Us Paar bhi tu - 3 in Hindi Love Stories by Nirbhay Shukla books and stories PDF | उस पार भी तू - 3

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उस पार भी तू - 3



गंगा के किनारे चलते हुए, जब सूर्य की लालिमा पानी में बिखर रही होती थी, तो उस समय भी प्रकाश के मन में एक अनकही उदासी छुपी रहती थी। उसकी चाल में जो गंभीरता थी, वह सिर्फ बनारस की गलियों की वजह से नहीं, बल्कि एक बड़े दुःख की छाया भी थी।

कुछ साल पहले, जब प्रकाश अभी किशोर था, उसके पिता का एक भयानक सड़क हादसा हुआ। उस दिन से घर में जैसे धूप की जगह साये छा गए। पिता की मुस्कान जो कभी घर की दीवारों को रोशन करती थी, अब सिर्फ यादों में बाकी रह गई।

प्रकाश के पिता, रामकृष्ण, एक मेहनती और सरल इंसान थे। वे रोज़ सुबह जल्दी उठकर काम पर जाते और शाम को अपने छोटे से परिवार के लिए मेहनत करते। उनकी गहरी आवाज़ और स्नेहिल छुअन, दोनों ही घर में प्यार और सुरक्षा की भावना जगाते थे।

पर किस्मत ने कुछ और ही लिखा था। एक दिन जब वे काम से लौट रहे थे, एक तेज़ गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी। वे वहीं गिर पड़े और दुनिया छोड़ गए। उस हादसे ने पूरे परिवार को झकझोर दिया।

अब घर की सारी जिम्मेदारी साधना माँ के कंधों पर आ गई। एक माँ जिसने अपने पति के बिना भी अपने बेटे की परवरिश बड़े प्यार और हिम्मत से की। वह कभी कमजोर नहीं पड़ी। हर दिन वह अपने बेटे के लिए नई उम्मीद लेकर उठती, और उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरत को पूरा करने में जुट जाती।

प्रकाश, जो अब बड़े होकर अपने पिता की कमी को हर दिन महसूस करता था, अपनी माँ की ताकत से प्रेरित था। उसकी आँखों में पिता के प्यार की यादें और माँ के संघर्ष का सम्मान दोनों समाए हुए थे।

घर में कभी भी पिता की कमी महसूस होती, तो बस माँ की दुआएं और उसकी ममता की छाँव उसे संभाल लेती। दोनों की आत्माओं में एक गहरा रिश्ता था — दुःख से लड़ने वाला, प्यार से जुड़ा हुआ।

बनारस की गलियों की तरह, जहाँ हर पत्थर के पीछे एक कहानी होती है, वैसे ही प्रकाश के जीवन की कहानी में भी पिता की यादें और माँ का संघर्ष गहरे दाग छोड़ चुके थे।



प्रकाश जब गंगा की सीढ़ियों से ऊपर निकलता था, तो उसके कदमों में सिर्फ बनारस की महक नहीं, बल्कि एक बड़ा सपना भी छुपा था। वह सपना जो उसके पिता ने देखा था — एक ऐसा सपना जो कभी पूरा न हो पाया, लेकिन अब उसकी उम्मीदें और उम्मीदों का भार प्रकाश के कंधों पर था।

रामकृष्ण, प्रकाश के पिता, एक साधारण आदमी थे, जिनके मन में एक ही इच्छा थी — अपने बेटे को पढ़-लिखकर आगे बढ़ते देखना। उन्होंने अपने छोटे-छोटे संसाधनों से अपने बेटे की शिक्षा का बीड़ा उठाया था। "बेटा, पढ़ाई से बड़ा कोई हथियार नहीं," वे अक्सर कहते।

परंतु भाग्य ने उनको इस खुशी को देखने से पहले ही रोक दिया। उनकी अचानक मौत ने घर में अंधेरा घेर दिया, लेकिन उनके सपने की लौ बुझी नहीं।

अब प्रकाश के लिए वो सपना किसी दीवार पर लिखा हुआ मंत्र बन गया था, जो हर दिन उसे आगे बढ़ने की ताकत देता था। वह जानता था कि उसके पिता की आत्मा उसके साथ है, उसे हर मुश्किल से लड़ने की हिम्मत दे रही है।

वो सुबह जल्दी उठता, किताबें खोलता और गंगा के किनारे बैठे पंडितों से शिक्षा पाने की कोशिश करता। उसने खुद को एक वादा किया था — वह अच्छे कॉलेज में दाखिला लेकर अपनी और माँ की जिंदगी बदल देगा।

हर अक्षर जो वह पढ़ता, हर सवाल जो वह हल करता, उसके मन में पिता की मुस्कान झलकती। उसकी आँखों में एक चमक थी — न केवल पढ़ाई के लिए, बल्कि अपने पिता के सपने को साकार करने के लिए।

प्रकाश की मेहनत और लगन को देखकर गाँव के लोग भी उसकी तारीफ करते, कहते, "ये लड़का जरूर बड़ा आदमी बनेगा।" पर प्रकाश को ये सब नहीं भाते, उसका ध्यान सिर्फ एक ही चीज़ पर था — अपने पिता के अधूरे सपने को पूरा करना।




प्रकाश के पास खानदानी पैसे नहीं थी वह एक मिडिल क्लास इंसान था …



यही था प्रकाश का जीवन — एक साधारण, पर सपनों से भरा हुआ जीवन। एक ऐसा जीवन जिसमें संघर्ष और उम्मीद साथ-साथ चलते थे। एक जीवन जो बनारस की उन गलियों की तरह था, जहाँ हर मोड़ पर नई कहानी छुपी होती है।

और अब, आईए, हम मुख्य कहानी की ओर एक नजर डालते हैं…


1960 का दशक — एक अलग ज़माना, एक अलग एहसास

1960 का दशक था — देश आज़ाद हुआ था कुछ साल पहले, लेकिन लोगों के दिलों में एक नई उम्मीद, नई चाहतें जग रही थीं। उस दौर में मोहब्बत भी मासूम थी, सरल थी, और दिल से होती थी।

बनारस की गलियों में, गंगा के किनारे, और पुरानी हवेलियों की छांव में कई ऐसी कहानियाँ जन्म लेती थीं, जो आज भी लोगों के दिलों में छुपी हुई हैं।



प्रेम कहानी — जहां दिल की सुनवाई होती है

यह कहानी भी एक ऐसी ही प्रेम कहानी है — जिसमें कोई शोर-शराबा नहीं, कोई दिखावा नहीं, बल्कि सिर्फ़ दिल से दिल की बात होती है।

यह कहानी है प्रकाश की — जो अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए मेहनत करता रहा, और एक लड़की से मिलता है — जिसकी ज़िंदगी में भी अपने सपनों और उम्मीदों का उजाला था।

यह कहानी है दो दिलों की, जो बनारस की गलियों में मिले, और अपने-अपने संघर्षों को पीछे छोड़, एक नई दुनिया की ओर बढ़े।