सीन: वर्धांन और गरुड़ शोभित
वर्धांन गरुड़ लोक पहुंचता है।
गरुड़ शोभित अपने दरबार में किसी काम में व्यस्त हैं,
तो वर्धांन वहीं इंतज़ार करने लगता है।
काम खत्म होते ही, वह उन्हें उनके कक्ष में ले जाता है और गुस्से में बोल पड़ता है:
वर्धांन (गुस्से में):
"पिता जी... आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?"
गरुड़ शोभित (हैरान होकर):
"क्या हुआ? तुम इतने क्रोधित क्यों हो?"
वर्धांन:
"आप ही तो बचपन से बताते आए हैं कि हम एक संधि से बंधे हैं..."
गरुड़ शोभित:
"कौन सी संधि? तुम बोल क्या रहे हो?"
वर्धांन (आवेश में):
"मेरी बेहोशी की हालत में आपने बीजापुर पर हमला किया?! आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?"
गरुड़ शोभित (हैरानी और गुस्से में):
"क्या?! बीजापुर पर हमला?! ये क्या बोल रहे हो?
तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?"
वर्धांन:
"ऐसा ही हुआ है!"
गरुड़ शोभित (गंभीर):
"गरुड़ लोक की तरफ से बीजापुर पर कोई हमला नहीं हुआ है!
और गरुड़ वंशज किसी भी ब्रह्मवंशी पर हमला नहीं कर सकते — तुम्हें ये बात समझ नहीं आ रही?"
तभी तो हमने कहा कि उसे मजबूर करो कि वो खुद अपनी शक्तियां त्याग दे।
वर्धांन (भ्रमित):
"अगर ये हमला गरुड़ लोक से नहीं हुआ... तो फिर कहाँ से?"
गरुड़ शोभित (संदेह से):
"तुम धरती लोक में प्रणाली से मिले क्या?"
(वर्धांन चुप हो जाता है)
गरुड़ शोभित (आरोप लगाते हुए):
"तो... तुमने अपने प्रेमजाल पर काम शुरू कर दिया?"
वर्धांन (झट से):
"नहीं! और न मैं उससे मिला, न ही मैं ऐसा कुछ करने वाला हूँ!"
गरुड़ शोभित (कठोर स्वर में):
"तो फिर अपनी आँखों से कितने मासूमों को मरते देखोगे? क्यूंकि अगर प्रणाली इस परी निकली तो ,तुम्हे लगता है देवता उस राज्य को सही सलामत रहने देंगे जहां से हर कोई स्वर्ग आ सके ??????
वर्धनम नम आंखों से ये सब सुन रहा है....
देवता और बीजापुर के इस मतभेद के बीच ब्रह्मा जी ने हमें खड़ा किया है।।।
तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है ये अब इतना आसान नहीं है।
वर्धांन (बेबस होकर):
"पिता जी... कृपया कोई रास्ता बताइए न... मैं ये नहीं कर सकता!"
गरुड़ शोभित:
"ठीक है, मत करो!"
वर्धांन (उम्मीद से):
"सच?! कोई और रास्ता है?"
गरुड़ शोभित (निर्णायक स्वर में):
"ये काम कनिष्क करेगा।"
वर्धांन (आश्चर्यचकित):
"क्या?! कनिष्क?! पर क्यों?"
गरुड़ शोभित:
"वो प्रणाली के करीब जाएगा... और ये काम पूरा करेगा।"
वर्धांन (भयभीत और उत्तेजित):
"पिता जी, आप ऐसा नहीं कर सकते! आप जानते हैं कि कनिष्क कितना निर्दयी है!"
गरुड़ शोभित:
"मैं सब जानता हूँ, लेकिन किसी को तो ये ज़िम्मेदारी लेनी ही होगी!"
वर्धांन:
"वो प्रणाली को नुकसान पहुँचा सकता है!"
गरुड़ शोभित (ठंडे स्वर में):
"मैं इस वक़्त पूरे बीजापुर की सलामती के बारे में सोच रहा हूँ — न कि सिर्फ एक लड़की की..."
(वर्धांन खुद को बहुत बेबस महसूस करता है, वह कुछ नहीं समझ पा रहा कि क्या करे।)
गरुड़ शोभित जाने लगते हैं।
वर्धांन (बड़े संघर्ष से):
"करूंगा! लाऊँगा उसे गरुड़ लोक! और छीन लूंगा उससे सारी शक्तियाँ!
