वर्धांन: हां तो मैं कहीं फँस गया होऊंगा… ये तुमने सोचा कभी?
प्रणाली (कुछ याद करते हुए): अरे हां… तुम्हें तो चोट लगी थी ना…
(वो वर्धांन को दोनों हाथों से पकड़कर ध्यान से देखने लगती है।)
वर्धांन को उसकी ये फ़िक्र बहुत प्यारी लगती है।
वो देखती है कि वर्धानं उसे घूर रहा है।
प्रणाली (गुस्से में): अरे… मुझे क्या देख रहे हो! कुछ पूछ रही हूँ मैं?
वर्धांन (हल्की मुस्कान के साथ): ये पूछ लेती तो कब का ठीक हो गया होता।
पता है पर उस हालत में भी ऐसा लगा कि तुम मेरे पास आई थीं… तुमने मुझे छुआ और कहा — "तुम जल्दी ठीक हो जाओगे..."
प्रणाली (हैरान होकर): क्या बोल रहे हो? किस हालत में? और मैं कहाँ आई थी?
(वर्धांन मन में सोचता है): इसका गरुड़ लोक में क्या काम… मेरा भ्रम ही होगा वो।
प्रणाली (गुस्से में): अगर तुम्हें खुद से ही बात करनी है तो मैं चलती हूँ!
(वो घूम कर जाने लगती है। वर्धांन को उसकी ये इनसिक्योरिटी समझ नहीं आती।
वो प्रणाली का हाथ पकड़ कर यूं खींचता है कि वह सीधा आकर उसके सीने से टकरा जाती है।
उसके बाल वर्धांन के चेहरे पर फैल जाते हैं।)
वर्धांन धीरे-धीरे उसके बालों को खुद से अलग करने लगता है।
उसकी इतनी क़रीबी से दोनों के दिलों की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं।
प्रणाली कुछ पल उस लम्हे में खो जाती है।
फिर हटने लगती है, लेकिन उसके बाल वर्धांन की कुर्ते के बटन में उलझ जाते हैं।
वो झटका देती है, और और भी क़रीब पहुंच जाती है।
अब दोनों एक-दूसरे की आँखों में बिना पलक झपकाए देख रहे हैं।
प्रणाली बालों को हटाने जाती है… उसी वक़्त वर्धांन भी हाथ बढ़ाता है।
दोनों का हाथ एक-दूसरे पर रख जाता है।
कुछ लम्हों के लिए समय वहीं थम जाता है।
फिर दोनों झटके से हाथ पीछे हटा लेते हैं।
वर्धांन (धीरे से): मैं कर देता हूँ…
प्रणाली: हम्म…
(वर्धांन उसके बाल सुलझा देता है।)
प्रणाली: अब मैं चलती हूँ।
वर्धांन (अचानक): अभी मत जाओ ना........!
(प्रणाली वहीँ रुक जाती है।
वर्धांन धीरे-धीरे उसके पास आता है और उसके पीछे खड़ा हो जाता है।
प्रणाली की धड़कनें इतनी तेज़ हैं कि वो पलट भी नहीं पा रही।)
(वर्धांन पीछे से उसके हाथों को छूता है… फिर हथेलियों को थाम लेता है।
अब प्रणाली की हथेलियाँ वर्धांन की हथेली में हैं।)
वर्धांन (धीरे से): तुम्हारे लिए कुछ लाया था…
इजाज़त दो तो… देना चाहता हूँ।
(प्रणाली कुछ नहीं कहती।
उसकी खामोशी को हाँ समझकर, वर्धांन अपनी जेब से चूड़ियाँ निकालता है और एक-एक करके पहनाने लगता है।)
चूड़ियाँ उसके हाथों में बहुत सुंदर लग रही हैं।
प्रणाली (खुश होकर): तुम्हें पता है… आज बाजार में भी मुझे ऐसी ही…..... (वो चूड़ियों को देखती है और रुक जाती है)
ये तो वही चूड़ियाँ हैं… जो दुकानदार से बार-बार टूट रही थीं!
(वर्धांन की मुस्कान अचानक रुक जाती है।)
प्रणाली (शक से): तुम्हें बिल्कुल वैसी ही चूड़ियाँ कैसे मिलीं? और चूड़ियाँ ही क्यों?
