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भाग 6 – बदलते हालात
शाम के छह बज चुके थे।
सूरज धीरे-धीरे अस्ताचल की ओर बढ़ रहा था, उसकी नारंगी किरणें आसमान पर एक उदासी का रंग बिखेर रही थीं। राहुल ड्राइविंग सीट पर बैठा, एक हाथ स्टेयरिंग पर और दूसरा विंडो के बाहर लटकाए, मस्त चाल से गाड़ी चला रहा था। कार की हल्की रफ्तार और शांत माहौल में सबकुछ सामान्य लग रहा था — कम से कम ऊपर से।
मगर पीछे की सीट पर बैठी सुनीता, एकदम चुपचाप थी। उसकी आँखें बाहर के दृश्य पर थीं, मगर मन कहीं और। उसके माथे पर सिलवटें थीं, और होंठ बार-बार भींचे जा रहे थे। उसे डर था — गहरा, भीतर तक चुभता हुआ डर।
“क्या हम समय पर रामपुर पहुँच पाएँगे?” यह सवाल उसके मन में बार-बार गूंज रहा था। समय पर रामपुर जान बहुत जरूरी था, वरना सुनीता को उसका अंजाम कुछ और ही होगा ऐसा लग रहा था।
बगल में बैठा आयुष, मोबाइल स्क्रीन में पूरी तरह डूबा था। उसके चेहरे पर कोई चिंता नहीं, बस उत्साह — जैसे ये सब उसके लिए बस एक सफर हो।
लेकिन सबसे अलग थी रिया। वह खिड़की के पास बैठी थी, उसकी आँखें दूर क्षितिज में कुछ खोज रही थीं। हवा उसके बालों को हल्के से उड़ा रही थी, मगर उसका ध्यान कहीं और था।
उसके मन में एक सवाल बार-बार उठ रहा था —
"माँ को ब्रम्हदैत्य के बारे में इतना कुछ कैसे पता है?"
उसका दिल कह रहा था कि माँ कुछ छिपा रही है। कुछ ऐसा जो बहुत बड़ा है।
तभी राहुल ने सुनीता की ओर देख कर पूछा, “आंटी, क्या आप ब्रम्हदैत्य की ताकतों के बारे में कुछ और जानती हैं?”
सुनीता थोड़ी देर चुप रही। जैसे उसके दिमाग में कुछ चल रहा हो। फिर उसने गहरी साँस ली और कहा:
“रात में उसकी शक्तियाँ कई गुना बढ़ जाती हैं, राहुल। वो सिर्फ एक आत्मा नहीं है — वो दैत्य है, राक्षसी शक्ति का प्रतीक। इसलिए हम किसी भी हाल में रात होने से पहले रामपुर पहुँच जाना चाहते हैं। गाँव की सीमा में उसका असर नहीं होता। वहाँ हम सुरक्षित रहेंगे।”
राहुल ने फौरन अगला सवाल दागा, “लेकिन वो आप लोगों के ही पीछे क्यों पड़ा है? ऐसा क्या है जो उसे बार-बार आपकी फैमिली की ओर खींच लाता है?”
रिया की साँसें थम सी गईं। उसकी माँ ने यह बात आज तक कभी साफ़ नहीं बताई थी।
सुनीता ने राहुल की ओर देखा, फिर रिया की ओर — और हल्के स्वर में बोली:
“इसका जवाब तुम्हें रामपुर पहुँचकर मिलेगा। अभी वक्त नहीं है उस सब बातों का।”
गाड़ी अब एक मोड़ से गुज़री, और सामने एक साइनबोर्ड आया —
‘रामपुर – 30 किलोमीटर’
राहुल ने मुस्कुराकर कहा, “बस तीस किलोमीटर और... We’re almost there.”
इधर रामपुर में...
