Us Paar bhi tu - 8 in Hindi Love Stories by Nirbhay Shukla books and stories PDF | उस पार भी तू - 8

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उस पार भी तू - 8

अगले हफ़्ते की एक सर्द-सी सुबह थी।
प्रकाश, अपने कंधे पर झोला लटकाए,
कॉलेज के गेट की ओर धीरे-धीरे क़दम बढ़ा रहा था।

मन में हल्की उत्सुकता थी —
इतने दिन बाद कॉलेज आना,
और सबसे बढ़कर ये जानने की चाह कि राधिका कैसी है।

जैसे ही वो कॉलेज के मुख्य द्वार से अंदर जाने को हुआ,
वहीं — ठीक उसी जगह जहाँ उनकी पहली मुलाकात हुई थी,
अचानक से सामने से आती राधिका से उसका आमना-सामना हो गया।

दोनों के कदम ठिठक गए।

एक पल को दोनों चौंके —
फिर उसी क्षण प्रकाश ने शरारत भरी मुस्कान के साथ
अपना हाथ धीरे से अपने गाल पर रख दिया,
जैसे इशारे में कह रहा हो —
"देख लेना... कहीं फिर से न मार बैठो!"

राधिका हँस पड़ी।
उसके चेहरे पर शर्म और मुस्कान साथ-साथ तैरने लगी।

उसने हँसते हुए कहा —
"अब नहीं मारूँगी... वादा है!"

प्रकाश ने आँखें थोड़ी चौड़ी कीं और बोला —
"अच्छा है... वरना इस बार हेलमेट पहनकर आता।"

दोनों हँस पड़े।

वो मुलाकात, जो कभी एक थप्पड़ से शुरू हुई थी,
अब एक मुस्कान में ढल चुकी थी।

और अब... कॉलेज के दिन जैसे बदल से गए थे।

प्रकाश और राधिका अब अक्सर साथ दिखाई देते।
कॉलेज की लाइब्रेरी हो या क्लास के बाद की सीढ़ियाँ —
दोनों कहीं-न-कहीं किताबों के साथ बैठे मिलते।

प्रकाश पढ़ने में तेज़ था,
और उसका समझाने का तरीका इतना सरल और शांत था
कि राधिका को भी अब पढ़ाई में रुचि आने लगी थी।

वो जब कुछ समझ नहीं पाती,
तो हल्के से कहती —
"प्रकाश... ये समझा दो न..."

और प्रकाश बिना कुछ कहे
कलम उठाता, कॉपी खोलता
और उसके लिए बिल्कुल धैर्य से हर बात समझाने लगता।

कभी-कभी जब राधिका ध्यान नहीं देती,
तो वो मज़ाक में कहता —
"अब थप्पड़ नहीं मारना, लेकिन ध्यान से पढ़ना ज़रूरी है!"

राधिका मुस्कुरा देती।

धीरे-धीरे वो सिर्फ एक-दूसरे को समझ नहीं रहे थे,
बल्कि एक-दूसरे की दुनिया का हिस्सा बनते जा रहे थे।

क्लास के बीच की खामोशियाँ भी अब बोली जाने लगी थीं —
कभी नज़रों से, कभी मुस्कान से, और कभी किताबों के ज़रिए…

अब दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे।
वक़्त के साथ एक ऐसा बंधन बन गया था जिसमें न कोई बनावटीपन था, न कोई औपचारिकता।

राधिका, जो पहले थोड़ी तुनकमिज़ाज और नाज़ुक सी लगती थी,
अब प्रकाश के साथ एकदम बच्ची बन जाती।
वो शरारतें करती, कभी उसकी कॉपी छिपा देती,
कभी किताब के बीच में फूल रखकर कहती —
"अब बताओ, ये सवाल हल कर सकते हो?"

प्रकाश उसकी हर हरकत पर मुस्कुराता,
कभी डाँटता नहीं, बस हल्के से कहता —
"तुम्हारे लिए पढ़ाई से ज़्यादा मस्ती ज़रूरी है, है न?"

राधिका हँस देती —
"तुम्हारे साथ सब आसान लगता है, इसलिए मस्ती भी कर लेती हूँ।"

कॉलेज का हर दिन अब उनके लिए कुछ खास हो गया था।
शरारतों, हँसी, और कुछ अनकहे एहसासों से भरा हुआ।

और इस सबमें, न जाने कब...
उनकी ये मासूम दोस्ती कुछ गहराने लगी थी —
बिना कहे... बस धीरे-धीरे।


एक रोज़ क्लास में शांति छाई हुई थी।
सभी छात्र ध्यान से शिक्षक की बातें सुन रहे थे।

अचानक शिक्षक ने अपनी जगह से उठते हुए कहा —
"प्रकाश, तुम बताओ… ये सूत्र किस सिद्धांत पर आधारित है?"

प्रकाश बिना हिचक के खड़ा हुआ और आत्मविश्वास के साथ पूरा उत्तर दे दिया।
शिक्षक मुस्कुराए और बोले —
"अच्छा, अब राधिका बताओ..."

राधिका जो ज़रा इधर-उधर ध्यान दे रही थी, घबरा गई।
उसने कुछ सोचकर बोलने की कोशिश की लेकिन उत्तर अधूरा रह गया।
शिक्षक ने ज़रा सख्ती से कहा —
"जब ध्यान नहीं है, तो क्लास में रहने का भी कोई मतलब नहीं। बाहर जाओ।"

राधिका चुपचाप उठी और बाहर चली गई।
प्रकाश ने ज़रा सहानुभूति से उसकी ओर देखा…
पर मन ही मन उसकी हालत पर मुस्कुराए बिना नहीं रह पाया।