Sharapit Gudiya in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | श्रापित गुड़िया

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श्रापित गुड़िया

रात की स्याही जैसे-जैसे गहराती जा रही थी, हवाओं की सरसराहट में कुछ अजीब-सा गूंजने लगा था। गाँव के आखिरी सिरे पर बनी वो पुरानी हवेली, जिसे सालों से किसी ने नहीं छुआ था, आज फिर से ज़िंदा हो उठी थी। एक बूढ़ा दरवाज़ा अपनी जगह से हिला, जैसे किसी ने उसे भीतर से धक्का दिया हो। रात के उस सन्नाटे में हवेली के खंडहरों से आती धीमी-धीमी हँसी ने जैसे हवा को ही जकड़ लिया। लोग कहते थे, उस हवेली में कोई है… पर कोई ज़िंदा नहीं।

बहुत साल पहले, उस हवेली में ठाकुर पृथ्वी सिंह का परिवार रहता था। उनकी बेटी, रजनी, आठ साल की मासूम बच्ची थी जिसे गुड़ियों से बेहद लगाव था। रजनी की एक प्रिय गुड़िया थी। लाल जोड़े में लिपटी, काली चोटी वाली, जिसकी आँखें हमेशा किसी को घूरती रहती थीं। रजनी उसे 'परी' कहकर बुलाती थी। लेकिन कोई नहीं जानता था कि उस गुड़िया के भीतर किसकी आत्मा कैद थी।

एक रात, जब हवेली में अजीब घटनाएँ शुरू हुईं, तो नौकर-चाकर भागने लगे। दीवारों पर खून के हाथों के निशान दिखने लगे। आइनों में किसी और की परछाई झलकती, जो वहाँ होती ही नहीं थी। और रजनी… वो धीरे-धीरे बदलने लगी। उसकी आँखों में एक अजीब चमक थी, और वो घंटों अपनी गुड़िया से बातें करती रहती। ऐसी बातें जो एक बच्ची नहीं कह सकती थी।

रात के एक पहर में अचानक पूरे परिवार की चीखों ने गाँव को जगा दिया। जब लोग दौड़े, तो हवेली में कोई नहीं था—सिर्फ रजनी की वही गुड़िया सीढ़ियों पर बैठी थी, और उसके होंठों पर मुस्कान थी, जैसे उसने सबकुछ देख लिया हो।

गाँव वालों ने उस हवेली को शापित घोषित कर दिया। किसी ने फिर कभी वहाँ कदम नहीं रखा। लेकिन सालों बाद, एक साधु आया। जो आत्माओं से बात करता था। उसने हवेली के पास रात बिताई। अगली सुबह वो पागल हो गया। बस एक ही बात बड़बड़ाता रहा, “गुड़िया ज़िंदा है… वो सब जानती है… उसने रजनी को निगल लिया है…”

कई वर्षों बाद, गाँव में नए ज़मींदार का परिवार बसने आया। उनके सात साल की बेटी, नंदिता को घर की सफाई के दौरान वो गुड़िया मिली। पुरानी, धूल जमी, लेकिन उसकी आँखों में वही चमक अब भी थी। माँ ने गुड़िया फेंकने की कोशिश की, लेकिन वो हर सुबह नंदिता के पलंग पर बैठी मिलती। नंदिता की हँसी बदल गई थी, और उसकी आँखों में कुछ बेहद डरावना था।

रात में घर की दीवारों पर नाखूनों से खरोंचे गए निशान दिखने लगे। नंदिता के कमरे से किसी और की आवाज़ें आतीं, जैसे कोई उसे कोई मंत्र सिखा रहा हो। एक रात, नंदिता की माँ को लगा कि कोई उसे घूर रहा है। उसने पीछे देखा—वो गुड़िया खिड़की पर बैठी मुस्कुरा रही थी, लेकिन कमरे में कोई नहीं था।

अंततः, एक तांत्रिक को बुलाया गया। वह जैसे ही घर में घुसा, हवा अचानक भारी हो गई। उसने गुड़िया को देखा, और बुदबुदाने लगा “ये कोई साधारण गुड़िया नहीं, ये आत्माओं की शरण है… इसके भीतर रजनी की आत्मा अब भी कैद है, लेकिन उसे आज़ादी चाहिए…”

उस रात तांत्रिक ने गुड़िया को श्मशान ले जाकर मंत्रों से बांधना शुरू किया। लेकिन तभी रजनी की आत्मा ने रूप लिया—एक बच्ची का चेहरा, पर आंखें खून से लाल। उसने तांत्रिक को हवा में उड़ा दिया और उसकी चीखें रात की हवाओं में गुम हो गईं। सुबह सिर्फ राख बची थी… और वो गुड़िया, जो अब भी मुस्कुरा रही थी।

गाँव वालों ने उस गुड़िया को एक पत्थर की छाती में बंद कर ज़मीन के नीचे दफना दिया, और ऊपर एक मंदिर बना दिया। लेकिन कहते हैं, जो भी उस मंदिर में जाकर मासूमियत से "परी" कहता है… उसकी आवाज़ के साथ हँसी लौट आती है।

और फिर एक दिन, गाँव में एक बच्चा खेलते-खेलते मंदिर के नीचे की ज़मीन में गिर पड़ा।

अगले दिन, एक गुड़िया गाँव की गली में बैठी मिली… वही लाल जोड़ा, वही काली चोटी, वही घूरती आँखें…

डर कभी खत्म नहीं होता… बस जगह बदल लेता है।