Chhaya - Bhram ya Jaal - 11 in Hindi Horror Stories by Meenakshi Mini books and stories PDF | छाया भ्रम या जाल - भाग 11

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छाया भ्रम या जाल - भाग 11

भाग 11

सुबह की पहली किरणें अपार्टमेंट की खिड़कियों से झाँक रही थीं, लेकिन ग्रुप के लिए यह कोई नई शुरुआत नहीं थी, बल्कि एक अनिश्चित सफर की पहली सुबह थी। विवेक, छाया, रिया और अनुराग ने अपने बैग कंधे पर टांगे और आखिरी बार अपने अपार्टमेंट को देखा। रात भर की अजीबोगरीब घटनाओं ने उन्हें लगभग तोड़ दिया था, लेकिन उनके चेहरे पर अब एक अजीब-सी दृढ़ता थी। श्रीमती शर्मा अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थीं, और उनकी धीमी फुसफुसाहटें अभी भी सुनाई दे रही थीं, जो एक भयानक विदाई की तरह थीं।

"सब कुछ ले लिया?" विवेक ने पूछा, अपनी लिस्ट को दोबारा चेक करते हुए। टॉर्च, फर्स्ट-एड किट, पानी की बोतलें, और डॉ. मेहता द्वारा दिया गया दस्ताना और जार – सब कुछ उनके पास था।

"हाँ," छाया ने धीमी आवाज़ में कहा, उसकी आँखें लाल थीं। उसे नींद नहीं आई थी। हर आहट पर उसे लगता था कि वह चीज़ उनके पीछे है, उन्हें अपार्टमेंट छोड़ने से रोकना चाहती है।

रिया ने अपने फोन को पकड़ा, उसकी बैटरी पूरी तरह चार्ज थी, हालांकि उसे पता था कि पहाड़ों में नेटवर्क नहीं मिलेगा। अनुराग बस सिर हिलाकर सहमत हुआ, उसका शरीर थकान से टूटा हुआ था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी थी।

अपार्टमेंट से निकलना भी एक चुनौती थी। लिफ्ट अपने आप बेसमेंट में रुकी हुई थी, और जब उन्होंने सीढ़ियों का रास्ता लिया, तो उन्हें लगा जैसे दीवारें साँस ले रही हों, और गलियारों से ठंडी हवा के झोंके आ रहे हों। उन्हें हर पल महसूस हो रहा था जैसे दुष्ट शक्ति उन्हें जाते हुए देख रही है, और उनकी हिम्मत को आज़मा रही है।

सुबह 6 बजे वे अपनी कार में थे। शहर की हलचल धीरे-धीरे शुरू हो रही थी, लेकिन उनके दिमाग में सिर्फ अरावली की शांत और रहस्यमयी पहाड़ियाँ थीं। ड्राइव शांत थी, हर कोई अपने विचारों में खोया हुआ था। उन्होंने नाश्ते के लिए एक छोटे ढाबे पर रुकने का फैसला किया, जहाँ गरमागरम चाय और पराठों ने उन्हें थोड़ी गरमाहट दी।

जैसे-जैसे वे शहर से दूर होते गए, सड़कें पतली होती गईं और हरियाली बढ़ती गई। दोपहर तक वे अरावली की तलहटी में पहुँच गए थे। पहाड़ियाँ विशाल और प्राचीन दिख रही थीं, उनके ऊपर घने पेड़ और झाड़ियाँ फैली हुई थीं। डॉ. मेहता ने जिस जगह का ज़िक्र किया था, वह एक छोटे से गाँव से थोड़ी दूर थी, जहाँ इक्का-दुक्का लोग ही रहते थे।

गाँव में पहुँचते ही, उन्हें अजीब-सा सन्नाटा महसूस हुआ। बच्चे घरों के अंदर थे, और बड़े लोग उन्हें ऐसे देख रहे थे जैसे वे कोई अजूबा हों। जब विवेक ने एक बूढ़े आदमी से प्राचीन शिव मंदिर के बारे में पूछा, तो उसने तुरंत अपनी आँखें फेर लीं और डरकर पीछे हट गया।

"इन्हें इस जगह के बारे में सब पता है," रिया ने फुसफुसाकर कहा। "डॉ. मेहता सही कह रहे थे, कोई यहाँ आना नहीं चाहता।"

गाँव से थोड़ा आगे बढ़ने पर, उन्हें सड़क के किनारे एक पुरानी, टूटी हुई साइनबोर्ड मिली, जिस पर अस्पष्ट अक्षर खुदे हुए थे। यह डॉ. मेहता द्वारा बताए गए प्राचीन शिव मंदिर का रास्ता था। उन्होंने कार वहीं पार्क की और बाकी का रास्ता पैदल तय करने का फैसला किया।

