Bhoot Bangla in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | भूत बंगला

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भूत बंगला

"रात के तीसरे पहर, जब पूरा गाँव नींद में डूबा रहता था और सिर्फ सियारों की हूक और उल्लुओं की बोली सुनाई देती थी, तब गांव के पास खंडहर में तब्दील एक पुरानी हवेली 'राजपुर हवेली' से एक औरत की चीख सुनाई दी। कहते हैं, जिसने भी वो चीख सुनी, उसका अगला सूरज नहीं निकला..."

सन 1893 की बात है। उत्तर भारत के एक छोटे से गाँव 'धनौरा' में एक आलीशान हवेली थी—राजपुर हवेली। इस हवेली का मालिक था ठाकुर अमर प्रताप सिंह, जो अपनी रौब और क्रूरता के लिए कुख्यात था।

ठाकुर की हवेली एक पहाड़ी की चोटी पर बनी थी, जहां तक पहुँचने वाला रास्ता झाड़ियों, काँटों और सूखे पेड़ों से ढका रहता था।

एक रात ठाकुर की बेटी राधिका की शादी थी। डोलियाँ सज चुकी थीं, मेहमान आ चुके थे, लेकिन अचानक बिजली की कड़कड़ाहट और तूफ़ान के साथ दुल्हन गायब हो गई। कोई कहता है ठाकुर ने ही उसे ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया क्योंकि वो किसी नौकर से प्रेम करती थी। तभी से, उस रात के बाद, हवेली में अजीब-अजीब घटनाएं घटने लगीं...

गाँव के दो युवक हरीश और मोहन शर्त लगाकर हवेली में रात बिताने गए। अंदर घुसते ही दरवाज़ा खुद-ब-खुद बंद हो गया। दीवारों से खून टपकने लगा, और कोनों में बैठी सफेद साड़ी वाली औरत बिना चेहरा घुमाए लगातार रोती रही। मोहन डर के मारे पागल हो गया और हरीश की सुबह लाश मिली—आँखें खुली और चेहरा डर से नीला पड़ा।

हवेली के मध्य कक्ष में एक विशाल शीशा था। कहते हैं, जो भी उसमें देखता था, उसे अपने पीछे कोई खड़ा नज़र आता। गांव के पुरोहित ने बताया कि ये "अंतराल द्वार" है। एक ऐसा दर्पण जो मरे हुओं और ज़िंदा लोगों के बीच का रास्ता है।

हवेली की घड़ी हमेशा 1:33 पर रुक जाती थी। ठीक उसी समय जब राधिका की मौत हुई थी। हर रात उसी समय हवेली से चूड़ियों की झनझनाहट और पायल की आवाजें आने लगतीं।

गांव के बुजुर्गों की मानें तो राधिका की आत्मा अभी तक हवेली में कैद है। लेकिन असली रहस्य तब सामने आया जब मास्टर देवकीनंदन, गाँव का शिक्षक, हवेली का इतिहास खंगालते हुए राजपुर परिवार की एक पुरानी डायरी ले आया। डायरी में लिखा था—

"राधिका ने आत्महत्या नहीं की थी। उसे अपने पिता ने ही ज़िंदा दफ़ना दिया था, क्योंकि वो ठाकुर की इज़्ज़त पर दाग थी। और वो नौकर—रघु—ठाकुर का ही नाजायज़ बेटा था..."

यह रहस्य पूरे गाँव को हिला देता है। अब लोगों को समझ आया कि हवेली का शाप क्यों नहीं टूटा—क्योंकि अन्याय का हिसाब अभी बाकी था।

पुरोहित ने हवेली में 'मुक्ति यज्ञ' करने का निर्णय लिया। पूरा गाँव इकट्ठा हुआ। अग्नि जलते ही हवेली की दीवारें हिलने लगीं, ज़मीन फटने लगी और दर्पण से एक डरावना काला साया बाहर निकला ना वो राधिका थी, ना ठाकुर बल्कि एक ऐसा राक्षसी रूप जिसे इंसानों के अन्याय ने जन्म दिया था। वो साया सबको घूरता हुआ बोला—

"मुझे इंसान नहीं, इंसानियत जलानी है..."

और हवेली धधक उठी। उस रात पूरा गाँव काँप गया। कई लोग गायब हो गए और जो बचे, वो भी कभी उस पहाड़ी की ओर नहीं गए।

राजपुर हवेली आज भी उसी पहाड़ी पर खड़ी है खंडहर, पर जिन्दा। आज भी रात के तीसरे पहर वहां से पायल की आवाज़ आती है। अब गाँववालों ने हवेली की ओर जाने वाला रास्ता पत्थरों से बंद कर दिया है।

लेकिन कहते हैं— "हर बार जब चाँद पूरी तरह गोल होता है, हवेली की एक खिड़की से लाल रौशनी बाहर झांकती है... शायद कोई अब भी राह देख रहा है। इंसाफ की... या एक और शिकार की।"

अगर तुमने ये कहानी रात में पढ़ी है, तो अगली बार जब खिड़की से कोई आहट आए तो मत देखना… शायद राधिका अब हवेली से बाहर आ चुकी है।

क्या तुम अगली कहानी का इंतज़ार करोगे... या हवेली में खुद जाना चाहोगे?

डर अभी खत्म नहीं हुआ…