(अब वो उसे संदेह की नज़रों से देखने लगी)
कहीं वो चूड़ियों का टूटना तुम्हारा काम तो नहीं?
वर्धांन (सहमा हुआ): मैं… वो… मैं एक…
प्रणाली खुद ही बात संभालते हुए: मैं भी कैसी बात कर रही हूँ… तुम कैसे?
(वर्धांन की जान में जान आती है। वो झूठी हँसी के साथ कहता है…)
वर्धांन: हां… मैं कैसे?
प्रणाली: उस गरुड़ हमले के बाद से, मैं हर चीज़ को शक की नज़र से देखने लगी हूँ।
वर्धांन (चौंकते हुए): गरुड़ हमला???
प्रणाली: Shhhhhh… इतनी तेज़ मत बोलो।
वर्धांन: पर क्यों?
प्रणाली: हम गरुड़ वंश के दुश्मन हैं… और कुछ समय पहले उन्होंने हम पर हमला किया था।
जिसमें मेरे भाई की जान जाते-जाते बची।
वर्धांन (हैरान होकर): क्या...? गरुड़ों ने तुम पर हमला किया?
पर ये कैसे हो सकता है?
प्रणाली: हाँ, जानती हूँ… तुम नहीं मानोगे कि ‘गरुड़ वंश’ जैसी कोई चीज़ होती है।
पर ये सच है।
(वर्धांन मन में सोचता है): एक गरुड़ हमला...? मुझे इस बारे में क्यों नहीं पता?
वर्धांन (गंभीरता से): मुझे जाना होगा।
(प्रणाली उसका बदला हुआ व्यवहार देखती है, लेकिन समझ नहीं पाती।)
प्रणाली: ठीक है।
(वर्धांन जाने लगता है, फिर अचानक रुक कर पीछे मुड़ता है।)
वर्धांन: सुनो…
प्रणाली: हां… क्या हुआ?
वर्धांन (थोड़ा शिकायती लहजे में): तुमने मुझसे ये क्यों छुपाया कि तुम एक राजकुमारी हो?
प्रणाली: मुझे नहीं पता था कि हम कभी दोस्त भी बनेंगे।
(वर्धांन पीछे मुड़ जाता है, और उसके मुंह से निकलता है…)
वर्धांन: दोस्त….... बस दोस्त......??!
उसे ये सुनकर बहुत बुरा लगता है
(वो फिर उसके पास आता है और उसका हाथ पकड़कर चलने लगता है।)
प्रणाली: ये क्या कर रहे हो?
वर्धांन: फ़िक्र मत करो… तुम्हें वहीं छोड़ने जा रहा हूँ, जहाँ से लाया था।
(उसके लहजे में एक शिकायत थी।
दोनों घोड़े पर बैठते हैं और निकल जाते हैं।)
(रास्ते भर प्रणाली बस यही सोचती रही कि "इसको अचानक क्या हो गया?")
(वर्धांन घोड़ा रोकता है।)
वर्धांन: यहाँ से आगे तुम्हारे सिपाही मिल जाएंगे।
(प्रणाली उतरती है…)
प्रणाली: हाँ… ये तो ठीक है, पर तुम गुस्सा क्यों हो?
वर्धांन (मुँह फुला कर): मैं क्यों गुस्सा होऊँगा… मैं तो दोस्त हूँ ना… दोस्त थोड़ी गुस्सा होते हैं?
(और वो मुड़कर चला जाता है…)
प्रणाली (मन में): इसको क्या हो गया?
(फिर वो अपनी चूड़ियाँ देखकर मुस्कुरा उठती है… उसकी यादों में खो जाती है।
तभी उसकी दासियाँ वहाँ पहुँच जाती हैं।)
माला: राजकुमारी जी! आप ठीक तो हैं? वो घुसपैठिया कहाँ गया?
प्रणाली (टशन में): उसे तो मैंने हरा कर भगा दिया!
(अब सभी सिपाही भी वहाँ पहुँच जाते हैं।)
प्रणाली (सिपाहियों से): महल में किसी को इस हादसे के बारे में बताने की ज़रूरत नहीं है।
वरना तुम सबको निकाल दिया जाएगा।
(सब थोड़े डर जाते हैं और चुप रहने का फैसला करते हैं।)
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