📖 Chapter 4: सुबह का सन्नाटा
सुबह हो चुकी थी।
दरवाज़े की घंटी लगातार तेज़ी से बज रही थी, मगर घर के अंदर सभी गहरी नींद में सो रहे थे।
कुछ ही देर में रोज़ नींद से उठी और बेमन से दरवाज़ा खोलने चली गई।
बाहर वही बूढ़ा चौकीदार खड़ा था, हाथ में नाश्ते की टोकरी लिए।
"इतनी सुबह-सुबह?" रोज़ ने आंखें मसलते हुए पूछा।
बूढ़ा मुस्कराया,
"मैडम, सुबह के 11 बज गए हैं। मैं पहले भी आया था, लेकिन कोई नहीं उठा… तो वापस जाकर नाश्ता गर्म किया और फिर से ले आया। ये लीजिए, अब चलता हूँ।"
रोज़ हैरान रह गई,
"इतनी देर तक हम सब सोते रह गए?"
वो जल्दी से राज के कमरे की ओर बढ़ी।
"राज, सुबह हो गई है, चलो उठो। नाश्ता कर लो," रोज़ ने कहा, लेकिन जैसे ही वो राज को देखती है — उसका चेहरा डर से सिमट जाता है।
राज की आंखें लाल थीं। पूरे शरीर पर नाखूनों के गहरे निशान थे।
"राज! ये क्या हाल बना लिया है तुमने?"
राज कराहते हुए बोला,
"बहुत खुजली हो रही है... पूरी रात सो नहीं पाया।"
रोज़ चिंतित हो गई।
"नहीं, अब और नहीं। आज ही डॉक्टर के पास चलेंगे। अभी तुम नाश्ता कर लो, मैं बाकी सबको उठाती हूँ।"
राज दर्द से तड़पता हुआ बिस्तर पर लेट गया।
रोज़ जब किचन की ओर बढ़ी, तो देखा कि रॉमी और सोनल पहले से ही नाश्ता कर रही थीं।
सोनल ने मुस्कराते हुए कहा,
"आ जाओ रोज़, गरमागरम नाश्ता करो।"
"अभी टाइम नहीं है। मोहन कहाँ है?" रोज़ ने जल्दी में पूछा।
सोनल बोली,
"वो तो कल बहुत पी गया था… अब तक सो रहा होगा।"
रोज़ ने गहरी सांस ली,
"राज की हालत बहुत खराब है। पूरी रात खुजली से परेशान रहा। हमें उसे डॉक्टर को दिखाना होगा।"
रॉमी ने चम्मच रखकर रोज़ की ओर देखा,
"तुम लोग सच में डॉक्टर के पास जाना चाहती हो? हम जंगल के बीचों-बीच हैं, अपनी मर्जी से नहीं आए हैं। जो तुम लोगों ने किया है, उसके कारण पुलिस तुम्हें ढूंढ रही है। जैसे ही तुम बाहर जाओगी, पकड़े जाओगी।"
रोज़ गुस्से से बोली,
"तुम कैसी बहन हो? तुम्हें उसकी कोई परवाह नहीं है?"
रॉमी की आंखों में अजीब सी चमक थी,
"मैं तो चाहती हूँ कि वो मर ही जाए।"
इतना सुनते ही रोज़ रॉमी पर झपटने को हुई, लेकिन सोनल ने बीच में आकर उसे रोक लिया।
"रोज़, रुक जाओ। शायद रॉमी ठीक कह रही है। हम बाहर नहीं जा सकते।"
रोज़ कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी राज कमरे से बाहर निकल आया।
उसके हाथ खुजलाते जा रहे थे। आंखें और भी लाल थीं, और शरीर पर खून बह रहा था।
सभी उसे देखकर दंग रह गए।
"राज! खुद को देखो! रुक जाओ... अब और मत खुजलाओ!" रोज़ ने घबरा कर कहा।
रॉमी ताना मारते हुए बोली,
"क्या बात है भैया, अभी भी ज़िंदा हो? लग तो रहा है ज़्यादा दिन की मेहमान नहीं हो।"
राज का गुस्सा अब काबू से बाहर हो चुका था। उसने रॉमी को ज़ोर का तमाचा मारा, और रॉमी ज़मीन पर गिर गई।
इसके बाद वो उस पर लातों से हमला करने लगा।
"मर तो मैं बाद में जाऊँगा… लेकिन तुझे पहले मारूंगा!" राज दहाड़ा।
रॉमी दर्द में भी हँस रही थी,
"यही तो देखना चाहती थी मैं… तेरा असली रूप! हाहा!"
"राज, बस करो!" रोज़ चिल्लाई।
सोनल ने उसे पकड़ने की कोशिश की।
इतने में शोर सुनकर मोहन भी जाग गया। वो भागते हुए आया और चिल्लाया,
"ये सब क्या हो रहा है!"
रोज़ और सोनल ने साथ मिलकर कहा,
"राज को रोको! वो रॉमी को मार देगा!"
मोहन ने दौड़कर राज को पकड़ लिया और उसे खींचते हुए कमरे में बंद कर दिया।
सोनल ने रॉमी से कहा,
"तुम पागल हो गई हो क्या? मरना चाहती हो?"
रॉमी ने सोनल को धक्का दिया और लड़खड़ाते हुए बाहर की ओर निकल गई।
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अगला दृश्य
कमरे में राज अब भी गुस्से से कांप रहा था।
"राज! होश में आओ! क्या हो गया है तुम्हें?" मोहन ने पूछा।
रोज़ बोली,
"राज को बहुत तेज़ खुजली हो रही है। वो रात भर सो भी नहीं पाया।"
"क्या?" मोहन चौंका।
"हाँ… देखो उसकी हालत," रोज़ ने कहा।
मोहन अब गौर से रोज़ की तरफ़ देखने लगा।
"रोज़… क्या तुम भी खुजला रही हो?"
रोज़ झेंप गई,
"थोड़ी बहुत… पर मैं ठीक हूँ। राज की हालत गंभीर है।"
"हाँ," मोहन ने कहा, "मुझे याद है… तुम्हें तभी से खुजली हो रही है जब उस बूढ़े के कुत्ते ने तुम्हें काटा था।"
सोनल ने सिर हिलाया,
"सच… तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो मोहन।"
मोहन ने गंभीर स्वर में कहा,
"इसका असर शायद रोज़ पर भी हो रहा है… क्योंकि ये दोनों कपल हैं।"
"शायद…" सोनल ने सोचा।
राज अब सब कुछ समझ चुका था।
"ये सब… उस कुत्ते की वजह से हुआ है," वो गुस्से से बोला, "आज मैं उसे छोड़ूंगा नहीं!"
राज किचन में गया, और एक तेज़ धार वाला चाकू उठा लिया। बिना कुछ कहे, गुस्से से बाहर निकल पड़ा।
सबने उसे रोकने की कोशिश की, मगर वो जा चुका था।
मोहन भी फौरन उसके पीछे भागा।
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Chapter 5 में क्या राज उस कुत्ते को ढूंढ़ पाएगा?
या फिर कहानी एक और खतरनाक मोड़ लेने वाली है?
पढ़ते रहिए... "वो जो दिखता
नहीं…" 🔥
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