My Dominating Husband in Hindi Love Stories by mood Writer books and stories PDF | My Dominating Husband

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My Dominating Husband


Part – 1 : पहली मुलाक़ात और अनचाहा बंधन

रीमा एक साधारण, पढ़ाई में तेज़ और सपनों से भरी लड़की थी।
उसकी दुनिया किताबों, दोस्तों और अपने छोटे से परिवार तक ही सीमित थी।
वह चाहती थी कि उसकी शादी एक ऐसे इंसान से हो जो उसके सपनों को समझे, उसके साथ बराबरी का रिश्ता निभाए।

लेकिन किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही तय कर रखा था।

उसके पिता का एक पुराना दोस्त था – राघव चौधरी।
राघव एक बहुत बड़े बिज़नेसमैन, सख़्त स्वभाव और ठंडे चेहरे वाले इंसान।
उनकी उम्र रीमा से काफ़ी ज़्यादा थी।
रीमा उन्हें बचपन से "राघव अंकल" कहकर जानती थी।

एक दिन अचानक घर में हलचल मच गई।
रीमा को पता चला कि उसके पापा ने उसकी शादी की बात राघव से पक्की कर दी है।

रीमा हैरान रह गई –
“पापा! ये कैसी मज़ाक की बात है? वो इंसान मुझसे दुगनी उम्र के हैं। वो सख़्त हैं, बिल्कुल अलग दुनिया के हैं… मैं उनसे शादी नहीं कर सकती।”

लेकिन पापा ने साफ़ कहा –
“रीमा, यह हमारी इज़्ज़त और भरोसे की बात है। राघव तुम्हें हर सुख देंगे। और मुझे पूरा विश्वास है कि वही तुम्हारे लिए सही हैं।”

रीमा के विरोध करने का कोई असर नहीं हुआ।
और देखते ही देखते, बिना उसकी मर्ज़ी के शादी हो गई।


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शादी की पहली रात

रीमा के मन में डर और ग़ुस्सा दोनों थे।
वह सोच रही थी –
“यह शादी मेरे लिए एक पिंजरे जैसी है। मैं इन्हें कभी अपना पति नहीं मान सकती।”

राघव कमरे में आए, उनके चेहरे पर हमेशा की तरह सख़्त भाव।
उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा –
“रीमा, मुझे पता है कि यह रिश्ता तुम्हारी मर्ज़ी से नहीं हुआ।
लेकिन अब तुम मेरी पत्नी हो… और मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी बात मानो।
मुझे आज़ादी से ज़्यादा हक़दारी पसंद है।”

रीमा काँप गई।
उसे लगा मानो उसने अपनी ज़िंदगी किसी ऐसे इंसान को सौंप दी है, जो उसे समझना नहीं चाहता बल्कि अपने मुताबिक ढालना चाहता है।


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राघव का डॉमिनेटिंग स्वभाव

राघव का हर बात पर नियंत्रण रखना, अपने नियम थोपना, रीमा को परेशान करने लगा।

वह तय करते कि रीमा कब घर से बाहर जाएगी।

किससे मिलेगी, क्या पहनेगी, यहाँ तक कि किस वक़्त सोएगी और उठेगी।

रीमा को हर जगह उनकी कठोर निगाहों का एहसास होता।


रीमा अक्सर रो देती, अकेलेपन में खुद से सवाल करती –
“क्या यही शादी है? क्या एक औरत सिर्फ़ पति की मर्ज़ी से जीने के लिए बनी है?”


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एक अनदेखी परत

लेकिन धीरे-धीरे रीमा ने नोटिस किया कि राघव की सख़्ती के पीछे एक और चेहरा छिपा है।
जब वह बीमार पड़ी तो राघव रात भर उसके पास बैठे रहे।
जब किसी ने रीमा पर कटाक्ष किया तो राघव ने पूरे ग़ुस्से से उसकी इज़्ज़त की रक्षा की।

रीमा सोच में पड़ गई –
“ये इंसान वाक़ई निर्मोही है या फिर अपनी भावनाओं को छुपाकर रखने वाला?”