ताऊजी की हवेली की दीवारें पुरानी थीं, मगर उनका रौब आज भी वैसा ही था। बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ, ऊँचे छत, और दीवारों पर लगे पुराने तेल चित्र — सब कुछ इतिहास की गवाही दे रहे थे।
ताऊजी लकड़ी की कुर्सी पर बैठे थे, आँखों पर चश्मा और हाथ में एक पुरानी किताब।
अजय, चंदू और कब्बू उनके सामने खड़े थे।
ताऊजी बोले, “ये लो अजय। इस किताब में हमारे कुल का इतिहास लिखा है। इस संदूक का भी जिक्र है। तुम्हारे जैसे पढ़े-लिखे आदमी की जरूरत है अब हमें। देखो इसमें कुछ लिखा हो संदूक को खोलने का। मेरी बूढ़ी आँखें अब ज़्यादा साथ नहीं देतीं।”
अजय ने किताब लेकर आदर से सिर हिलाया, “चिंता मत कीजिए, ताऊजी। ये राज़ मैं ज़रूर खोलूँगा।”
तभी हवेली का दरवाज़ा ज़ोर से खुला।
एक आदमी, पसीने से तर, हाँफता हुआ अंदर आया। उसकी आँखों में डर था।
“अजय भैया... बाबूजी की हालत बहुत खराब है! अस्पताल ले जाना होगा! जल्दी चलिए!”
अजय का चेहरा फक्क पड़ गया। उसकी साँस जैसे रुक गई हो।
बाबूजी — उसकी जान।
वो फौरन उठ खड़ा हुआ और भागने को हुआ, तभी ताऊजी ने पुकारा, “अजय! किताब तो लेता जा!”
अजय ने चंदू की ओर इशारा किया, “तू ले आ इसे... मैं अभी जा रहा हूँ!”
रास्ते में...
गाड़ी में बैठे-बैठे सुनीता ने अपने बैग से एक पुरानी तस्वीर निकाली। वह तस्वीर धुंधली हो चली थी — मगर उसमें मुस्कुराता चेहरा अब भी साफ़ झलकता था: रोहित।
रिया ने वह तस्वीर देखी और उसकी आँखें भर आईं।
“डैडी की बहुत याद आती है... उनके जाने के बाद हम पहली बार गाँव जा रहे हैं न... पता नहीं ताऊजी कैसे रिएक्ट करेंगे... उन्होंने हमेशा आपको गलत समझा।”
सुनीता की आँखें तस्वीर पर गड़ी थीं।
“बात सही या गलत की नहीं है, रिया। कभी-कभी इंसान वही करता है जो वक़्त की माँग होती है। ताऊजी ने जो समझा, अपनी सोच के हिसाब से सही था... और मैंने जो किया, वो भी...”
— मगर सच्चाई इससे कहीं ज़्यादा गहरी थी।
रिया और आयुष को आज तक यही बताया गया था कि रोहित की मौत एक एक्सीडेंट में हुई थी। मगर वास्तविकता कुछ और थी — एक ऐसी सच्चाई जिसे सिर्फ सुनीता और ताऊजी जानते थे।
अचानक गाड़ी झटके से रुक गई।
“क्या हुआ राहुल भैया? गेम का मज़ा खराब कर दिया आपने!” आयुष ने चिढ़ते हुए कहा।
राहुल ने चौंककर कहा, “गाड़ी मैंने नहीं रोकी। लगता है कुछ प्रॉब्लम हो गई है।”
उसने बोनट खोलकर इंजन देखने की कोशिश की। आसपास सन्नाटा था। चारों ओर फैला वीरान मैदान और धीरे-धीरे गहराती रात।
सुनीता को बेचैनी होने लगी।
उसने रिया और आयुष से कहा, “तुम दोनों गाड़ी में ही रहो। मैं राहुल की मदद करती हूँ।”
रिया ने कुछ कहने की कोशिश की, मगर माँ तब तक आगे बढ़ चुकी थी।
अब गाड़ी में सिर्फ रिया और आयुष थे।
आयुष फिर से मोबाइल में खो गया, लेकिन रिया की नज़रें गाड़ी के शीशे से बाहर ही थीं।
फिर... कुछ ऐसा हुआ जिसने उसकी आत्मा तक हिला दी।
दूर खेतों के बीच कुछ हलचल हुई। रिया की आँखें वहाँ टिक गईं।
एक काली परछाई… फिर दूसरी… और फिर — वो आकृति!
उतनी ही भयावह, जैसी उसने विडिओ में देखी थी।
उसकी साँस रुक गई। शरीर कांपने लगा। रिया के पैरों तले जमीन खिसक गई,
“मॉम...!!” उसने चिल्लाया, “पीछे देखो!!!”
(जारी...)
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