Yashaswini - 12 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | यशस्विनी - 12

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यशस्विनी - 12



  " दीदी आप क्या हमारे रोहित महोदय की कहानी सुना रही हैं?" 

       साधकों का ऐसा अनुमान लगता देखकर यशस्विनी खिलखिला कर हंस पड़ी और रोहित झेंप गए क्योंकि जब उन्होंने बहुत ध्यान से यशस्विनी का यह व्याख्यान और प्रदर्शन देखा तो वे मन ही मन स्व-आकलन कर रहे थे।रोहित मुश्किल से पहले या दूसरे चक्र तक ही केंद्रित थे।  उन्हें तीसरे चक्र के प्रभाव की अनुभूति भी कभी-कभी होती थी। अपनी आध्यात्मिक भावना, सज्जनता, ईमानदारी और मेहनत के कारण ही वे अनजाने ही इस दूसरे और तीसरे चक्र तक पहुंच पाए थे।

    एक साधक ने पूछा-" दीदी आपने योग की सभी विधियों व प्रविधियों की जानकारी दी लेकिन आप यह बताइए कि यह इतना गूढ़ व जटिल विज्ञान और अध्यात्म है कि साधारण मनुष्य इसे कैसे सीख सकता है और इसका पालन कैसे कर सकता है?”

  यशस्विनी ने प्रत्युत्तर दिया, "आपने सही कहा। हमारे देश में अनेक योग गुरु और संस्थान सक्रिय हैं जो योग को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयत्न कर रहे हैं तथापि मेरा ऐसा मानना है कि आजकल केवल आसन और प्राणायाम की विधियों पर ही जोर दिया जा रहा है। वास्तव में योग का अर्थ अंततः परमात्मा से स्वयं को जोड़ना है और हमारे मनोभावों में परिवर्तन एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के विकास में ही योग की सार्थकता है। मैं यही करने की कोशिश कर रही हूं….।"

"और दीदी इसका अत्यंत कठिन होना……"

" मैं आपके इसी प्रश्न पर आ रही हूं। वास्तव में योग भारत की प्राचीन विद्या है और पहले यह अत्यंत प्रचलित थी। जनमानस में लोकप्रिय होने के कारण और सार्वजनिक तथा निजी जीवन में इसका अभ्यास लगातार होते रहने के कारण यह लोगों के लिए सहज और आसान था। आज के समय में जब लोगों का ध्यान केवल भौतिकता के संसाधनों को जुटाने की ओर है ऐसे में वे अध्यात्म और योग से दूर होते जा रहे हैं। अब उनका मतलब केवल फिटनेस तक सीमित है।वे योग को भी केवल वहां तक अपनाना चाहते हैं,जहां तक यह उनके फिटनेस और अगर युवाओं की बात की जाए तो बॉडी बिल्डिंग में मदद करे। इसके आगे वे योग की कोई महत्ता नहीं समझते। समस्या यही है।एक उदाहरण देना चाहती हूं कि सूर्य नमस्कार का प्रचलन बढ़ाने के लिए सरकारों को इसके लिए विशेष दिन तय कर अभ्यास सत्र आयोजित करना पड़ता है।वहीं शरीर के विभिन्न चक्रों के बारे में  एक सामान्य साधक  सोच ही नहीं सकता है। नाड़ियों की गूढ़ संरचना की क्या बात की जाए?

"दीदी इन अभ्यास विधियों के करने में क्या सावधानी बरतनी चाहिए?"

" इसकी एकमात्र सावधानी यह है कि बिना इन आसनों योग विधियों, प्राणायाम,विभिन्न चक्रों के भली प्रकार ज्ञान हुए बिना इनका अभ्यास गलत है और यह भी योग्य गुरु की उपस्थिति और उनके मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए। अन्यथा इनका लाभ होने के स्थान पर प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकता है।"

साधकों के मन में अनेक जिज्ञासाएं थीं लेकिन यशस्विनी ने कहा कि अब आप लोगों के आराम करने का समय हो रहा है।