Part – 2 : तकरार से प्यार तक


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दूरी और संघर्ष

शादी के कई महीने बीत चुके थे।
रीमा अब भी राघव की कठोरता से परेशान थी।
उसे लगता था कि वह एक डॉमिनेटिंग पर्सन है, जिसके लिए प्यार और अपनापन शायद कोई मायने नहीं रखता।

एक शाम रीमा ने हिम्मत जुटाकर कहा –
“राघव जी, अगर आप सच में मुझे चाहते हैं तो मुझे अपनी तरह जीने दीजिए।
मैं आपकी पत्नी हूँ, पर कोई खिलौना नहीं।”

राघव ने शांत लेकिन गहरी आवाज़ में जवाब दिया –
“रीमा, मैं डरा हुआ इंसान हूँ।
ज़िंदगी ने मुझे धोखा दिया है, और इसी वजह से मैं सबको अपने क़ाबू में रखना चाहता हूँ।
मुझे खोने का डर है… तुम्हें खोने का भी।”

रीमा पहली बार उनकी आँखों में दर्द देख रही थी।
उसे एहसास हुआ कि यह आदमी बाहर से कठोर है लेकिन अंदर से टूटा हुआ।


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दरार में से झांकता प्यार

धीरे-धीरे रीमा के मन में बदलाव आने लगा।
वह नोटिस करती कि –

राघव भले ही आदेश देते हैं, लेकिन उनकी नज़र हमेशा रीमा की सुरक्षा पर रहती है।

अगर रीमा देर से आती तो वह गुस्से में डाँटते, मगर बाद में छुपकर चिंता करते।

जब रीमा पढ़ाई जारी रखना चाहती थी तो पहले मना किया, फिर उसके लिए एडमिशन फॉर्म खुद भरकर लाए।


रीमा सोच में पड़ जाती –
“यह इंसान मुझे बाँधना नहीं चाहता, बल्कि डर के कारण कसकर पकड़ कर रखता है। कहीं यह प्यार ही तो नहीं?”


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बड़ा मोड़

एक बार रीमा अपनी सहेली की शादी में गई।
वहाँ कुछ लड़कों ने उसके बारे में गलत बातें कीं।
रीमा चुप थी, पर अचानक राघव वहाँ आ पहुँचे।
उन्होंने सबके सामने साफ़ कहा –
“रीमा मेरी पत्नी है। उसकी इज़्ज़त पर उंगली उठाने वाला मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा।”

उस दिन पहली बार रीमा ने महसूस किया कि राघव का गुस्सा उसकी सुरक्षा के लिए है, न कि सिर्फ़ हुकूमत के लिए।


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रिश्ता बदलने लगा

अब रीमा और राघव के बीच बातचीत बढ़ने लगी।
रीमा उन्हें अपनी छोटी-छोटी बातें बताती, और राघव ध्यान से सुनते।
राघव का कठोर चेहरा धीरे-धीरे नरम होने लगा।

एक रात राघव ने कहा –
“रीमा, शायद मैं तुम्हारे सामने कभी अच्छा पति साबित नहीं हो पाया।
लेकिन मैं कोशिश कर रहा हूँ।
मुझे सिर्फ़ एक वादा चाहिए – तुम मेरा साथ कभी मत छोड़ना।”

रीमा की आँखें भर आईं।
उसने पहली बार सहज होकर उनका हाथ थामा और मुस्कुराई।


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प्यार की नई शुरुआत

अब उनका रिश्ता तकरार से आगे बढ़ चुका था।
राघव अब भी सख़्त थे, लेकिन रीमा जान चुकी थी कि वह सख़्ती सिर्फ़ प्यार की आड़ है।
रीमा भी अब उन्हें समझने लगी थी, और राघव उसके सपनों को पूरा करने में मदद करने लगे थे।

रीमा सोचने लगी –
“शुरुआत में मुझे यह शादी कैद लगी थी…
पर आज यह रिश्ता मेरी सबसे बड़ी ताक़त है।
शायद सच्चा प्यार ऐसा ही होता है – धीरे-धीरे, तकरारों के बीच जन्म लेने वाला।”