पगडंडी धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ती गई। रास्ता पत्थरों और झाड़ियों से भरा था, और सूरज की रोशनी पेड़ों के घने पत्तों से छनकर मुश्किल से ज़मीन तक पहुँच रही थी। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, हवा में एक अजीब-सी ठंडक महसूस होने लगी, भले ही बाहर मौसम गर्म था। उन्हें हर आवाज़ पर ध्यान देना पड़ रहा था – पत्तियों की सरसराहट, दूर से किसी जानवर की आवाज़, या हवा का गुफाओं में से होकर गुजरना।

अनुराग को सबसे ज़्यादा दिक्कत हो रही थी। उसकी खांसी बढ़ गई थी, और उसका शरीर दर्द कर रहा था। उसे बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे पीछे से धक्का दे रहा हो, या उसके कंधे पर हाथ रख रहा हो। "क्या... क्या वह चीज़ यहाँ भी हमारा पीछा कर रही है?" उसने हाँफते हुए पूछा।

"शायद," छाया ने कहा, उसके माथे पर पसीने की बूँदें थीं। "हमें बस चलते रहना है।" छाया को खुद भी अजीबोगरीब अहसास हो रहे थे। उसे लगता था जैसे पेड़ों की शाखाएँ उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ रही हों, और हर परछाई में उसे अनगिनत आँखें घूरती हुई दिखती थीं।

जैसे-जैसे शाम ढलने लगी, रास्ता और भी कठिन होता गया। उन्हें एक बड़े पेड़ का तना रास्ते में गिरा हुआ मिला, जो ऐसा लग रहा था जैसे जानबूझकर वहाँ रखा गया हो। विवेक ने उसे हटाने की कोशिश की, लेकिन वह इतना भारी था कि हिला भी नहीं।

"यह हमें रोकने की कोशिश है," रिया ने कहा। "कोई आम पेड़ ऐसे नहीं गिरता।" अचानक उसके फोन पर सिग्नल आया, और एक अजीब-सी, डरावनी धुन बजने लगी, जो उसके सोशल मीडिया पर अपने आप पोस्ट हुई थी। धुन में एक नीची, भयानक आवाज़ कुछ अजीब भाषा में बुदबुदा रही थी। उसने तुरंत फोन बंद कर दिया, लेकिन उसके हाथ काँप रहे थे। दुष्ट शक्ति उन्हें हर कदम पर चेतावनी दे रही थी।

उन्होंने आखिरकार उस विशाल शिव मंदिर के खंडहरों को देखा। यह एक पुरानी, पत्थरों से बनी संरचना थी, जो अब पूरी तरह से खंडहर में बदल चुकी थी। उस जगह पर एक अजीब-सा सन्नाटा और उदासी छाई हुई थी। मंदिर की दीवारों पर पुराने, अस्पष्ट नक्काशीदार चित्र थे, जो किसी प्राचीन अनुष्ठान या कहानियों को दर्शाते थे।

मंदिर के ठीक पीछे, उन्हें डॉ. मेहता द्वारा बताई गई छोटी पगडंडी मिली। यह लगभग मिट चुकी थी, और पेड़ों और झाड़ियों से ढकी हुई थी। टॉर्च की रोशनी में उन्होंने रास्ता बनाना शुरू किया। हवा में अब एक अजीब सी गंध थी, जैसे पुरानी मिट्टी और कुछ सड़ी हुई चीज़ की।

अनुराग को अब लगातार चक्कर आ रहे थे, और उसे लगा जैसे उसके कान में कोई फुसफुसा रहा हो। "विवेक... मुझे लगता है... मैं ठीक नहीं हूँ," उसने मुश्किल से कहा, और ज़मीन पर गिर पड़ा।

छाया और रिया तुरंत उसकी तरफ दौड़ीं। उसका शरीर ठण्डा पड़ रहा था और उसका साँस लेना तेज़ हो गया था। विवेक ने उसके माथे पर हाथ रखा। "उसे बुखार है।"

"यह वह चीज़ कर रही है," रिया ने कहा, उसकी आँखों में आँसू थे। "वह हमें तोड़ना चाहती है।"

विवेक जानता था कि उन्हें देर नहीं करनी चाहिए। अमावस्या की रात करीब आ रही थी, और उन्हें नीला फूल ढूंढना ही था। "हमें उसे यहाँ आराम करने देना होगा। हम दोनों, मैं और छाया, गुफा में जाएँगे। रिया, तुम यहीं अनुराग के साथ रुककर उसका ख्याल रखो।"

रिया ने अपने दोस्त को कसकर पकड़ा। "मैं उसे अकेला नहीं छोड़ सकती।"

छाया ने विवेक की बात का समर्थन किया। "सही है विवेक। उसे हमारी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। तुम जाओ, मैं रिया के साथ अनुराग के पास रुकती हूँ।"