मैं करूंगा ये... आप कनिष्क को मत बुलवाइए!"
गरुड़ शोभित (सीधा सवाल):
"तो क्या तुम प्रेमजाल बना पाओगे?"
वर्धांन (गुस्से और लाचारी में):
"बनाऊंगा! और छल भी करूंगा!"
गरुड़ शोभित:
"तुम्हें ये काम जल्दी करना होगा।"
(वो चले जाते हैं।)
(वर्धांन गुस्से में वहाँ रखा हर सामान तहस-नहस कर देता है)
"क्या करूं मैं? क्या करूं??" (वो चीखता है)
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दृश्य: सय्युरी का प्रवेश
(सय्युरी उसे ढूंढते हुए वहाँ पहुंचती है)
वर्धांन की हालत देखकर वह परेशान हो जाती है।
सय्युरी (चौंकते हुए):
"ये क्या कर रहे हो, वर्धांन? क्या हुआ?"
(वो उसके हाथ में चोट देखती है, जो तोड़-फोड़ के दौरान लगी थी)
सय्युरी:
"ये क्या हो गया? तुम्हें होश है खुद का?"
(वो उसका हाथ पकड़ लेती है)
(वर्धांन कुछ नहीं बोलता, बस अपने ख्यालों में खोया है)
सय्युरी (उसे झकझोरती है):
"वर्धांन!"
(लेकिन वह वहाँ से जाने लगता है)
(सय्युरी उसका हाथ पकड़ती है)
"तुम मुझे नहीं बताओगे?
मैं इस लोक की होने वाली गरुड़ रानी हूँ — तुम मुझे अनदेखा नहीं कर सकते!"
(वर्धांन अपना हाथ झटक देता है और पलट कर उसकी ओर देखता है)
उसकी आँखों में गुस्सा नहीं, आग जल रही है।
सय्युरी दो कदम पीछे हट जाती है।
वर्धांन (आँखों में खून लिए):
"अभी नहीं! मुझे इस वक्त कुछ करने पर मजबूर मत करो!"
(वो वहाँ से चला जाता है)
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दृश्य: प्रणाली के कक्ष में
प्रणाली महल पहुँचती है —
अपने कक्ष में जाकर उस पल को याद करने लगती है...
कभी अपनी चूड़ियों को देखती है, तो कभी खुली आँखों से वर्धांन को महसूस करती है।
वो खुद में मुस्कुरा रही है — मानो उसे न जाने क्या मिल गया हो।
(तभी राजा अग्रेण प्रवेश करते हैं)
राजा (हँसते हुए):
"लगता है, आज का राज्य-दौरा बहुत अच्छा रहा... हमारी पुत्री का!"
(प्रणाली चौंक जाती है)
"जी… पिता जी आप? क्या हुआ? भैया ठीक तो हैं न?"
राजा:
"हम ये बताने आए हैं कि तीन दिन में तुम्हारा राज्याभिषेक है।"
प्रणाली (सदमे में):
"पर... इतनी जल्दी क्यों?"
राजा:
"ये तय तिथि थी, पुत्री!"
प्रणाली (घबरा कर):
"पर... भैया को लगेगा कि मैं उनका हक छीन रही हूँ...
उन्होंने मेरी जान के लिए अपनी जान दांव पर लगाई थी।
और मैं कैसी बहन हूँ कि उनकी गद्दी पर स्वयं बैठ रही हूँ?"
राजा (संयमित भाव से):
"ये बस तब तक के लिए है जब तक पारस ठीक न हो जाए।
तुम इस सबकी फ़िक्र मत करो।"
(प्रणाली चुप रह जाती है)
राजा (धीरे से):
"हमें बस तुम्हारे विवाह की चिंता है।
राज्याभिषेक के बाद शायद हमें विवाह कुछ समय टालना पड़ेगा...
अविराज को क्या उत्तर देंगे हम?"
प्रणाली (इस बात को सुनकर मुस्कुरा उठती है):
"क्या...? अगर राज्याभिषेक हो गया तो विवाह नहीं करना होगा?"
राजा (थोड़े सोचकर):
"हाँ...।"
प्रणाली:
"ठीक है — तीन दिन में राज्याभिषेक की तैयारी कीजिए!"
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