Ek Ladki ko Dekha to aisa laga - 15 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 15

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एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 15



रिद्धान गुस्से में पूरी टीम को अपने केबिन में बुलवाता है। उसकी आंखों में गुस्सा नहीं — बेचैनी है, और दिल में बेमिसाल डर।

“जब मैंने कहा था कि सिर्फ ड्रोन व्यू लिया जाएगा, तो ये लोग वहाँ ज़मीन पर क्या कर रहे थे? किसने भेजा इन्हें? और प्राकृति वहाँ कैसे पहुंची? उसने अभी तक फील्ड रिपोर्टिंग भी नहीं की थी!”

कमरे में सन्नाटा छा जाता है।

कोने में खड़ी वंशिका सिर्फ हल्की सी मुस्कुरा रही होती है। जैसे सब पहले से तय था।

आरव धीरे से उसके पास आता है।

"ये सब तुमने तो...?"

वंशिका उसकी तरफ देखती है, मुस्कुराती है और बस धीरे से कहती है—
“श्श्श्श...”

रिद्धान को कुछ भी समझ नहीं आता। वो अपने केबिन में लौटता है। कुर्सी पर बैठकर एकटक सामने देखने लगता है।

मन ही मन सोच रहा होता है —
"प्राकृति ने ये फैसला खुद से क्यों लिया? उसने बिना बताए इतनी बड़ी रिस्क क्यों ली? ये प्रोफेशनलिज़्म नहीं है… लेकिन… ये डर क्यों सता रहा है मुझे?"

उसी पल वो कबीर को कॉल करता है।

"कबीर, मुझे तुम्हारी ज़रूरत है। मैं चाहता हूँ कि तुम वहीं जाओ। सब कुछ मॉनिटर करो। मौसम खराब हो रहा है। मैं नहीं चाहता कि और कोई खतरे में पड़े।"

कबीर सीरियस हो जाता है —
"ठीक है, मैं शाम तक निकलता हूँ।"

शाम हो जाती है। रिद्धान अपने केबिन से बाहर निकल रहा होता है तभी एक ऑफिस स्टाफ हड़बड़ाया हुआ उसके पास आता है, सांसें फूली हुईं।

"सर… उत्तराखंड की हालत बहुत खराब हो चुकी है। तेज बारिश के बाद लैंडस्लाइड हुआ है। पूरी टीम वापस आ रही है… लेकिन…"

रिद्धान रुकता है, माथे पर शिकन पड़ती है —
"लेकिन क्या?"

"प्राकृति मैम कुछ एक्सक्लूसिव फुटेज के लिए अकेले अंदर चली गई थीं… अब उनका कोई संपर्क नहीं मिल रहा।"

रिद्धान की सांसें थम जाती हैं। उसके हाथ से फोन गिरते-गिरते बचता है। पलभर के लिए सब कुछ सुनाई देना बंद हो जाता है। बस एक ही आवाज़ अंदर गूंजती है — "वो अकेली है… और लापता..."

वो बिना एक शब्द बोले चुपचाप अपनी गाड़ी की चाबी उठाता है और तेज़ी से निकल पड़ता है।


(कॉल पर Ridhaan —आवाज़ में authority और चिंता दोनों)

Ridhaan:
"कबीर, एक काम और चाहिए तुमसे — मुझे प्राकृति की exact location ट्रेस करनी है। उसका फोन unreachable है, लेकिन GPS access है क्या?"

Kabir (दूसरी तरफ से):
"मैं ट्राय करता हूँ, Last signal कल शाम 5:48 पर था — old valley track के पास। बारिश के कारण feed टूट गई थी।"

Ridhaan (तेज़ स्वर में):
"उस area का satellite view निकालो, aur weather overlay लगा दो. मुझे वो sector detail में चाहिए — landslide warning zone कौन सा है?"