विवेक को पता था कि यह खतरनाक था। अकेले गुफा में जाना, जहाँ दुष्ट शक्ति की पकड़ ज़्यादा हो सकती थी। लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं था। अनुराग की हालत बिगड़ रही थी, और अमावस्या का समय निकल रहा था।

"ठीक है," विवेक ने लंबी साँस ली। "तुम दोनों यहीं सुरक्षित रहो। मैं जितनी जल्दी हो सके, वापस आता हूँ।" उसने अपना बैग संभाला, अपनी टॉर्च और डॉ. मेहता द्वारा दिया गया दस्ताना और जार निकाला।

जैसे ही विवेक ने पगडंडी पर कदम रखा, उसे एक अजीब सा अहसास हुआ, जैसे कोई उसे अंदर खींच रहा हो। पेड़ और भी घने होते गए, और हवा में गंध और भी तेज़ हो गई। उसे लगा जैसे हवा में फुसफुसाहटें तैर रही हों, जो उसे रोकने की कोशिश कर रही थीं। दुष्ट शक्ति अपनी पूरी ताकत से उसे गुफा में जाने से रोकना चाहती थी।

पगडंडी पर कुछ कदम चलने के बाद, विवेक को लगा कि हवा और भारी हो गई है। पेड़ों की सूखी टहनियाँ उसके पैरों से टकरातीं, जैसे कोई उसे पीछे खींच रहा हो। उसने टॉर्च की रोशनी में देखा, तो उसे लगा जैसे दूर झाड़ियों में कुछ हिल रहा है, लेकिन जब उसने ध्यान से देखा तो कुछ नहीं था। यह सब दुष्ट शक्ति के भ्रम थे, जो उसे डराने के लिए पैदा किए जा रहे थे। उसे अपनी मानसिक एकाग्रता बनाए रखनी थी, जैसा डॉ. मेहता ने कहा था।

जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया, उसे पुरानी, सड़ी हुई पत्तियाँ और मिट्टी की बदबू और भी तेज़ महसूस हुई। ज़मीन पर कुछ अजीबोगरीब निशान थे, जो किसी जानवर के नहीं लग रहे थे, बल्कि किसी चीज़ के घिसटने के निशान थे। यह देखकर उसके रोंगटे खड़े हो गए। "यह सब बस मेरा दिमाग है," उसने खुद को समझाया, लेकिन उसके दिल की धड़कन बढ़ गई थी।

अचानक, उसे एक ठंडी हवा का झोंका महसूस हुआ, जो सीधे उसके चेहरे पर लगा, और उसके कानों में एक धीमी, गहरी आवाज़ गूँजी, जैसे कोई प्राचीन भाषा में कुछ बुदबुदा रहा हो। आवाज़ इतनी भयानक थी कि विवेक की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई। उसने टॉर्च को तेज़ी से घुमाया, लेकिन अंधेरे के सिवा कुछ नहीं था। उसे लगा जैसे कोई अदृश्य चीज़ उसके ठीक पीछे खड़ी है, उसकी साँसों को महसूस कर रही है।

उसने अपने डर पर काबू पाने की कोशिश की। उसे अनुराग, छाया, और रिया के बारे में सोचना था, जो मंदिर के पास उसका इंतज़ार कर रहे थे। उसे नीला फूल ढूंढना ही था। यह सिर्फ़ उसके लिए नहीं, बल्कि उन सबके लिए था।

थोड़ी देर बाद, उसे चट्टानों के बीच एक बड़ा सा अँधेरा छेद दिखाई दिया। यह वही गुफा थी, जिसका ज़िक्र डॉ. मेहता ने किया था। गुफा का प्रवेश द्वार विशाल और डरावना था, जैसे कोई विशालकाय मुँह खुला हो। अंदर से एक ठंडी, नम हवा आ रही थी, जिसमें सड़ी हुई गंध और भी तेज़ थी। प्रवेश द्वार के पास ही, उसे ज़मीन पर कुछ अजीबोगरीब प्राचीन प्रतीक खुदे हुए दिखे, जो डॉ. मेहता द्वारा दिखाए गए 'मृत्यु के द्वार' जैसे ही थे। ये प्रतीक ज़मीन में गहरे खुदे हुए थे, जैसे किसी ने उन्हें बहुत पहले यहाँ बनाया हो।

विवेक ने एक गहरी साँस ली, टॉर्च को कसकर पकड़ा, और अंधेरी गुफा में प्रवेश किया। वह नहीं जानता था कि अंदर क्या इंतज़ार कर रहा था, लेकिन उसे यह करना ही था। दुष्ट शक्ति से उनकी लड़ाई का यह सबसे महत्वपूर्ण कदम था।