🌸 तेरे मेरे दरमियाँ – एपिसोड 5
"सफ़र जो क़रीब लाए… या और दूर कर दे?"
बारिश थम चुकी थी, लेकिन मौसम में नमी अब भी बाकी थी। कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर लगा सर्कुलर हर किसी की नज़र में था।
"डिबेट इवेंट – जयपुर इंटरकॉलेज प्रतियोगिता, चयनित छात्रों को दो दिन के लिए टूर पर भेजा जाएगा।"
संजना जैसे ही बोर्ड के सामने पहुँची, उसकी आँखें उसी नाम पर जाकर रुक गईं—
“आरव मल्होत्रा – संजना शर्मा”
उसकी उंगलियाँ सख्ती से नोट्स फाइल के कोने को दबोच चुकी थीं। दिल में हल्की बेचैनी थी।
दो दिन… एक अनजान शहर… और एक ऐसा लड़का, जिससे वो जुड़ना नहीं चाहती थी… मगर दूर भी नहीं हो पा रही थी।
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🚌 अगली सुबह – यात्रा की शुरुआत
जयपुर के लिए बस तैयार थी। कॉलेज के पाँच अन्य छात्र भी थे, लेकिन सबकी निगाहें बस में चढ़ते आरव और संजना पर टिक गई थीं।
संजना खिड़की के पास बैठ गई। वो बाहर देख रही थी — बिना पलक झपकाए, जैसे धुंधलके में खुद को छिपा लेना चाहती हो।
आरव उसके बगल में बैठा, और बिना कुछ कहे चुपचाप बैग एक ओर रखा।
कुछ मिनटों की ख़ामोशी के बाद, उसने धीरे से कहा —
"डरो मत… मैं तुम्हें खा नहीं जाऊँगा।"
संजना उसकी ओर नहीं देखी। उसने बस इतना कहा,
"मुझे तुमसे डर नहीं लगता… लेकिन खुद से सवाल पूछने लगती हूँ जब तुम्हारे आसपास होती हूँ।"
आरव चुप रह गया।
बस का सफर चलता रहा। रास्ते में बारिश फिर से शुरू हो गई थी। खिड़की पर टपकती बूंदें जैसे उनके बीच की चुप्पियों को आवाज़ दे रही थीं।
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🏨 जयपुर – होटल अमन रिट्रीट
होटल पहुँचते ही आयोजकों ने सभी को कमरे अलॉट किए।
“डबल रूम… संजना शर्मा और श्रेया वर्मा”
“डबल रूम… आरव मल्होत्रा और आदित्य जैन”
आरव और संजना की नज़रें एक पल के लिए मिलीं।
वो अब competitors नहीं थे… लेकिन एक दूसरे की मौजूदगी को नज़रअंदाज़ कर पाना भी आसान नहीं था।
रात में सभी प्रतिभागियों के लिए एक छोटा orientation रखा गया। हॉल में हल्की रोशनी थी, और कुर्सियों पर बैठे छात्र धीरे-धीरे एक-दूसरे से घुलने-मिलने लगे थे।
संजना ने खुद को कोने में बैठा लिया था। तभी आरव हाथ में दो कॉफी लिए उसके पास आया।
"ये लो… बिना शक्कर की। तुम्हें मीठा पसंद नहीं है, है ना?"
संजना ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
"तुम्हें कैसे पता?"
आरव मुस्कराया —
"ध्यान दिया है। तुम सोचती हो कोई तुम्हें नहीं देखता… लेकिन मैं देखता हूँ।"
संजना का दिल एक पल को थम गया। वो पहली बार उसके शब्दों में तंज़ नहीं, सच्चाई देख रही थी।
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🌃 रात – होटल की छत पर
सेमिनार अगले दिन था, लेकिन संजना को नींद नहीं आ रही थी। वो छत पर चली आई। ठंडी हवा चल रही थी। जयपुर की रौशनी दूर तक फैली हुई थी।
वहीं रेलिंग के पास आरव पहले से खड़ा था।
"तुम यहाँ?"
"तुम भी?"
दोनों एक साथ मुस्कराए।
"तुम्हें कभी लगता है कि तुम्हारे आसपास सब कुछ होते हुए भी… कुछ खाली सा रहता है?"
आरव ने पूछा।
संजना ने जवाब नहीं दिया, बस एक गहरी साँस ली।
फिर अचानक आरव ने कहा—
"मेरे पापा नहीं हैं। जब मैं 10 साल का था, एक एक्सिडेंट में चले गए। और उसके बाद… घर सिर्फ घर नहीं रहा। सिर्फ माँ थी और ढेर सारा सन्नाटा।"
संजना स्तब्ध रह गई। उसने आरव को हमेशा एक घमंडी, अकड़ू लड़के की तरह देखा था।
आज पहली बार उसकी आवाज़ में थकान थी। टूटन थी।
"मैं समझ सकती हूँ… मेरी माँ भी एक अकेली महिला हैं। उन्होंने मेरी परवरिश अकेले की। शायद इसीलिए मैं लड़कों से दूर रहती हूँ। मुझे लगता था… हर कोई धोखा देता है।"
आरव उसकी ओर मुड़ा।
"शायद हम दोनों अपनी-अपनी दीवारों के पीछे थे… और अब वो दीवारें दरकने लगी हैं।"
संजना ने पहली बार उसकी आँखों में देखा — वहाँ कोई मुकाबला नहीं था, कोई घमंड नहीं… बस सच्चाई थी।
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🌞 अगली सुबह – सेमिनार हॉल
स्टेज पर आरव और संजना एक साथ थे। उनका विषय था:
“Debate As Dialogue – Respecting Differences”
आरव ने शुरुआत की:
"कभी-कभी हम बहस जीत जाते हैं… लेकिन इंसान हार देते हैं। असल संवाद वहीं से शुरू होता है, जहाँ हम सुनना शुरू करते हैं।"
संजना ने आगे बढ़ते हुए कहा:
"रिश्ते भी एक संवाद हैं… जहाँ बात से ज़्यादा समझना ज़रूरी होता है। और ये हम जैसे दो अलग सोच रखने वाले लोगों ने महसूस किया है।"
पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
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🚌 वापसी की यात्रा
बस में वापस वही सीटिंग — खिड़की की ओर संजना, और उसके बगल में आरव।
लेकिन इस बार चुप्पी नहीं थी।
"कभी सोचा था हम यहाँ तक पहुँचेंगे?"
आरव ने पूछा।
"नहीं… लेकिन अब जब पहुँचे हैं, तो वापसी आसान नहीं लगती,"
संजना ने हल्के से मुस्कराते हुए कहा।
"तो क्या… अगला सफर साथ तय करें?"
आरव की आँखें संजीदा थीं।
संजना ने जवाब नहीं दिया। लेकिन उसकी मुस्कराहट सब कुछ कह चुकी थी।
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🔚 एपिसोड 5 समाप्त
👉 अगले एपिसोड में:
जब कॉलेज में उनकी नज़दीकियाँ सबकी नज़रों में आने लगती हैं —
क्या आरव और संजना के रिश्ते पर कोई नई परीक्षा आएगी?