अपना हाथ छुड़ाने लगी...
पर वर्धान की पकड़ ही इतनी मजबूत थी कि वो विफल रही।

प्रणाली (हाथ छुड़ाते हुए): छोड़ो... मैं तो बस एक पंख लेना आई थी।

वर्धान शायद किन्हीं सपनों में खोया था — उसने प्रणाली को कस कर खींचकर अपनी बाहों में ले लिया।
तभी एक तेज़ हवा आई और वर्धान के दोनों पंख उसके पास शरीर पर प्रकट हो गए।

पूरे महल में एक तेज़ और तीखी गरुड़ पक्षी की आवाज़ गूंज गई।

वर्धान ने प्रणाली को इतनी तेजी से खींचा कि सारे पर्दे वर्धान के ऊपर गिर गए।
वर्धान के ऊपर सारे पर्दे... और उन पर्दों के ऊपर प्रणाली।

उसने प्रणाली को इस कदर बाहों में जकड़ लिया कि वो खुद को छुड़ा न सकी।

प्रणाली: छोड़ो मुझे... गलती की यहां आकर। पंख किसी और से ले लेती!

तभी प्रणाली की नज़र पंखों पर गई।
वो बहुत खुश हुई।

वो अपने हाथों को उसके पंखों तक ले जाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बेहोशी की हालत में भी उसकी ताक़त, प्रणाली के आपे से बाहर थी।

तब उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ा, तो कुछ देर में वर्धान ने भी अपनी पकड़ कम की।
और प्रणाली सरक कर उसकी पकड़ से बच निकली।

इतनी तेज़ आवाज़ सुनकर सैनिक अंदर की तरफ आने लगे।
उसने तुरंत उसका एक पंख लिया और खिड़की के सहारे बाहर निकल आई।

वहां से निकलकर प्रणाली ने चैन की सांस ली और बोली:
प्रणाली: भगवान का शुक्र है कि उस राक्षस जैसे दानव से मैंने खुद को बचा लिया... मेरी तो सांस ही रुक गई थी।


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दूसरी तरफ:
सैनिकों ने कक्ष में प्रवेश किया और गिरे हुए परदे देखकर और वर्धान के शरीर में हलचल देख कर वैद्य और गरुड़ शोभित को बुलाया गया।

गरुड़ शोभित कमरे में घुसते ही कुछ महसूस करते हैं —
गरुड़ शोभित: यहां कोई इंसान आया था... तुम लोग यहां ये आज्ञा पालन कर रहे हो?

वैद्य: गरुड़ शोभित! राजकुमार की नब्ज और दिल की धड़कनें अपनी रफ्तार में आ गई हैं।

गरुड़ शोभित: क्या सच में?

तभी वहां एक लड़की आती है —
लड़की: क्या वर्धान को होश आ गया?

गरुड़ शोभित उसे देखते हैं और खुश हो जाते हैं,
गरुड़ शोभित (मुस्कुराते हुए): ओ... तुम आ गई सैय्युरी...? आओ!