💖 "एक मुलाकात – अधूरी नहीं" 💖
एक सच्ची फीलिंग्स वाली रोमांटिक कहानी
पात्र:
अभय – एक शांत, भावुक और इंट्रोवर्ट लड़का।
अंजली – खुशमिज़ाज, बातूनी और खुले दिल की लड़की।
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🌸 पहली मुलाकात – रेलवे स्टेशन पर
सर्दियों की सुबह थी। मैं अपने ऑफिस ट्रिप से घर लौट रहा था। लखनऊ रेलवे स्टेशन पर ट्रेन 2 घंटे लेट थी। ठंड में लोग कॉफ़ी पी रहे थे, कुछ लोग चुपचाप कम्बल ओढ़े बैठे थे।
मैंने अपने बैग से किताब निकाली और पढ़ने लगा। तभी पास वाली बेंच पर एक लड़की आकर बैठी – लाल स्वेटर, खुले बाल, हाथ में गर्म कॉफ़ी और आँखों में जिज्ञासा।
"आप चेतन भगत पढ़ते हो?" उसने पूछा।
मैंने मुस्कराते हुए कहा, "हाँ, हर कहानी में कुछ न कुछ सच्चाई होती है।"
"और कुछ अधूरी भी," उसने कहा और कॉफ़ी की चुस्की ली।
बस वही लम्हा था जहाँ अंजली मेरी ज़िंदगी में दाखिल हुई – बिना बताए, बिना दस्तक दिए।
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☕ बातों का सिलसिला
हम दोनों की ट्रेन एक ही थी – Gomti Express। जब ट्रेन आई, तो इत्तेफाक से हमारे बर्थ आमने-सामने थे।
रातभर बातें होती रहीं – किताबों से लेकर कश्मीर की बर्फ़ तक, पुराने गानों से लेकर भविष्य के सपनों तक।
उसने बताया कि वो एक टीचर है, बच्चों को पढ़ाना उसका सपना है। और मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, जो किताबों में ज़िंदगी ढूंढता है।
"तुम्हें देखकर लगता नहीं था कि इतना बोलते हो," उसने कहा।
मैंने जवाब दिया, "तुम्हें देखकर लगता था कि मैं बोलने लगूंगा।"
हम दोनों हँस दिए।
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🌼 प्यार का एहसास
वो सिर्फ 6 घंटे की जर्नी थी, लेकिन दिल के अंदर एक पूरा मौसम बदल गया था।
ट्रेन जब कानपुर पहुँची, तो उसने कहा, "मुझे यहीं उतरना है।"
मैं चुप हो गया। उसे जाते देखना आसान नहीं था।
उसने एक कागज़ पर कुछ लिखा और मेरी किताब में रख दिया – "मिलना हो तो इसी जगह फिर आना... किसी दिन, यूँ ही। – अंजली"
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🕰️ वक़्त बीतता गया
दिन, महीने, और दो साल बीत गए।
हमारा कोई नंबर एक्सचेंज नहीं हुआ था, कोई सोशल मीडिया कनेक्शन भी नहीं। पर हर साल, उसी दिन, मैं उसी ट्रेन से उसी प्लेटफॉर्म पर पहुँचता – सिर्फ उसे देखने के लिए।
वो कभी नहीं आई।
मैंने सोचा शायद वो सब एक ख्वाब था। या शायद उसने मुझे भूल भी दिया होगा।
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💌 फिर एक दिन...
2023 की उसी सर्द सुबह, मैं फिर स्टेशन पहुँचा – इस बार उम्मीद छोड़े बिना, बस रिवायत निभाने।
और तभी, स्टेशन पर वही लाल स्वेटर, वही आँखें... अंजली!
वो मेरी तरफ बढ़ी।
"तुम अब भी आते हो?" उसने पूछा।
"तुम अब भी याद हो," मैंने कहा।
वो मुस्कराई। उसकी आँखें थोड़ी नम थीं।
"पिछले दो सालों में बहुत कुछ बदला। पापा नहीं रहे, मैं नौकरी छोड़कर गाँव लौट गई... पर दिल में एक कोना अब भी तुम्हारे लिए बचा है।"
मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा,
"तो चलो, इस अधूरी कहानी को अब मुकम्मल करते हैं।"
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💍 एक नई शुरुआत
आज हम साथ हैं। उसी ट्रेन से हम हर साल कहीं न कहीं घूमने जाते हैं – हर बार एक नई मंज़िल, लेकिन साथ वही रहता है – प्यार।
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❤️ सीख:
कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाती है जहाँ प्यार लौट कर आता है, बिना शोर किए। कुछ मुलाकातें अधूरी नहीं होतीं, बस वक्त मांगती हैं। अभय और अंजली की कहानी हमें सिखाती है कि इंतज़ार और सच्चे जज़्बातों से ही अधूरी कहानी पूरी होती है – हमेशा के लिए। ❤️