  प्रश्न उत्तर और जिज्ञासा समाधान सत्र का विसर्जन हुआ। श्री कृष्ण प्रेमालय के इस बड़े हॉल में ओम की समवेत ध्वनि के साथ जैसे साधकों ने अपने भीतर झांकने और प्रत्येक धमनी, शिरा और नाड़ियों को झंकृत करने की कोशिश की। श्री कृष्ण प्रेमालय परिसर में ही इन 50 साधकों के आवास की व्यवस्था है। श्री कृष्ण प्रेमालय एक तरह से योग आश्रम भी है लेकिन जैसा कि महेश बाबा ने नियम बना रखा है कि वे केवल प्रवचन, भाषण और उपदेश की गतिविधियों के स्थान पर  60% समय रचनात्मक और सेवा के कार्यों के लिए तय रखना चाहते हैं।शेष 40 प्रतिशत फोकस चर्चाओं, वार्ता, उपदेशों पर केंद्रित होना चाहिए। अगर हम लोग केवल उपदेश देते रह जाएं। स्वयं आचरण में उसे न उतारें तो हम आम लोगों से यह कैसे कह सकते हैं कि नर की सेवा ही नारायण की सेवा है।…. अनाथालय की स्थापना और परिवार में सभी को खो चुके बच्चों की परवरिश…. इसके अलावा प्रत्येक शनिवार और रविवार को शहर में स्थित सभी वृद्ध आश्रमों में जाकर वहां के लोगों से मिलना जुलना और उनके लिए विभिन्न चीजों का प्रबंध करना यह महेश बाबा का प्रिय कार्य था।

  शाम को राधा कृष्ण मंदिर में भोग अर्पण के बाद भंडारा भी चलता था जिसमें आश्रम की आवश्यकता के अनुसार और यहां साधनों की उपलब्धता के अनुसार जितना भोजन बन सकता था, वह प्रतिदिन बांके बिहारी के दरबार में पहुंच जाने वाले लगभग 100 से 150 गरीब लोगों या अन्य ऐसे व्यक्ति जो उस दिन भोजन ग्रहण नहीं कर पाए हों, उनके लिए पर्याप्त रहता था। अब इसे विधि का विधान कहिए या भगवान बांके बिहारी जी की कृपा कि कोई भी भूखा मंदिर के रात्रि प्रसाद ग्रहण के समय पहुंचने पर भूखे पेट वापस न लौटता था और सभी आश्रम के स्वयंसेवक इस कार्य को बड़े मनोयोग से पूरा करते थे। महेश बाबा इसी तरह ठंड के दिनों में फुटपाथ पर सोये ठिठुरते लोगों को या तो आश्रय प्रदान करने की कोशिश करते  या उन तक गर्म कपड़े आदि की व्यवस्था करते। यशस्विनी भी इन सभी कार्यों में व्यस्तता के बाद भी समय निकालकर सहायता प्रदान किया करती थी ।                   

           आज के प्रश्नोत्तर सत्र में जिस तरह यशस्विनी ने विभिन्न चक्रों के जागरण से संबंधित जानकारी दी,वह रोहित के लिए भी एकदम नई थी। अपने कक्ष में आकर बहुत देर तक रोहित का ध्यान विभिन्न चक्र और उनकी गतिविधियों में लगा रहा,लेकिन नाड़ियों के संबंध में जब उसकी जिज्ञासा दूर नहीं हुई तो उसने यशस्विनी से चर्चा की सोची।

            

  -यशस्विनी, इतनी देर रात को फोन करने के लिए क्षमा चाहता हूं। क्या मैं आपसे कुछ बातें पूछ सकता हूं?

-हां हां क्यों नहीं? अवश्य पूछिए।

- आप आज जब चक्र के बारे में साधकों को जानकारी दे रही थीं तो नाड़ी के संबंध में कुछ बातें मेरे मन में सही तरह से बैठ नहीं पाईं।

 -ओह, तो बताइए क्या जानना चाहते हैं आप?

-यही  कि आपने कहा इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी ….. तो आप मुझे इन नाड़ियों के बारे में जानकारी दीजिए…

-देखिए रोहित जी मैं  समझ रही हूं कि आपको यह जानकारी इसलिए चाहिए क्योंकि पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन बनाने के लिए आपको गहराई में डूबना होगा... तब जाकर आप साधकों की काम की चीज डिस्प्ले कर सकते हैं ...तो सुनिए..

…. हमारे शरीर में अनेक नाड़ियाँ होती हैं….

- इन नाड़ियों को क्या हम धमनी और शिराएं कह सकते हैं?

- नहीं इन्हें धमनी या नस नहीं कहा जा सकता है। यह शरीर में उस माध्यम या रास्ते का कार्य करती हैं जिनसे प्राण शक्ति का संचार होता है।वास्तव में यह नाड़ियाँ भौतिक रूप से दिखाई नहीं देती हैं, लेकिन आप इनकी गति को, इनके स्पंदन को महसूस कर सकते हैं।

(क्रमशः)

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय