Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 4 in Hindi Horror Stories by Vedant Kana books and stories PDF | Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 4

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Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 4

गांव का बूढ़ा गयाप्रसाद दीवान के जंगल में अग्निवेश को उसके असली वैंपायर रूप में देख लेता है। अग्निवेश उसे मारकर सबूत मिटाने की कोशिश करता है, लेकिन एक छोटा लड़का, पूरी घटना देख लेता है और गांव में अग्निवेश पर पहला शक उभरता है। अब अग्निवेश जान चुका है।उसकी पहचान खतरे में है।

दिन बीतते जा रहे थे। जया की मौत और गयाप्रसाद की रहस्यमय मौत के बाद गांव का माहौल सन्नाटा बन चुका था। कुछ लोगों ने अग्निवेश पर शक किया, पर उसके रूप और व्यवहार की मासूमियत ने सबके शक को खा लिया।

पर अग्निवेश की प्यास थमने वाली नहीं थी।
हर तीसवें दिन, उसका शरीर दर्द करने लगता, आँखों से खून बहने लगता, और भीतर की राक्षसी आत्मा उसे चिल्ला-चिल्ला कर कहती,

 “लहू चाहिए… लड़की का लहू… या तू खुद राख बन जाएगा।”

और अब फिर से… वो शिकार के लिए तैयार था।

गांव की एक और सुंदर लड़की थी – रूपा। उम्र करीब 19 वर्ष, खुले स्वभाव की, तेज़ बोलने वाली, लेकिन बहुत ही भरोसेमंद और बुद्धिमान।

रूपा जया की बचपन की सहेली थी। जया की गुमशुदगी ने उसके दिल को तोड़ दिया था।
वो जानती थी कि कुछ तो गलत हुआ है… और वो खोजबीन करने को तैयार थी।

पर इस बीच, अग्निवेश ने रूपा पर ध्यान दिया।

इस बार वो पहले जैसा प्रेमी नहीं, बल्कि एक शिकारी बन चुका था।
वो जानता था कि रूपा चालाक है… पर अगर उसे विश्वास में लिया जाए, तो वह शिकार बन सकती है।

अग्निवेश ने रूपा के सामने अपने आपको “जया से बहुत प्रेम करने वाला और उसके ग़ायब हो जाने से दुखी” दिखाया।

रूपा पहले तो उलझी हुई थी, लेकिन जब अग्निवेश ने बार-बार उसकी चिंता की, उसे अकेले मंदिर तक छोड़ने गया, और छोटी-छोटी मददें कीं—वो भी थोड़ा पिघलने लगी।

पर रूपा की नज़रें सतर्क थीं।
वो सोचती, “कहीं ये दिखावा तो नहीं? अग्निवेश जितना अच्छा दिखता है, कहीं उतना ही गहरा तो नहीं है?”

फिर भी, कुछ ही हफ्तों में, अग्निवेश ने उसे भी अपने करीब कर लिया।

एक रात अग्निवेश ने कहा,
"रूपा, मैं तुम्हें उस जगह ले जाना चाहता हूं जहां मैं हर दुख भूल जाता हूं। वहां जया के साथ जाने का सपना था… पर अब मैं चाहता हूं, तुम चलो।"

रूपा कुछ कहती, उससे पहले ही अग्निवेश ने उसका हाथ थाम लिया—उसके स्पर्श में एक अजीब सी गर्मी और मोहकता थी।

रूपा ने हाँ कर दी।

रात गहराती गई… और दोनों दीवान के जंगल की तरफ चल पड़े।

जैसे ही वे गुफा के भीतर पहुँचे, रूपा को कुछ असामान्य लगा।
दीवारों पर खून के धब्बे थे। फर्श पर कुछ जले हुए कपड़ों के टुकड़े, और हवा में एक सड़ी लाश जैसी गंध।

"ये कैसी जगह है?" रूपा चौंक कर बोली।
"ये… शांति की जगह नहीं… ये तो किसी की मौत की जगह है…"

अग्निवेश मुस्कराया।
अब उसकी आँखें बदल रही थीं—लाल, चमकती हुई।

उसका स्वर बदल गया—अब वह धीमे नहीं, भारी और गूंजता हुआ था।

"अब तुझे सच दिखाने का समय आ गया है, रूपा… क्योंकि तू मेरा अगला लहू है।"

रूपा पीछे हटने लगी, पर अब देर हो चुकी थी।

अग्निवेश का रूप बदल चुका था—उसकी दाढ़ें लंबी हो चुकी थीं, चेहरा काला और विकृत, और आँखों से आग झलक रही थी।

रूपा ने खुद को झटक कर छुडाया और गुफा से बाहर भागी।
उसके पैर कांप रहे थे, सांसें तेज़, पर उसका दिमाग तेज़ी से सोच रहा था।

"उसे हर कीमत पर गांव पहुंचकर बताना है… अग्निवेश पिशाच है… जया को इसी ने मारा!"

वो पेड़ों के बीच दौड़ी, काँटों से लहूलुहान हो गई, पर नहीं रुकी।

पर तभी, ऊपर से एक साया कूद कर उसके सामने आ गिरा।

वो अग्निवेश था।

उसकी रफ्तार इंसानों से कहीं ज्यादा थी।

उसने रूपा को ज़मीन पर गिरा दिया।

"बहुत चालाक थी तू… पर अब तेरे लहू से मेरी शक्ति दोगुनी होगी।"

रूपा ने रोते हुए कहा, "मैंने तुझ पर विश्वास किया… तू इंसान नहीं, शैतान है।"
पर अग्निवेश के चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था।

उसने अपने नुकीले दांत उसकी गर्दन में गड़ा दिए।

रूपा की चीखों ने पेड़-पत्तों को हिला दिया… पर सुनने वाला कोई नहीं था।

कुछ मिनटों बाद… जंगल में सन्नाटा था।

अगले दिन, गांव वालों को तालाब के पास एक और लड़की की जली हुई चुनरी मिली।

रूपा भी गायब थी।

अब लोगों को यकीन होने लगा ये संयोग नहीं है। किसी की सोची समझी चाल है ।
गांव की लड़कियाँ एक-एक कर गायब हो रही हैं, और कोई नहीं जानता कैसे।

भीमा के पहले बयान और अब इन घटनाओं के बाद, गांव का सारा शक फिर से अग्निवेश पर टिक गया।

पर समस्या ये थी। अग्निवेश तो गांव में था, मंदिर भी जाता था, बीमारों की सेवा करता था।

लोग दुविधा में थे…
"क्या शैतान इतने अच्छे रूप में भी आ सकता है?"

आगे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। तब पंचायत ने राजा तक ये बात पहुंचाने का निर्णय लिया....