भाग 2 _ राज के पर्दे
रिया की आंख खुली। उसने खुद को एक अस्पताल के बिस्तर पर पाया। उसकी मां, सुनीता, उसका हाथ थामे पास बैठी थी।
रिया को धीरे-धीरे पिछली रात की डरावनी घटनाएं याद आने लगीं।
सुनीता ने उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा, “बेटा, तुम हमें अलमारी में बेहोश मिली थीं। क्या हुआ था तुम्हारे साथ?”
इतना सुनते ही रिया कांप उठी। उसकी आवाज जैसे गले में ही अटक गई।
मां ने आगे कहा, “अच्छा हुआ मैं और आयुष सुबह जल्दी घर आ गए थे, नहीं तो राम जाने क्या हो जाता!”
रिया सोचने लगी – अगर मैं इन्हें सच्चाई बता दूं तो क्या ये यकीन करेंगे?
वो बोली, “वो... कल घर में चूहा दिख गया था। मैं डर के मारे अलमारी में छुप गई।”
उसकी बात सुनते ही आयुष हँस पड़ा, “हह्ह्ह, दीदी! चूहे से डर गईं आप? इतनी डरपोक हैं आप?”
लेकिन मां को कुछ तो खटक रहा था। उसने रिया को कभी इस कदर सहमी हुई नहीं देखा था।
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दोपहर
रिया डिस्चार्ज होकर घर लौटी। भूत-प्रेत में उसका कभी विश्वास नहीं था, लेकिन पिछली रात जो कुछ देखा... वो किसी आत्मा से कम नहीं था।
जैसे ही उसने घर में कदम रखा, अंदर घुसते ही उसका दिल एक बार फिर भय से भर गया।
क्या मैं वाकई इस घर में सुरक्षित हूं?
लेकिन खुद को संभालते हुए वो अंदर चली गई।
मां ने देखा — रिया का चेहरा उतरा हुआ था।
“रिया, तू ठीक तो है ना?”
रिया ने सिर झुकाकर कहा, “हां मॉम, ठीक हूं।”
मां बोली, “तो फिर जल्दी से तैयार हो जा, वरना एग्ज़ाम के लिए लेट हो जाएगी।”
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एक्ज़ाम हॉल
रिया अपनी सीट पर बैठी थी, मगर उसका ध्यान कहीं और था — उसकी आंखों में पिछली रात के डर अब तक जिंदा थे।
घंटी बजी —
“रिया! ध्यान किधर है तुम्हारा? आंसर शीट दो। टाइम इज अप।”
एग्जामिनर की आवाज से वो चौंकी।
पीछे की रो में बैठा राहुल ये सब नोटिस कर रहा था।
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बाहर निकलते वक्त
“रिया, रुको!” राहुल दौड़ता हुआ आया।
दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। अक्सर एक-दूसरे के सुख-दुख बाँटते थे।
राहुल के दिल में रिया के लिए एक खास जगह थी – प्यार की। लेकिन वो कभी हिम्मत नहीं जुटा पाया।
राहुल बोला, “क्या हुआ? आज कुछ तो गड़बड़ है। एग्ज़ाम भी ढंग से नहीं दी तुमने।”
रिया हल्के से मुस्कराई, “कुछ नहीं… बस पढ़ाई ठीक से नहीं की थी।”
राहुल टोकते हुए बोला, “मैं तुम्हें बहुत समय से जानता हूं रिया। इतनी छोटी बात पर तुम ऐसी परेशान नहीं होतीं। कुछ तो है!”
रिया की चुप्पी टूटी – “तुम भूतों में मानते हो?”
राहुल हँस पड़ा, “हंह… रत्ती भर भी नहीं।”
रिया ने कहा, “तब तुम्हें बताने का कोई फायदा नहीं।”
राहुल गंभीर होकर बोला, “तुम भी तो भूतों में नहीं मानतीं। फिर ऐसी क्या बात है जो मुझे भी नहीं बता सकती?”
रिया धीमे स्वर में बोली, “जो मैंने देखा… वो भूत नहीं था, पर भूत से कम भी नहीं था।”
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कुछ देर बाद
राहुल बोला, “आज मेरी बहन का बर्थडे है। जरूर आना, फैमिली के साथ।”
रिया ने सिर हिलाया और घर की ओर चल पड़ी।
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शाम
रिया के मन में डर फिर लौट आया। वो सोच रही थी — अगर वो चीज़ कल आई थी, तो आज फिर आ सकती है।
तुरंत उसने राहुल को कॉल किया।
“राहुल, अगर मैं तुम्हें ये प्रूव कर दूं कि जो मैंने देखा वो सच था…?”
राहुल ने हैरानी से कहा, “सच में? कैसे?”
रिया बोली, “बस देखते जाओ।”
उसने घर के दरवाज़े के ऊपर मोबाइल कैमरा ऑन करके एक धागे से बाँध दिया। कुंडी लगाई और मां व आयुष के साथ राहुल के घर निकल पड़ी।
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पार्टी
राहुल ने दरवाज़ा खोला, रिया और उसका परिवार सामने खड़ा था।
“वेलकम,” राहुल मुस्कराया।
पार्टी शुरू हो गई, सब एन्जॉय कर रहे थे। मगर रिया एक कोने में अकेली बैठी थी। राहुल उसके पास आया।
“रिया, अब भी टेंशन में हो?”
रिया बोली, “तुम्हें सब कल पता चलेगा।”
रात 12 बज चुके थे।
रिया जानती थी – मां घर लौटने के लिए कहेंगी। मगर वो डर रही थी।
वो राहुल के पास गई, “क्या तुम मां से कह सकते हो कि आज हम सब यहीं रुकें?”
राहुल थोड़ा चौंका, फिर खुशी छिपाते हुए बोला, “अभी बात करता हूं।”
राहुल ने सुनीता आंटी से कहा, “आंटी, अब रात बहुत हो गई है। यहीं रुक जाइए। रास्ते भी सुनसान हो गए हैं।”
थोड़ी झिझक के बाद सुनीता मान गईं।
रिया ने राहत की सांस ली।
“कल… सब सामने आ जाएगा…”
उसने मन ही मन सोचा।
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