Chandrvanshi - 7 - 7.3 in Hindi Detective stories by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 7 - अंक 7.3

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चंद्रवंशी - अध्याय 7 - अंक 7.3

“जागो जागो राजकुमारीजी।” पारो सुबह-सुबह संध्या के पास आकर बोली।  
राजकुमारी बंद आँखें रखकर ही पारो की आवाज़ पहचानकर बोली, “क्यों? क्या हुआ कि इतनी सुबह-सुबह आ गई?”  
“राजकुमारीजी, हमें बारात लेकर जाना है।”  
“बारात... किसकी?” अचानक आँखें खोलते हुए संध्या बोली।  
“राजकुमार की;” कहते-कहते पारो रुक गई और कहा, “नहीं बारात तो मेरे भाई की जाएगी, राजकुमार तो पहले ही शादी कर चुके हैं।”  
सुबह के समय हाथ में दीए की रौशनी लिए खड़ी पारो को आश्चर्य से संध्या देखने लगी। फिर अचानक उठकर बोली, “भाई ने शादी कर ली है?”  
अचानक उठी हुई संध्या को देखकर पारो घबराकर पीछे हटती हुई बोली, “हाँ राजकुमारीजी, राजकुमार ने जंगीमल के साथ युद्ध के समय, उनके राज्य की एक कन्या के यहाँ शरण लेने के बाद, वहाँ विवाह प्रस्ताव उसके पिता के सामने रखकर वहीं शादी कर ली थी।”  
राजकुमारी क्रोधित हो गई और अपनी जगी हुई अवस्था में ही अपने कमरे से बाहर निकलकर मदनपाल के कमरे की ओर दौड़ने लगी। पारो भी उसके पीछे दौड़ी।  
दोनों अब मदनपाल के बड़े कमरे के बाहर पहुँच गईं। वहाँ बाहर एक सिपाही खड़ा था। उसने राजकुमारी को रोकने का प्रयास किया, तभी पारो बोली, “ए सिपेहसालार! अंधा है क्या जो राजकुमारी को रोकने का प्रयास कर रहा है?” सिपाही तुरंत पीछे हट गया।  
“कहाँ है भाई! क्या कर रहे हैं तुम्हारे महाराज, आज तो उन्हें नहीं छोड़ूँगी।” कहते-कहते संध्या दौड़ती हुई सीधे मदनपाल के कमरे में पहुँची, पर वहाँ तो एकदम अंधेरा था। अचानक संध्या किसी से टकराई और नीचे गिर गई। सामने वाले व्यक्ति ने कवच पहना हुआ था, जिससे संध्या को टकराने पर पता चला। पारो भी उसके पीछे पीछे वहाँ पहुँच गई। पारो ने नीचे गिरी हुई राजकुमारी को तुरंत उठाया और खड़ा किया, फिर बोली, “राजकुमारी, आपको कहीं चोट तो नहीं आई न?”  
“राजकुमारीजी!” सामने खड़े व्यक्ति की आवाज़ अंधेरे में से उभरी। आवाज़ थोड़ी जानी-पहचानी लगी, लेकिन पारो बिना कुछ सोचे ही बोल पड़ी, “हाँ राजकुमारी... और इस अंधेरे में तुम राजकुमार के कमरे में क्या कर रहे हो? कौन हो तुम?” कहते हुए पारो ने अपने हाथ में रखे दीए की रोशनी उसके चेहरे की ओर की और तुरंत चौंकते हुए बोली, “रा.. रा... राजकुमारी।” वह और कुछ नहीं बोल सकी।  
संध्या भी चकित होकर देखने लगी।  
वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि सूर्यांश था। तभी अचानक अंधेरे से मदनपाल बोल पड़ा, “मुझे तो पहले से ही पता था कि मेरी शादी की बात सुनकर मेरी बहन सबसे पहले मुझ पर तांडव नृत्य करेगी, इसलिए ही मैंने अपनी ढाल को कल रात ही अपने पास रख ली थी।” संध्या उसकी बात सुनकर एकदम शरमा गई और फिर अपने कमरे की ओर दौड़ पड़ी। संध्या की शादी सूर्यांश से होने वाली है। यह बात उसकी माँ ने ही उसे बता दी थी।  
कमरे में आकर बैठी संध्या ने पारो से कहा, “क्या वह भी साथ चल रहे हैं वहाँ?”  
“अरे राजकुमारी, वह बात बताना तो भूल ही गई कि वह दोनों दोस्त साथ ही थे। तो वह जगह उनके अलावा किसी और ने कहाँ देखी होगी!” पारो बोली।  
संध्या को आज सोलहों श्रृंगार करके तैयार होना है। इसलिए उसने पारो से कहा, “पारो, जल्दी से हमारे महल में जो दासी सबसे सुंदर सजाती है, उसे बुलाकर लाओ।”  
महल में सुबह से ही दौड़-धूप शुरू हो गई। राज्य में भी राजकुमार की शादी की बात लोग एक-दूसरे को बताने लगे, यह बात जंगीमल के एक जासूस के कानों तक भी पहुँच गई।  
सूरज अब आँख मिचमिचाता आसमान में निकल आया और एकदम से चल रही भाग-दौड़ को देखकर वह भी कुछ समझ नहीं सका। उसने देखा कि आज संध्या भी उसकी पूजा के लिए नहीं आई। (संध्या को बचपन में एक बड़े साधु ने भविष्यवाणी की थी कि “यह लड़की जब तक सुबह-सुबह सूर्य पूजा करती रहेगी, तब तक ही चंद्रवंशी राजाओं का राज्य रहेगा।”)
कुछ ही देर में बहुत तेजी से कई रथ एक साथ महल के बाहर निकलने लगे। उनके साथ आधे सैनिक भी बहुत सा सामान लेकर निकल पड़े।  
इस बात से खुश होकर जंगीमल एक चाल की योजना बनाने लगा और एक अंग्रेज जासूस को अपनी योजना एक पत्र में लिखकर दे दी। उसे अंग्रेज गवर्नर सर फेडरिक जॉन तक पहुँचाने के लिए कहा। वह जासूस पत्र लेकर निकल पड़ा।  