Kabir (typing sound के बीच में):
वो region अभी रेड अलर्ट में है — करीब एक घंटे पहले major land shift हुआ है। अगर प्राकृति उस zone में थी…"

Ridhaan (बीच में काटते हुए):
"Don’t say it. तुम coordinates भेजो। बाक़ी मैं देख लूंगा। Main निकल रहा हूँ."

Kabir:
" सावधानी से। Roads बंद होंगी… signal bar bar जाएगा…"

Ridhaan:
"बस तुम signal trace करते रहना। एक बार मैंने उसे ढूंढ लिया… बाकी सब मैं संभाल लूंगा

बारिश तेज़ है। रास्ते धुँधले हैं, पहाड़ों के घुमावदार मोड़ अब और भी खतरनाक लग रहे हैं। कुछ किलोमीटर आगे जाकर सड़क बंद हो जाती है। कार से उतर कर रिद्धान पैदल ही टॉर्च लिए निकल पड़ता है।

वहां के कुछ लोकल भी उसी के साथ जा रहे है प्रकृति को ढूंढने......

हर कदम पर कीचड़, फिसलन और अंधेरा। मगर उसकी आँखों में सिर्फ एक चेहरा घूम रहा है — प्रकृति का।

वो बार-बार आवाज़ लगाता है —

“प्रकृति! तुम सुन रही हो?? तुम कहाँ हो यार, जवाब दो!”

अचानक झाड़ियों के पास उसे कुछ दिखता है — एक स्कार्फ। वही जो प्राकृति ने उस सुबह पहना था। उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं।
वो और भी घबरा जाता है: नहीं.....नहीं नहीं नहीं......तुम्हे कुछ नहीं हो सकता ।।।।
ये बोलता बोलता वो और वो लोकल लोग आगे बढ़ जाते है
रिधान पागलों की तरह उसे ढूंढ रहा है।
तभी आगे के रस्ते का पत्थर खिसका हुआ है, और आगे का रास्ता और भी कच्चा लग रहा है।।।



तभी उनमें से एक बोलता है: रुक जाइए आगे का रास्ता कच्चा है, हमें सर्च टीम का वेट करना चाहिए......।

पर रिधान तो रिधान ठहरा वो उनकी किसी बात को सुने ,उस गड्ढे की फांद कर आगे चला गया।

वो और अंदर की ओर भागता है। एक चट्टान के नीचे एक छोटी सी ओट में प्राकृति बेहोश पड़ी होती है। बदन पूरा भीगा हुआ, कपड़े मिट्टी से सने हुए, माथे से खून बह चुका है।
वो चिल्लाता है: प्रकृति...... 
और भाग कर उसके पास चला जाता है,

रिद्धान तुरंत उसके पास बैठ जाता है। उसका सिर अपने सीने पर रखता है, कांपते हुए आवाज़ में कहता है —

“प्राकृति... सुनो... देखो मैं आ गया... कुछ नहीं होगा तुम्हें...”

वो उसे अपनी जैकेट में लपेटता है, और खुद भीगते हुए उसे सीने से लगाता है। उसकी सांसें लड़खड़ा रही हैं, लेकिन होश अभी बाकी है।

"अगर तुम्हें कुछ हो जाता... तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाता..."

धीरे-धीरे प्राकृति की आंखें खुलती हैं। कमजोर मुस्कान उसके होंठों पर आती है। वो बमुश्किल बोल पाती है — में..में...मेरा कैमरा.....(वो दूसरी तरफ इशारा करती है,वहां उसका कमरा पड़ा है)

रिद्धान उसकी आंखों में देखता है — Shut up , just  shut up.........तुम्हारी जान उस शॉट से ज़्यादा कीमती है। तुम मेरी ज़िम्मेदारी हो... और शायद उससे कुछ ज़्यादा भी..."

प्राकृति उसकी बांहों में दुबक जाती है। और वो उसे थामे रहता है — उस अँधेरे में, उस खामोशी में, उस अहसास में... जहाँ अब शब्दों की ज़रूरत नहीं रही।