***  

“पानी... पानी...” एक अंधेरे कमरे में कई दिनों से बंद पड़ी जीद प्यास से छटपटाते हुए बोल रही थी। बाहर खड़े व्यक्ति के कानों तक उसकी बात पहुँची तो कुछ देर में उसने दरवाज़ा खोला।  
जीद की आँखों में बाहर की रोशनी आई। किडनैप की गई जीद को वैसे तो रोज़ सूरज की रोशनी मिलती थी, लेकिन वह क्षणिक मात्र रहती थी। बाहर से आ रही रोशनी में जीद का चेहरा कुछ म्लान सा हो गया था। उसकी आँखों के नीचे काली रेखा उभर आई थी। आँखों की कोंपलें देखकर लग रहा था कि जैसे कोई अधेड़ उम्र की स्त्री भी ज्यादा चिंता में डूबकर जीवन का अंत करने का बड़ा निश्चय कर चुकी हो, वैसे जीद कमरे में नीचे बैठकर मछली की तरह पानी के लिए तड़प रही थी।  
बाहर से आया हुआ वह व्यक्ति उसका पानी दरवाज़े के पास ही नीचे रखकर फिर दरवाज़ा बंद करके चला गया। जीद ने उसके जाते ही अंधेरे में भी पानी खोजकर अपने गले की प्यास बुझाने की कोशिश की। जीद के मन में अब भी वे दृश्य जीवंत होकर घूम रहे थे, जो उसने चंद्रवंशी पुस्तक के अंत में पढ़े थे। उसे पिया गया पानी जैसे गले में नहीं उतरकर आँखों से बाहर निकल रहा हो ऐसा लग रहा था।  
उसी समय अचानक उसके कमरे के दरवाज़े से कोई ज़ोर से टकराया। विचारों में डूबी जीद ने कुछ नई आवाज़ सुनी तो उसका ध्यान दरवाज़े की ओर गया। कुछ ही क्षणों में कोई एक बार फिर टकराया और दरवाज़ा खुल गया।  
पानी रखकर चला गया वह व्यक्ति खून से लथपथ होकर लॉबी में कमरे की चौखट पर गिरा पड़ा था।  
अचानक सामने आ पहुँचे व्यक्ति को देखकर जीद खड़ी हो गई।  
उस व्यक्ति ने सिर पर नीली टोपी पहन रखी थी।  

***